लेह (वेब वार्ता)। केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के लेह शहर में Leh Apex Body (LAB) और Kargil Democratic Alliance (KDA) की ओर से शनिवार (18 अक्टूबर 2025) को संयुक्त रूप से आहूत मौन मार्च को अधिकारियों ने कड़े सुरक्षा उपाय लागू करके और मोबाइल इंटरनेट बंद करके विफल कर दिया गया। वहीं, कारगिल में KDA नेताओं की ओर से लेह में लगाए गए प्रतिबंधों की निंदा करते हुए एक शांतिपूर्ण मौन मार्च निकाला गया।
यह विरोध-प्रदर्शन संवैधानिक रूप से छठी अनुसूची के अंतर्गत राज्य का दर्जा और सुरक्षा उपाय प्रदान करने के लिए फिर से शुरू हुए आंदोलन का हिस्सा है। हालांकि, LAB और KDA दोनों ने 24 सितंबर की गोलीबारी की घटना की न्यायिक जांच की घोषणा का स्वागत किया है, जिसमें कई लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हुए थे।
सुरक्षा उपाय एवं कार्रवाई
लेह में कार्रवाई को लेकर अधिकारियों ने कहा कि “दोनों आंदोलनकारी समूहों की ओर से शनिवार (18 अक्टूबर) की सुबह 10 बजे से दो घंटे के मौन मार्च और शाम 6 बजे से लद्दाख में तीन घंटे के ब्लैकआउट के आह्वान के बीच लेह और आसपास के इलाकों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों को भारी संख्या में तैनात किया गया था। यह आह्वान 24 सितंबर को व्यापक हिंसा में मारे गए, घायल हुए या गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिए गए लोगों के प्रति एकजुटता व्यक्त करने के लिए किया गया था।”
उन्होंने कहा कि “कानून-व्यवस्था बिगड़ने के डर से अधिकारियों ने लेह में बंधनात्मक धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी, मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए शैक्षणिक संस्थानों को भी बंद करने का आदेश दिया।”
मांगें उठाने के लिए किया था मौन मार्च, प्रशासन ने दिखा दी अपनी ताकत – अशरफ
अशरफ अली बरचा (अध्यक्ष, अंजुमन इमामिया और LAB सदस्य) ने संवाददाताओं से कहा कि “हमने अपनी मांगों को शांतिपूर्ण ढंग से उठाने के लिए मौन मार्च का आह्वान किया था। लेकिन प्रशासन ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करके अपनी विफलता साबित कर दी है। उन्होंने भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया और लोगों को मार्च के लिए इकट्ठा नहीं होने दिया।” उन्होंने कहा कि “सरकार को लोगों को डराने-धमकाने के लिए इस तरह के प्रतिबंध लगाने के बजाय उनसे बातचीत करनी चाहिए।”
जबकि, अब्दुल कयूम (अध्यक्ष, अंजुमन मोइन उल इस्लाम) ने दावा किया कि LAB के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजे को भी नजरबंद कर दिया गया है और लोगों से अपील की गई है कि वे कड़े सुरक्षा उपायों के मद्देनज़र मार्च स्थल तक पहुँचने का कोई प्रयास न करें। उन्होंने कहा, “हम कोई टकराव नहीं चाहते हैं और किसी को भी (केंद्र सरकार के साथ) बातचीत को विफल नहीं करने देंगे। हम फिर मिलेंगे और आगे की रणनीति तय करेंगे।”
मार्च में काली पट्टियाँ निकले लोग, तख्तियों पर लिखी मांगें
On 22 Oct, Apex Body #Leh & #Kargil Democratic Alliance will jointly attend the sub-committee meeting.
We are meeting for Statehood & Sixth Schedule, justice for 24 September victims, and release of detainees including #SonamWangchuk.
