वेब वार्ता-डेस्क। दिल्ली ने मतदान कर दिया। अब 8 फरवरी को जनादेश घोषित किया जाएगा कि दिल्ली किस पार्टी के पक्ष में है। बुधवार, 5 फरवरी की देर रात तक 60.4 फीसदी मतदान दर्ज किया गया, यह चुनाव आयोग का अधिकृत आंकड़ा है। कुल करीब 1.56 करोड़ मतदाताओं में से 65 लाख से अधिक मतदाताओं ने मतदान ही नहीं किया। दिल्ली जैसे राजधानी महानगर में यह उदासीनता महत्वपूर्ण है। दिल्ली का समूचा विचार और राजनीतिक सोच स्पष्ट नहीं हो पाती। जनादेश भी अधूरा ही रहेगा। दिल्ली सबसे शिक्षित और जागरूक महानगर है। उसके बावजूद चुनाव-प्रक्रिया के प्रति यह उदासीनता भी निराश करती है। लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण और बुनियादी नागरिक अधिकार मताधिकार ही है, जिसके जरिए नागरिक अपने जन-प्रतिनिधि और अपनी सरकार चुनते हैं। हालांकि इस बार का मतदान लोकसभा चुनाव से बेहतर रहा, लेकिन 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों से पिछड़ा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल की सीट नई दिल्ली पर 54.7 फीसदी ही मतदान हुआ। हालांकि इस सीट पर करीब 88 फीसदी हिंदू मतदाता हैं, लेकिन ‘आप’ और भाजपा के समर्थक हिंदू मतदाता घरों से कम निकले। मुख्यमंत्री आतिशी की सीट कालकाजी भी हिंदू-बहुल है, लेकिन सिर्फ 52 फीसदी ही मतदान किया गया, लेकिन इन सीटों के उलट मुस्लिम-बहुल मुस्तफाबाद, सीलमपुर, शाहीन बाग सरीखी सीटों पर बंपर मतदान किया गया, लेकिन वह भी 70 फीसदी से कम रहा। जहां 2020 में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, वहां मुसलमानों ने सबसे ज्यादा मतदान किया। हालांकि दिल्ली एक अद्र्धराज्य है, संघशासित क्षेत्र भी है, लेकिन ‘मिनी इंडिया’ भी है, क्योंकि देश भर से लोग यहां पढऩे, काम करने और एक बेहतर भविष्य के लिए आते हैं। दिल्ली के जनादेश की प्रतिध्वनि देश भर में गूंज सकती है।
राजधानी शहर में बीते 12 साल से ‘आप’ की सत्ता है, उससे पहले 15 साल कांग्रेस ने शासन किया, लिहाजा भाजपा 27 साल से ‘वनवास’ झेल रही है। इस बार ‘आप’ और भाजपा की राजनीति दांव पर है। मतदान के बाद 10 एग्जिट पोल के अनुमान सामने आए हैं, जिनमें से 8 भाजपा और सिर्फ 2 ‘आप’ की सत्ता के पक्ष में हैं। एग्जिट पोल एक वैज्ञानिक, प्रयोगिक सर्वेक्षण-पद्धति है, लेकिन बीते एक अंतराल से भारत में सभी पोल गलत रहे हैं। हाल ही में हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड राज्यों के विधानसभा चुनावों के अनुमान भी गलत साबित हुए हैं। लोकसभा चुनाव के अनुमान भी धराशायी हो गए, लिहाजा कहा नहीं जा सकता कि जनादेश ‘आप’ या भाजपा के पक्ष में रहेगा। लेकिन जो भी जनादेश मिलेगा, वह ऐतिहासिक ही होगा। केजरीवाल और ‘आप’ का राजनीतिक उदय भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन से हुआ था, लेकिन आज उन्हीं के चेहरों पर खरोंचे हैं। पार्टी के शीर्ष नेता-केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह-जेल जा चुके हैं और फिलहाल जमानत पर बाहर हैं, लेकिन अदालत में उनका अपराध अभी साबित होना है। जनता कुछ संदेह कर रही है और कुछ सवाल भी हैं, शायद इसीलिए केजरीवाल, आतिशी, सिसोदिया की सीटें फंसी हुई हैं। वे चुनाव हार भी सकते हैं। दिल्ली का प्रदूषण, गंदा पानी, प्रदूषित हवा, टूटी-फूटी सडक़ें, शराब घोटाला, प्रदूषित यमुना आदि चुनावी मुद्दे बनते चले गए, जिनका नुकसान ‘आप’ को होता लगता है। यदि केजरीवाल और ‘आप’ चुनाव हार जाते हैं, तो पार्टी में बिखराव हो सकता है, क्योंकि ‘आप’ काडर आधारित पार्टी नहीं है। यदि केजरीवाल चुनाव जीत जाते हैं, तो उनका राजनीतिक ब्रांड मजबूत होगा।