-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-
राजनीतिक शरण के नाम पर क्या अमेरिका और कनाडा सरकारें भारत विरोधी समूह यत्नपूर्वक तैयार नहीं कर रही? इसके लिए क्या वहां परोक्ष ब्रांच काम नहीं कर रहीं? इस ब्रांच को तो गधा एअरवेज के यात्रियों का इंतजार करने की भी जरूरत नहीं होती। यह ब्रांच तो बाकायदा उनको अल्प अवधि का वीजा देकर बुलाती है। उसके बाद जांच लेती है कि क्या इनको भारत विरोधी गुट में रिक्रूट किया जा सकता है। यदि उपयुक्त पाया जाता है तो शरण के बाद उसे इस काम में लगा दिया जाता है। लेकिन इस प्रकार के रंगरूट सप्लाई करने का काम भी तो पंजाब में बैठे कुछ तथाकथित प्रतिष्ठित लोग ही तो कर रहे हैं। यह पूरी सप्लाई सिस्टम चेन है जिसका एक सिरा भारत में, दूसरा कनाडा-अमेरिका में है…
अपने देश को छोडक़र किसी दूसरे देश में जाने के लिए उस देश की सरकार से वीजा लेना पड़ता है। वीजा लेने की यह व्यवस्था बीसवीं शताब्दी में ही शुरू हुई थी। उससे पहले लोग इच्छानुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर आ-जा सकते थे। लेकिन उसके बाद व्यवस्था बदल गई। पर एक दूसरी समस्या आ गई। जरूरी नहीं कि जिस देश में आप जाना चाहते हैं वहां की सरकार आपको वीजा दे ही दे। लेकिन यदि जाना बहुत ही जरूरी हो तो बिना वीजा भी जाने के रास्ते हैं। लेकिन उन रास्तों पर ले जाने के लिए दुनिया भर में गिरोह बने हुए हैं। ये गिरोह अपने आपको एजेंट कहते हैं। बिना वीजा के लोगों को विभिन्न देशों की सरहदें पार करवा देने के काम को पंजाब में डोंकी फ्लाइट कहा जाता है। यदि आप किसी दूसरे देश में वीजा लेकर जाते हैं तो परिवहन की रेगुलर फ्लाइट से जाएंगे। यदि बिना वीजा जाते हैं तो डोंकी फ्लाइट से जाएंगे। रेगुलर फ्लाइट का किराया तो बहुत कम है, लेकिन डोंकी फ्लाइट का किराया पचास लाख से लेकर एक करोड़ तक हो सकता है। अलबत्ता इतना निश्चित है कि यदि डोंकी फ्लाइट से यात्री जाता है तो पकड़े जाने पर देश वापसी रेगुलर फ्लाइट से ही होगी। अब जब ऐसा हो रहा है तो बहुत हो-हल्ला होगा ही। लेकिन असली प्रश्न है कि लोग बिना वीजा लिए अमेरिका-कनाडा जाते क्यों हैं?
यह प्रश्न बहुत ही उलझा हुआ है। इसका उत्तर जलेबीनुमा ही हो सकता है। यदि यह मान ही लिया जाए कि अपने मुल्क में नौकरी नहीं मिलती, इसलिए दूसरे देश में नौकरी की तलाश में लोग चले जाते हैं। लेकिन पंजाब और गुजरात से तो उन परिवारों के युवा जा रहे हैं जिनका अच्छा खासा व्यवसाय है। भरी-पूरी खेती है। पंजाब में तो बहुत से आईएएस प्रशासकों ने कनाडा की पीआरशिप ले रखी है। उनके लिए तो बेरोजगारी समस्या नहीं है। बहुत से युवा तो नौकरी छोड़ कर विदेश जाने के लिए ‘गधे पर सवार’ (डोंकी फ्लाइट) हो रहे हैं। पंजाब में तो अच्छी भली खेती कर रहे युवा खेत बेच कर उत्तरी अमेरिका में मजदूरी तक करने के लिए भाग रहे हैं। इसलिए यह प्रश्न बहुत गुंझलदार है। इसकी तह में जाने की बजाय उस काले धंधे के एजेंटों की दुनिया में झांकने की कोशिश करते हैं जो ‘गधा एअरवेज’ का संचालन करते हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री भी डोंकी फ्लाइट वालों की वतन वापसी को लेकर बहुत चिंतित हैं। लेकिन उनकी चिंता महज इतनी ही है कि डोंकी फ्लाइट से गए यात्रियों को वापस ला रहे जहाज अमृतसर हवाई अड्डा पर न उतरें, बल्कि वे दिल्ली या अहमदाबाद में उतरें। वैसे गधा एअरवेज कैसे आपरेट करती हैं, इसकी थोड़ी बहुत मालूममात भगवंत मान को भी होगी ही क्योंकि बहुत बार कलाकारों के जत्थे भी ऐसे अभियानों में पाए जाते हैं। गधा एअरवेज अरबों की आर्थिक राजनीति है। एक-एक यात्री से लाखों रुपए वसूले जाते हैं। यह गधा एअरवेज बिना सुसंगठित तंत्र के तो चलाई नहीं जा सकती। यह एअरवेज गैर कानूनी है, इसमें तो कोई शक नहीं। फिर भी यदि यह सफलतापूर्वक चल रही है तो इसके अनेक स्टेकहोल्डर होंगे ही। सबसे बड़ा स्टेकहोल्डर तो वे हैं जो उत्तरी अमेरिका के दिवास्वप्न दिखाते हैं। सबसे बड़ा स्वप्न है कि ‘कनाडा और अमेरिका में ‘शरण’ मिलने की संभावना है। हम यह शरण दिलवा सकते हैं, लेकिन इसके लिए इतने लाख रुपया देना होगा। ’ क्या भगवंत मान यह नहीं जानते कि कनाडा या अमेरिका में शरण दिलवाने की एजेंसी किन लोगों ने खोल रखी है?