We believe only genuine dialogue can… pic.twitter.com/FebZGECqdB— 𝐒𝐚𝐣𝐣𝐚𝐝 𝐊𝐚𝐫𝐠𝐢𝐥𝐢 | سجاد کرگلی (@SajjadKargili_) October 19, 2025
कारगिल में, सह-अध्यक्ष असगर अली करबलाई और सज्जाद कारगिली सहित KDA नेताओं के नेतृत्व में सैकड़ों लोगों ने हुसैनी पार्क से मुख्य बाजार होते हुए मुख्य बस अड्डे तक शांतिपूर्ण मार्च निकाला। प्रतिभागियों ने काली पट्टियाँ बांध रखी थीं और छठी अनुसूची व राज्य का दर्जा की अपनी मांग दोहराते हुए तख्तियाँ लिए हुए थे।
सज्जाद कारगिली ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि “हम लेह में 24 सितंबर को हुई हिंसा की न्यायिक जांच के आदेश देने के केंद्र के फैसले का स्वागत करते हैं और चाहते हैं कि सरकार जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक सहित सभी हिरासत में लिए गए लोगों की बिना शर्त रिहाई और मारे गए चार लोगों एवं घायलों के परिवारों को पर्याप्त मुआवजा देने की घोषणा करे।”
बाद में पत्रकारों से बात करते हुए, करबलाई ने लेह में LAB नेतृत्व एवं लोगों पर लगाए गए प्रतिबंधों की निंदा की और कहा कि “लद्दाख के शांतिप्रिय लोगों को ऐसे दमनकारी कदम स्वीकार्य नहीं हैं। हम न्यायिक जांच का स्वागत करते हैं और चाहते हैं कि सरकार बातचीत फिर से शुरू करने से पहले दो और कदम उठाए। हम हमेशा बातचीत के पक्ष में रहे हैं- पहले भी, आज भी और कल भी। सरकार पीड़ितों के लिए मुआवजे की घोषणा करे और हिरासत में लिए गए लोगों की रिहाई का आदेश दे।”
उन्होंने आगे कहा कि “लद्दाख के लोग थके नहीं हैं, न ही झुकने को तैयार हैं और न ही डरे जा सकते हैं। हम अपनी जायज मांगों के लिए किसी भी तरह की कुर्बानी देने को तैयार हैं।” करबलाई ने लेह हिंसा के बाद उनके समर्थन करने वाले देश के नागरिक समाज का धन्यवाद किया और उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, जिन्होंने लद्दाख के लोगों को राष्ट्र-विरोधी बताकर उनकी छवि खराब करने की कोशिश की।
आंदोलन की पृष्ठभूमि एवं प्रवृत्ति
लद्दाख में पिछले कई वर्षों से चल रहा यह आंदोलन स्पष्ट रूप से राज्य-दर्जा (Statehood) और संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule) के भीतर विशेष संवैधानिक सुरक्षा की मांग लेकर चला आ रहा है। 2019 में जम्मू-कश्मीर से लद्दाख के पृथक केन्द्रशासित प्रदेश बनाए जाने के बाद यह मांग और अधिक तीव्र हो गई है।
24 सितंबर 2025 को लेह में हुए विवादित प्रदर्शन में चार लोगों की मौत और सत्तर से अधिक घायल हुए थे, जिसके बाद गृह मंत्रालय ने सामाजिक अशांति को कम करने के लिए लेह एवं कारगिल में कड़े सुरक्षा उपाय लागू किए थे।
सरकार एवं संवाद प्रक्रिया
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बताया है कि वह LAB एवं KDA के साथ संवाद में सक्रिय है। “हाई-पावर कमिटी एवं उप-समितियों के माध्यम से चर्चा की जा रही है” — मंत्रालय का यह बयान आंदोलनकारियों द्वारा उठाई गई प्रतीक्षा और असमंजस को शांत करने का प्रयास माना जा रहा है। अगले दौर की वार्ता 22 अक्टूबर 2025 को नई दिल्ली में तय हुई है, जिसमें प्रमुख रूप से राज्य-दर्जा व छठी अनुसूची शामिल होंगे।
आगे की चुनौतियाँ
लेह व कारगिल दोनों जिलों में यह स्पष्ट हो गया है कि स्थानीय आबादी से संवाद व संवैधानिक सुरक्षा की मांग मुख्य है। हालाँकि शांति मार्च में हिंसा नहीं हुई, पर लद्दाख में व्यापक सुरक्षा व्यवस्था एवं इंटरनेट बंदी जैसी उपायों ने आंदोलन को नियंत्रित-हालात में सीमित कर दिया है। इस तरह नियंत्रण की नीति व दबाव की कार्रवाई, दोनों मिलकर सामाजिक असंतोष को और बढ़ा सकती हैं।
भविष्य में किस तरह की वार्ता निष्कर्ष-परक होंगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार समयबद्ध रूप से मुआवजे, हिरासत में लिए गए लोगों की रिहाई व संवैधानिक गारंटी की दिशा में ठोस कदम उठाती है; जैसे कि LAB ने कहा है— “हम बातचीत के पक्ष में हैं, पर पहले कार्रवाई देखना चाहते हैं।”
निष्कर्ष
लद्दाख में यह आंदोलन केवल प्रशासन-विरोधी नहीं है, बल्कि भू-राजनीतिक-सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयाम गहरे हैं। केंद्र व स्थानीय गुटों के बीच वार्ता व भरोसा का स्तर अब निर्णायक मोड़ पर है। लेह में मार्च रोकना प्रशासन की तात्कालिक सख्ती का परिणाम है, पर लंबी अवधि में स्थिर समाधान के लिए आधिकारिक प्रतिबद्धता व संयम दोनों आवश्यक होंगे।