-सुनील कुमार महला-
भारत सरकार ‘गिग वर्कर्स’ को एक बड़ा तोहफा देने जा रही है। पाठकों को बताता चलूं कि गिग वर्कर को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों के बाहर काम करता है या कार्य व्यवस्था में भाग लेता है और ऐसी गतिविधियों से आय अर्जित करता है। दरअसल, देश के लगभग एक करोड़ गिग वर्कर्स (असंगठित क्षेत्र के मजदूरों) के लिए श्रम मंत्रालय द्वारा ईपीएफओ पेंशन स्कीम पर काम किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार अब बिना नौकरी, बिना वेतन या रोजाना सैलरी के केवल काम या ट्रांजैक्शन के आधार पर भुगतान पाने वाले डिलीवरी ब्वॉय, कूरियर ब्वॉय समेत देश के लगभग एक करोड़ गिग वर्कर्स को अब पेंशन का फायदा मिलेगा। इसके लिए उन्हें ई-श्रम पोर्टल पर जाकर अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। वास्तव में, इन गिग वर्कर्स को पेंशन की यह सुविधा उनके ट्रांजेक्शन के साथ लिंक होगी।
मतलब यह कि वे कितना काम करते हैं या डिलीवरी ब्वॉय के रूप में कितनी जगहों पर सामान पहुंचाते हैं, इसके आधार पर ही उनके पेंशन के लिए योगदान की गणना होगी। जानकारी देना चाहूंगा कि ये गिग वर्कर्स ऑनलाइन उपभोक्ता सेवाएं दे रही एग्रीगेटर कंपनियों के प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि अब तक इन वर्कर्स के लिए कोई सामाजिक सुरक्षा कवच उपलब्ध नहीं था, लेकिन अब इन गिग वर्कर्स को पेंशन देने के लिए एग्रीगेटर कंपनियों से मिनिमम कॉन्ट्रीब्यूशन लिया जाएगा। इसके लिए उनके हर बिलिंग लेन-देन से दो या तीन प्रतिशत राशि पेंशन अंशदान के लिए इकट्ठा की जाएगी। जानकारी के अनुसार उन्हें (गिग वर्कर्स को) यूनिवर्सल अकाउंट नंबर जारी किये जाएंगे। इसमें गिग वर्कर दो-तीन एग्रीगेटर कंपनियों के लिए किए काम करते हुए एक ही खाते में सबका पेंशन प्राप्त कर सकेगा। वास्तव में गिर वर्कर्स स्थाई कर्मचारी नहीं होते हैं और अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए इन्हें एक से ज्यादा ऑनलाइन प्लटेफॉर्म पर काम करना पड़ता है। ऐसे में सभी कंपनियों की बिलिंग में पेंशन अंशदान काटा जाएगा।
गौरतलब है कि हाल ही में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2025 में ई-श्रम पोर्टल पर गिग वर्कर्स का पंजीकरण करने की सुविधा देने के साथ ही उन्हें पहचान पत्र देने की भी घोषणा की थी, सरकार का यह कदम काबिले-तारीफ है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि गिग वर्कर्स और दिहाड़ी मजदूर में अंतर होता है। गिग वर्कर्स की बात करें तो उनके मामले में किसी सेवा और प्रोडक्ट की बिक्री ई-पेमेंट के जरिए होती है। ई-पेमेंट होने के कारण किसी ट्रांजेक्शन को छिपाया नहीं जा सकता है। वहीं दिहाड़ी मजदूर और प्रवासी को उनका पारिश्रमिक नकद या कैश के रूप में मिलता है। दिहाड़ी मजदूरों के सामने एक समस्या यह है कि उन्हें काम के लिए कभी कहीं तो कभी कहीं जाना पड़ता है। मसलन कभी कोई दिहाड़ी मजदूर निर्माण करता है तो कभी वह खेती में दिहाड़ी करता है तो कभी कल-कारखानों या कहीं अन्य स्थानों पर काम करता है। वास्तव में इन करोड़ों दिहाड़ी कामगारों और उनके परिवारों का भविष्य सुरक्षित नहीं है, क्यों कि इन्हें काम पाने के लिए इधर से उधर भटकना पड़ता है।
