-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-
शैतानी रूहों के बारे में कहा जाता है कि वे अपनी कब्र से बार-बार बाहर निकलती रहती हैं। यत्नपूर्वक इन शैतानी रूहों को लोग कब्र में दबाते हैं, लेकिन कुछ साल बाद वे फिर बाहर आकर अपना शैतानी खेल शुरू कर देती हैं। मुगल खानदान के बादशाह औरंगजेब के साथ भी यही हो रहा है। उसने जिंदा रहते हुए भी लोगों पर अमानुषिक अत्याचार किए और मरने के बाद भी उसका यह खेल जारी है। सबसे पहले, औरंगजेब नाम का यह शख्स कौन था? इसका ताल्लुक मध्य एशिया से है और यह वहां के तुर्क समाज से ताल्लुक रखता था। यह बाबर के खानदान का था। बाबर के खानदान ने हिंदुस्तान पर हमला करके यहां अपना राज स्थापित किया था। इतिहास में इसे मुगल खानदान के नाम से जाना जाता है। बाबर के बाद उसका बेटा हुमायूं, उसके बाद अकबर, जहांगीर, शाहजहां और उसके बाद औरंगजेब ने सत्ता संभाली थी। लेकिन आगे बढऩे से पहले यह जान लेना भी जरूरी है कि जब मुगल खानदान ने भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा किया, तब भी यहां मध्य एशिया के सुलतानों का ही राज था। सुलतानों का यह राज 1100-1200 ईस्वी सन् के आसपास शुरू हो गया था। बाबर ने इब्राहिम लोधी को परास्त करके उत्तरी भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाया था। किस्सा कोताह यह कि मुगल अपनी सल्तनत को पूरे हिंदुस्तान में फैलाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन हिंदुस्तान के लोग उनको खदेडऩे की कोशिश भी कर रहे थे। वैसे गहराई से देखा जाए तो मुगलों के इन हमलों को सबसे पहली चुनौती सप्तसिंधु में ही गुरु नानक देव जी ने दी थी। गुरु नानक देव जी द्वारा रचित बाबर वाणी इसकी गवाही देती है। नानक देव जी इस हमले को ‘जम (यमराज) कर मुगल चढ़ाईया’ कहते हैं और इसको ‘हिंदुस्तान डराइया’ भी कहते हैं।
जाहिर है कि सप्त सिंधु/पंजाब ने तो इस मुगल सत्ता को शुरू से ही चुनौती देनी शुरू कर दी थी। लेकिन मुगल सत्ता को दूसरी सबसे बड़ी चुनौती दक्षिण के पठारों में मराठों से मिली। शिवाजी मराठा के नेतृत्व में मराठों ने बहुत बड़े क्षेत्र को मुगलों से आजाद करवा कर 1674 में हिंदवी साम्राज्य यानी हिंदुस्तानियों के अपने राज की स्थापना की। इधर सप्त सिंधु/पंजाब क्षेत्र में दशगुरु परंपरा, जिसका पौधा गुरु नानक देव जी ने लगाया था, का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। अफगानिस्तान से लेकर दिल्ली तक नया उत्साह संचार हो रहा था। इसका प्रभाव इतना बढ़ा कि पश्चिमोत्तर भारत के लोगों ने पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी को ‘सच्चा पातशाह’ कहना शुरू कर दिया। यानी मुगल बादशाह तो झूठा है, वह हिंदुस्तान का बादशाह नहीं है। हमारा सच्चा पातशाह ही हिंदुस्तान का बादशाह है। गुरु अर्जुन देव जी ने जन आस्था की रक्षा के लिए मुगलों का सामना किया, उनके आगे झुकने से इंकार कर दिया। मुगल बादशाह जहांगीर की दारुण यातनाओं का सामना करते हुए बलिदान दे दिया। लेकिन यह लड़ाई यहीं खत्म नहीं हुई। मुगल सत्ता पर औरंगजेब बैठा। लेकिन गद्दी पर कब्जा करने से पहले उसने अपने सभी भाइयों को मरवा दिया। ‘मरवा दिया’ कहने मात्र से शायद स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाएगी। अपने बाप शाहजहां को कैद में डालने के बाद, औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह का सिर काट कर उसे थाल में सजा कर, शाहजहां को तोहफे के रूप में पेश किया। दक्षिण के पठारों में 1674 में हिंदवी राज की स्थापना ने औरंगजेब को हिला दिया था। इधर दशगुरु परंपरा के आंदोलन ने सप्त सिंधु/पंजाब क्षेत्र की हवा बदलनी शुरू कर दी थी। औरंगजेब के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे, वह पूरे हिंदुस्तान को ‘दारुल इस्लाम’ बना देना चाहता था। लेकिन दक्षिण में नींव हिल गई थी और इधर पंजाब विरोध में आ खड़ा हुआ था। इसका नेतृत्व नवम गुरु श्री तेग बहादुर जी कर रहे थे। इतिहास ने औरंगजेब के अत्याचारों की पराकाष्ठा भी देखी और श्री गुरु तेग बहादुर और उनके तीन साथियों के प्रतिरोध की क्षमता भी देखी। मतिदास जी, सती दास जी, भाई दियाला जी के किस निर्दयता से प्राण लिए गए, इसे कैसे भूला जा सकता है? गुरु तेग बहादुर जी का सिर तलवार के वार से धड़ से अलग कर दिया गया। उन्होंने बलिदान दे दिया, लेकिन इस्लाम स्वीकार नहीं किया। यह दु:खांत 1675 का है। 1680 में शिवाजी मराठा का देहावसान हो गया।
