श्योपुर, मुरैना, भिंड और ग्वालियर रोजाना नौकरी करेंगे व्यापम के आरोपी तिवारी चारों जिलों की दूरी 250 कि.मी के दायरे में इतनी योग्यता और फुर्ती कि…?
मुकेश शर्मा/वेब वार्ता न्यूज एजेंसी (9617222272)
ग्वालियर। आप सभी पाठकों ने हीरा मंडी का नाम तो सुना ही होगा और न सुना हो तो हम बताते है हीरा मंडी बो अविभाजित भारत का बो स्थान जिसमें एक महाराजा, एक तवायफ और एक प्रतिष्ठित क्षेत्र: “हीरा मंडी की कहानी है”दर असल अविभाजित भारत में लाहौर की हीरा मंडी, जिसे संजय लीला भंसाली ने अपनी फिल्म ‘हीरामंडी’ में पेश किया है, मुगल संरक्षण के कारण कला की समृद्ध संस्कृति थी। महाराजा रणजीत सिंह को हीरा मंडी की एक नर्तकी से प्यार हो गया और उन्होंने उससे शादी कर ली। उन्होंने अपने प्यार के लिए विरोध और मार-पीट को बहादुरी से झेला पेश है हीरा मंडी की तरह पेस है मध्यप्रदेश गृह निर्माण मंडल एवम अधो संरचना विकास मंडल के आयुक्त चंद्रमौली शुक्ला और ग्वालियर प्रक्षेत्र में पदस्थ उपयंत्री राजेंद्र तिवारी का महाकाव्य हम इसको महाकाव्य इसलिए लिख रहे हैं क्योंकि जो व्यक्ति व्यापम जैसे कांड में जेल रह चुका हो और उसका मूल पद उप यंत्री हो उस पर हाउसिंग बोर्ड इतना प्यार क्यों लुटा रहा है कि उसकी मूल पदस्थापना श्योपुर में उप यंत्री के पद पर है श्योपुर का श्री तिवारी के पास सहायक यंत्री का प्रभार भी है इसके अलावा मुरैना,भिंड जिले श्योपुर डिविजन के अंतर्गत आते हैं तिवारी के पास श्योपुर डिविजन के कार्यपालन यंत्री का प्रभार भी है।हाऊसिंग बोर्ड को हीरा मंडी इसलिए भी लिखने को मजबूर हो रहा हूं क्योंकि दो महीने पहले गंभीर शिकायतों के आधार पर जिन राजेंद्र तिवारी ग्वालियर से श्योपुर उपयंत्री के पद पर ट्रांसफर किया गया था उनको को एक सप्ताह में उप यंत्री से सहायक यंत्री और कार्यपालन यंत्री के प्रभार सौंपने के आदेश स्थानीय स्तर पर दे दिए आखिर इतने प्रभार कैसे मिले?क्या तिवारी से सीनियर बोर्ड के टेक्निकल विभाग में कोई इंजीनियर नहीं है?
आश्चर्य तो तब होता है जब श्री तिवारी को दिनांक 06/07/2024 की शाम को हाउसिंग बोर्ड के संपदा अधिकारी का एक और अतिरिक्त प्रभार देदिया जबकि ग्वालियर से श्योपुर की दूरी लगभग 250 किलोमीटर और इतनी ही दूरी श्योपुर और भिंड की है। अब हाउसिंग बोर्ड के महाराजा रणजीत सिंह बन बैठे आयुक्त चंद्रमौली शुक्ला बताएं कि राजेंद्र तिवारी श्योपुर, मुरैना ,भिंड और ग्वालियर चार जिलों में कितने दिन बैठेंगे? भृष्टाचार में आकंठ में डूबे हीरा मंडी के दलाल को इतने प्रभार हाउसिंग बोर्ड के तथाकथित महाराजा रणजीत सिंह/चंद्र मौली शुक्ला ने किस नियम के तहत दिए?सामान्य प्रशासन विभाग के नियमानुसार किसी कनिष्ठ अधिकारी,कर्मचारी को वरिष्ठ पद का प्रभार दिया जाता है तो उसमे कारण दर्शाया जाता है कि इस पद के योग्य विभाग में कोई अधिकारी नहीं है परंतु तिवारी के मामले में ऐसा नहीं किया गया हाउसिंग बोर्ड ग्वालियर वृत में तिवारी से सीनियर लगभग आधा दर्जन उप यंत्री और सहायक यंत्री मौजूद हैं इसके अलावा श्री तिवारी का गृह क्षेत्र है ग्वालियर के हाउसिंग बोर्ड ऑफिस से महज 100 मीटर की दूरी पर तिवारी का निवास है फिर भी सभी नियमों को ताक पर रखकर तिवारी को एक और प्रभार सौंप दिया गया।हाउसिंग बोर्ड यानि लाहौर की हीरा मंडी की एक नर्तकी की तलाश अभी जारी है….? जो शायद भोपाल या ग्वालियर के वायुनगर में…… ?