इस एजेंसी को पकडऩे के लिए पंजाब सरकार ने अभी तक कोई कदम उठाया है? यदि नहीं उठाया तो उसका क्या कारण है? आर्थिक कारण या राजनीतिक कारण? अमेरिका में डोंकी फ्लाइट के माध्यम से जब एक युवक ने अमेरिका में प्रवेश किया और कुछ दिन बाद ही अमेरिकी पुलिस ने उसे पकड़ कर नजरबन्द कर दिया तो उसने सबसे पहले अपने घर फोन करके नजरबन्द होने की ही ‘खुशखबरी’ दी। जेल में जाना खुशखबरी कैसे हो सकती है? उसने इसका भी खुलासा किया। अब ‘वह अमेरिका में शरण के लिए आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत करेगा। कोर्ट में लम्बा केस चलेगा। कुछ दिन बाद जमानत पर नजरबन्दी से छूट जाएगा। तब तक तो अमेरिका से कानूनन ही कोई निकाल नहीं पाएगा। आशा है अंतत: शरण मिल जाएगी। ’ क्या पंजाब सरकार का धर्म नहीं है कि वह शरण दिलवाने के लिए झूठे-सच्चे कागज मुहैया करवाने की चल रही फैक्टरी पर शिकंजा कसे। गधा एअरवेज का संचालन करने वाले एजेंटों पर कभी पंजाब सरकार ने कार्रवाई की? यह एअरवेज तो कई दशकों से चल रहा है। पंजाब में क्या कोई ऐसा राजनीतिज्ञ है जो एन एजेंटों की सिंडीकेट को न जानता हो या फिर कभी-कभार इस एअरवेज के माध्यम से अपने किसी सगे संबंधी को उत्तरी अमेरिका न पहुंचाया हो? क्या करोड़ों का यह बिजनेस अकेले एजेंट ही डकार रहे हैं? क्या पंजाब के राजनीतिज्ञों में इसकी पत्ती या हिस्सेदारी के कारण ही तो इनकी ओर से आंख नहीं मूंद ली जाती? पुलिस की जानकारी के बिना क्या इतना बड़ा बिजनेस चल सकता है? ये सारे ऐसे प्रश्न हैं जिसका उत्तर पंजाब सरकार को देना होगा। लेकिन यह निश्चित है कि पंजाब सरकार इसका उत्तर नहीं देगी। कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जिनका उत्तर सभी को पता होता है, लेकिन उत्तर देता कोई नहीं। डोंकी फ्लाईट का यही सबसे बड़ा काला धंधा है।
लेकिन इस पूरे काले धंधे की एक ब्रांच कनाडा और सरकारों के भीतर भी खुली हुई है। राजनैतिक शरण के नाम पर क्या अमेरिका और कनाडा सरकारें भारत विरोधी समूह यत्नपूर्वक तैयार नहीं कर रही? इसके लिए क्या वहां परोक्ष ब्रांच काम नहीं कर रहीं? इस ब्रांच को तो गधा एअरवेज के यात्रियों का इंतजार करने की भी जरूरत नहीं होती। यह ब्रांच तो बाकायदा उनको अल्प अवधि का वीजा देकर बुलाती है। उसके बाद जांच लेती है कि क्या इनको भारत विरोधी गुट में रिक्रूट किया जा सकता है। यदि उपयुक्त पाया जाता है तो शरण के बाद उसे इस काम में लगा दिया जाता है। लेकिन इस प्रकार के रंगरूट सप्लाई करने का काम भी तो पंजाब में बैठे कुछ तथाकथित प्रतिष्ठित लोग ही तो कर रहे हैं। यह पूरी सप्लाई सिस्टम चेन है जिसका एक सिरा भारत में है और दूसरा सिरा कनाडा और अमेरिका में है। यह ठीक है कि कनाडा या अमेरिका वाले सिरे को नियंत्रित करना पंजाब सरकार के वश में नहीं है लेकिन स्थानीय फैक्टरियों को तो चिन्हित किया जा सकता है। भगवंत मान तो कलाकारों के दलों के साथ बाहर जाते रहते हैं और अपने किस्से कहानियां भी सुनाते हैं। क्या वे कभी इस गधा एअरवेज पर भी कामेडी के बहाने ही कुछ प्रकाश डालेंगे या फिर जहाज अमृतसर में क्यों उतरा, यही चिल्लाते रहेंगे। इस समस्या का समाधान जरूर होना चाहिए तथा इसके उपाय खोजे जाने चाहिएं।