इस नए साम्राज्य की बागडोर उनके सुपुत्र संभा जी महाराज ने संभाली। वह अपने राज्य को मजबूत करने के प्रयास में लगे थे। औरंगजेब चाहता था इस हिंद स्वराज का विस्तार होने से पहले-पहले किसी भी तरह इस पर कब्जा किया जाए। आरपार की लड़ाई थी। लेकिन 1689 में छत्रपति संभाजी महाराज पकड़े गए। अब ‘टोपियां बना कर घर का खर्चा चलाने वाले औरंगजेब’ का असली रूप सामने आया। वैसे उसका एक रूप पूरा हिंदुस्तान पहले दिल्ली के चांदनी चौक में भी देख चुका था। इस बार फिर औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज के साथ क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थीं। औरंगजेब की एक ही मांग थी- इस्लाम मजहब को स्वीकार करो। वह गुरु तेग बहादुर जी से भी यही मांग कर रहा था। उसको लगता था गुरु जी इस्लाम में आ जाएंगे तो शेष भारतीयों को मतांतरित करना आसान हो जाएगा। वह अब भी यही मान रहा था कि यदि शिवाजी महाराज का बेटा मुसलमान हो जाएगा तो दक्षिण के पठारों में तो इस्लाम का झंडा फहराने ही लगेगा। लेकिन संभाजी दृढ़ थे। औरंगजेब ने उसके नाखून निकलवा दिए, आंखें फोड़ दीं और अंत में उनकी जुबान काट दी। अंत में औरंगजेब ने संभाजी का सिर कटवा दिया। लेकिन औरंगजेब के भीतर का पशु इतने पर भी शांत नहीं हुआ। उसने संभाजी के शरीर के कई टुकड़े करवा कर नदी में फिंकवा दिए। औरंगजेब इसी को अपनी जीत समझ रहा था। लेकिन भारत भी अंगड़ाई ले रहा था। उसकी एक आहट सप्त सिंधु में सुनाई दे रही थी, जब दशम गुरु गोबिंद सिंह जी ने पुआध क्षेत्र में खालसा पंथ की स्थापना करके भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय रच दिया। चमकौर की लड़ाई के बाद गुरु गोविंद सिंह जी ने औरंगजेब को जफरनामा यानी जीत की चि_ी लिखी। इस चि_ी ने औरंगजेब का काला चि_ा इतिहास में सुरक्षित कर दिया। 1707 में औरंगजेब अहमदनगर में सुपुर्दे खाक हो गया। उधर खालसा पंथ ने जम्मू कश्मीर के बंदा बहादुर के नेतृत्व में पश्चिमोत्तर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव हिला दी। औरंगजेब की लाश पड़ी थी। उसकी वसीयत पढ़ी गई। उसमें लिखा था कि मेरी मौत जहां भी हो, लेकिन मुझे खुल्दाबाद में ही दफनाया जाए जहां मेरे गुरु सैयद जैनुद्दीन शिराजी दफन हैं।
इसलिए औरंगजेब के बेटे ने उसकी कब्र अहमदनगर में न बना कर खुल्दाबाद में बनवाई। वह कब्र अब भी मौजूद है और भारत सरकार उसकी सार संभाल करती है। अब कब्र की बात। पंजाब में होला मोहल्ला के दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ के प्रतिनिधि निहंग समाज के निहंग बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं। वे दूर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के खुल्दाबाद में औरंगजेब की कब्र पर तो जा नहीं सकते। इसलिए वे आनंदपुर में ही औरंगजेब की प्रतीकात्मक कब्र बनाते हैं और जूतों से उसकी निरंतर पिटाई करते हैं। लेकिन पिछले कुछ अरसे से महाराष्ट्र के लोग भी गुस्से में हैं। सबसे पहले उन्होंने मांग की कि अहमदनगर, जहां औरंगजेब मरा था, का नाम अहिल्या बाई होल्कर के नाम पर अहिल्यानगर किया जाए। सरकार ने लंबे संघर्षों के बाद यह मांग पूरी कर दी। तब दूसरी मांग उठी। जिस औरंगजेब ने संभाजी महाराज को इतनी निर्दयता से मारा, उस औरंगजेब के नाम से भारत के किसी शहर का नाम क्यों रखा जाए? सरकार ने औरंगाबाद का नाम भी बदलकर संभाजी नगर कर दिया है। अब महाराष्ट्र औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग पर अड़ा है।