वास्तव में यह बात कही जा सकती है कि आज हमारे देश में कैश पर काम करने वाले इन दिहाड़ी मजदूरों/कामगारों को कोई सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ नहीं मिल सका है। ऐसे मजदूर अधिकतर उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा जैसे राज्यों से आते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स बतातीं हैं कि अब सरकार गिग वर्कर्स को पीएम जन आरोग्य योजना के तहत स्वास्थ्य सुविधा भी देने जा रही है, जो ऐसे वर्कर्स के लिए एक वरदान साबित होगा। यह काबिले-तारीफ है कि सरकार के इस कदम से स्ट्रीट वेंडर्स और कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले, ऐमजॉन, फ्लिपकार्ट, ई-कामर्स कंपनियां, जोमैटो, स्विगी, ओला, उबर जैसे ऑनलाइन जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़े श्रमिकों(गिग वर्कर्स) को विभिन्न सरकारी एजेंसियों की सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ मिलने में मदद मिल सकेगी। पाठकों को बताता चलूं कि इस पेंशन योजना के तहत श्रमिकों को सेवानिवृत्ति के समय दो विकल्प दिए जा सकते हैं, जब उनकी पेंशन तय हो जाएगी। वे जमा पर ब्याज को पेंशन के रूप में निकाल सकते हैं या संचित धन को निर्धारित अवधि के लिए बराबर किस्तों में विभाजित कर सकते हैं।
हालांकि, यह बात अलग है कि सामाजिक सुरक्षा योजना के लिए योगदान की जाने वाली राशि अभी तय नहीं की गई है। गिग श्रमिक एक साथ दो या अधिक प्लेटफॉर्म के लिए काम कर सकते हैं। कितनी अच्छी बात है कि गिग एंड प्लेटफॉर्म लेबर एक्ट आ जाने के बाद इन श्रमिकों को कई तरह के लाभ मिलने शुरू हो जाएंगे। मसलन, उनको काम करने के बदले सुरक्षा की गारंटी होगी, दुर्घटना बीमा का लाभ भी उनके परिजनों को मिल सकेगा। इतना ही नहीं इन श्रमिकों के काम करने के घंटे भी अब तय होंगे। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि कि गिग वर्कर में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले ज्यादातर श्रमिक स्वतंत्र रूप से ठेके पर काम करने वाले कर्मचारी होते हैं। आज हमारे देश भारत में इन दिनों इस क्षेत्र में लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वास्तव में गिग इकॉनमी में आज घातीय वृद्धि हुई है, क्यों कि आज का युग डिजिटल युग है।
यहां यदि हम गिग इकॉनमी की बात करें तो ‘यह एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें पारंपरिक पूर्णकालिक रोज़गार की बजाय अस्थायी रोज़गार का प्रचलन होता है और संगठन अल्पकालिक अनुबंधों के लिये स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं। ‘ कहना ग़लत नहीं होगा कि आज के इस डिजिटल युग में किसी वर्कर्स को एक निश्चित स्थान पर बैठने की आवश्यकता नहीं है और काम कहीं से भी किया जा सकता है, इसलिये नियोक्ता किसी परियोजना के लिये उपलब्ध सर्वोत्तम प्रतिभा का चयन स्थान से परे कार्य कर सकते हैं। भारत जैसे देश में गिग इकॉनमी भारत के अनौपचारिक श्रम का विस्तार है, जो लंबे समय से प्रचलित है और अनियंत्रित बनी हुई है। कोविड-19 महामारी के कारण ‘गिग वर्कर्स’ की मांग में तेज़ी देखने को मिली। बहरहाल, अब इन गिग वर्कर्स को ईपीएफओ पेंशन दायरे में लाने का फैसला सामाजिक सुरक्षा की दिशा में एक बड़ी व नायाब पहल है, जिसका लाभ इन सभी कामगारों और इनके परिवारों को होगा।