जिस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने सुविख्यात हीरामंडी’ जो हीरा व्यापार के लिए जानी जाती थी उसको वैश्या बाजार में तब्दील करके पूरी दुनियां में बदनाम कर दिया ठीक उसी तरह हाउसिंग बोर्ड के तथाकथित महाराजा आयुक्त चंद्रमौली शुक्ला ने आपने अच्छे काम के लिए पूरे प्रदेश में पहचान बनाने वाले मध्यप्रदेश गृह निर्माण एवम अधो संरचना विकास मंडल को हीरा मंडी कुख्यात करदिया जहां पैसा फेंको तमाशा देखो?इसका प्रत्यक्ष उदाहरण राजेंद्र तिवारी को दिए आधा दर्जन प्रभार हैं।अब कुछ जानिए हीरा मंडी के बारे में..
18वीं सदी के अंत में महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिखों के लाहौर पहुंचने से बहुत पहले हीरा मंडी संस्कृति, कला और व्यापार का प्रमुख केंद्र था, साथ ही यह समाज के अभिजात वर्ग का मनोरंजन करने वाली तवायफों और कलाकारों से भी जुड़ा हुआ था। मुगलों के समय में हीरा मंडी को शाही मोहल्ला कहा जाता था।
इस इलाके को अपना वर्तमान नाम कैसे मिला, इसके बारे में अलग-अलग संस्करण हैं। जबकि कुछ खातों में कहा गया है कि मुगलों के दौरान इलाके में हीरे (हीरा) के व्यापार के कारण इसका नाम हीरा मंडी पड़ा, सिख साम्राज्य के तहत इलाके का नाम हीरा मंडी रखा गया था।
जब महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिखों ने 1799 में लाहौर पर विजय प्राप्त की, तो साम्राज्य की राजधानी गुजरांवाला थी। लाहौर और गुजरांवाला दोनों अब पाकिस्तान में हैं।
यद्यपि महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी राजधानी लाहौर स्थानांतरित करने के पीछे कुछ रणनीतिक कारण थे, फिर भी वे अपनी मृत्यु तक वहीं रहे और वहीं से कार्य करते रहे, जिसका एक कारण वहां की एक वेश्या – मोरन सरकार – के प्रति उनका प्रेम भी था।
यहां हीरा मंडी की कहानी है कि कैसे यह सिख महाराजा के शासन में विकसित हुई और कैसे इसे अपना वर्तमान नाम मिला।
मुगलों का शाही मोहल्ला
हीरा मंडी का इतिहास 17वीं सदी से जुड़ा है। पहले इसे ‘शाही मोहल्ला’ या शाही पड़ोस कहा जाता था और यहां राजकुमार और रईस आते थे।
मुगल काल के दौरान, शाही दरबार के मनोरंजन के लिए अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान से महिलाओं को हीरा मंडी में लाया जाता था।
इन महिलाओं को शास्त्रीय कथक, मुजरा, ठुमरी, ग़ज़ल और दादरा सहित विभिन्न कलाओं में प्रशिक्षित किया गया और शास्त्रीय नृत्य और गायन में निपुणता प्राप्त करने के बाद वे तवायफ़ बन गईं।
तवायफ़ें संगीत, नृत्य और अन्य कलाओं में अत्यधिक कुशल थीं और प्रभावशाली, परिष्कृत और मूल्यवान थीं। वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र थीं और अपने जीवन और विकल्पों पर नियंत्रण रखती थीं।
हालाँकि इस्लाम में वेश्यावृत्ति वर्जित है, लेकिन मुगल शासकों के संरक्षण में शाही मोहल्ला फलता-फूलता रहा। मुगल शासन के तहत लाहौर तीन शक्ति केंद्रों में से एक था, अन्य दो दिल्ली और आगरा थे। इसकी समृद्धि चमकती थी, और यह शाही मोहल्ले में भी परिलक्षित होती थी।
मुगल शासन के दौरान यह क्षेत्र अपनी आर्थिक और सांस्कृतिक ऊंचाइयों पर पहुंच गया था। लेकिन 18वीं सदी की शुरुआत में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा। 12 जनवरी, 1748 को अहमद शाह दुर्रानी और अफगान सेना के लाहौर में प्रवेश करने के बाद, शाही मोहल्ला वेश्यावृत्ति के केंद्र में तब्दील हो गया। 1799 में महाराजा रणजीत सिंह के लाहौर पर विजय प्राप्त करने तक स्थिति वैसी ही रही।
महाराजा रणजीत सिंह और मोरन के प्रति उनका प्रेम
सिख समूह शुकरचकिया के युवा सरदार रणजीत सिंह ने 17 साल की उम्र में लाहौर पर कब्ज़ा कर लिया और 1801 में खुद को पंजाब का महाराजा घोषित कर दिया। महाराजा अपनी सैन्य शक्ति के लिए जाने जाते थे, लेकिन वे सुंदरता और कला के भी बड़े प्रेमी थे। कहानी जारी रहेगी..…*!राजेंद्र तिवारी के मामले में आयुक्त चंद्रमौली शुक्ला से हाउसिंग बोर्ड का पक्ष जानना चाहा तो उनका मोबाइल रिसीव नहीं हुआ तब उनके वाट्सएप नंबर पर मैसेज किया लेकिन उसका भी कोई उत्तर नहीं मिला।
इनका कहना है
राजेंद्र तिवारी का संपत्ति अधिकारी के प्रभार वाला आदेश मेरेपास नहीं है क्योंकि आदेश न तो विभाग के वाट्सएप ग्रुप में आया और न मेल पर बो शुक्रवार शाम को स्वयं लेकर आयेथे।
-एन डी अहिरवार, उपायुक्त मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड वृत ग्वालियर