-नरेंद्र भारती-
भगदड़ मचने से रेलवे स्टेशन शमशानघाट बन गया दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भीड़ में भगदड़ मचने से एक बार फिर लाशों के ढेर लग गए चारों तरफ लाशें ही लाशें बिखर गई। महाकुम्भ जा रहे 18 लोगों की मौत हो गई। देश में भगदड़ की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं और बेकसूर लोग बेमौत मर रहे हैं जिसका ताजा घटनाक्रम 15 फ़रवरी शनिवार देर रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचने से 18 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। अभी कुम्भ की घटना की स्याही भी नहीं सुखी थी की दिल्ली में यह हादसा हो गया कुछ दिन पहले संगम स्थल पर हुआ था प्रयागराज में कुम्भ मेले में भगदड़ मचने से दर्जनों लोग मारे गए थे और सेकड़ों घायल हो गए थे। रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में मरने वालों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। ऐसा हादसा इससे पहले हाथरस में सत्संग में भगदड़ मचने से 120 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी।कुछ वर्ष पहले विजयदशमी के दिन रावण दहन के अवसर पर बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में देखने को मिला था जहां बिजली का तार टूटने की अफवाह से भगदड़ मचने के कारण 33 लोगो की दर्दनाक मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा घायल हो गए थे काश प्रशासन ने पिछली घटनाओं से सबक सीखा होता तो यह हादसा न होता। देश में भगदड़ मचने का यह कोई पहला हादसा नहीं है इससे पहले सैंकडों हादसे हो चुके है और हजारों लोग बेमौत मारे जा चुके है मगर यह हादसे कम नहीं हो रहे हैं। इन घटनाओं को हादसा नहीं हत्याऐं कहना गलत नहीं होगा। इस रावण दहन के अवसर पर गांधी मैदान में पांच लाख लोग आए थे लेकिन प्रशासन ने केवल एक ही द्वार खोल रखा था। कुम्भ में भगदड़ के कारण जिन्दा लोग पल भर में लाशों में बदल गए। देश में मंदिरों में मेले व अन्य पर्व अब आस्थास्थल न होकर मरणस्थल बनते जा रहे हैं। कुम्भ में चारों तरफ लाशों के ढेर ही नजर आ रहे थे। लोगों का सामान चारों तरफ बिखरा पडा था। भगदड़ में सैकडों महिलाएं, बच्चे व बुर्जुग पैरों तले कुचल दिए गए, लोग बदहवाश होकर अपनों को ढूंढ रहे थे। मगर उनके अपने मौत की नीद सो चुके थे। चारों तरफ चप्पलें व जूते नजर आ रहे थे। इसे प्रशासन की लापरवाही की संज्ञा दी जाए तो कोई आतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रशासन को पता था कि लाखों की तादाद में लोग व बच्चे आएगें तो सुरक्षा के इंतजाम क्यों नहीं किए गए। सरकार ने भले ही हादसे की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए है मगर जो काल का गाल बन गए उसकी भरपाई कैसे होगी। अब प्रशासन मृतकों को लाखो रुपया मंआवजा दे रही है अगर पहले से ही सुरक्षा के इंतजाम किए होते तो यह हादसा रुक सकता था। मुआवजा समस्या का हल नहीं है। सरकारो द्वारा जो पैसा मुआवजे के रुप में दिया जाता है उससे व्यवस्था को सुधारने में लगाया होता तो आज यह नौबत न आती। आकडों पर नजर डाले तो आत्मा सिहर उठती है। 3 फ़रवरी 1954 को कुम्भ मेले में भगदड़ मचने से 800 लोगों की मौत हुई थी। 1986 में भी कुम्भ में में भगदड़ मचने से 200 लोग मारे गए थे।2006 में भी सिंध नदी में 50 तीर्थयात्री बह गए थे। 10फरवरी 2013 को इलाहाबाद में कुम्भ मेले 36 लोगों की मौत हुई थी और 39 लोग घायल हुए थे। 26 जनवरी 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के मंधेरी मंदिर में 350 लोगों की दर्दनाक मौत हुई थी। नवंबर 2006 में उडीसा के शंदरपुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में आरती के समय भदड़ में चार लोगों की मौत हो गई थी और दर्जनो घायल हुए थे। झारखंड के देवधर के एक आश्रम में भगदड़ से 9 लोगों की मौत हो गई थी, 30 सितंबर 2008 को जोधपुर में चामुडा देवी मंदिर में 250 लोगों की मोत हुई थी। 3 अगस्त 2008 को हिमाचल प्रदेरूा के प्रसिध्द शक्तिपीठ नैना देवी में भगदड मचने से 162 लोग मारे गए थे तथा 300 घायल हुए थे। घटना के समय मंदिर में 20 से 25 हजार लोग मौजूद थे। मरने वालों में 104 लोग अकेले पंजाब के रहने वाले थे। 14 जनवरी 2011 को केरल के सबरीमाला मंदिर में भगदड़ में 106 श्रध्दालूओं की मौत हो गई थी और 100 से अधिक घायल हो गए थे। नंवबर 2012 में बिहार में छठ पुजा के दौरान गंगा नदी के घाट पर बना बांस का पुल टुटने से लोगों में भगदड़ मचने से 20 श्रध्दालुओं की मौत हो गई थी। बार-बार हादसे हो रहे हैं मगर सरकारें मूकदर्शक बनकर तमाशा देख रही है। प्रशासन तब जागता है जब लाशों के ढेर लग जाते हैं। प्रशासन को इन हादसों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। इस घटना ने प्रशासन की बदइंतजामी की पोल खोल दी हैं। इस हादसे में कई अनाथ हो गए तो माताएं व बहनों का सुहाग उजड गया। ऐसे हादसे ताउम्र रोते हुए छोड़ जातें है। छोटे बच्चे दर-दर की ठोकरें खातें हैं। केन्द्र सरकार को इन हादसों पर संज्ञान लेना चाहिए तथा दोषियो के खिलाफ कारवाई करनी चाहिए और प्रत्येक मंदिरों व आस्था स्थलों में आपदा से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन समितियां गठित करनी चाहिए। मंदिरो में हर वर्ष करोडो़ रूपया चढावा चढता है मगर श्रध्दालूओं की सुरक्षा रामभरोसे ही चल रही है। मंदिर कमेटियो को भी इन हादसो से सीख लेनी चाहिए। ताकि आने वाले समय में इन हृदयविदारक हादसो को रोका जा सके। अगर अब भी सबक न सीखा तो श्रध्दालूओं को मंदिरों में मौत की सौगातें मिलती रहेगी और आस्था स्थल व रेलवे स्टेशन शमशानघाट बनते रहेगें।
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