ढाका/इस्लामाबाद, (वेब वार्ता)। भारत को तीन तरफ से घेरने की पाकिस्तान की रणनीति एक बार फिर विफल हो गई। पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार शनिवार को बांग्लादेश के दो दिवसीय दौरे पर ढाका पहुंचे, लेकिन पहले ही दिन उन्हें बड़ा झटका लगा।
54 साल पुराने जख्म फिर ताजा
डार 2012 के बाद बांग्लादेश की यात्रा करने वाले सबसे वरिष्ठ पाकिस्तानी नेता हैं। उनका उद्देश्य था कि भारत विरोधी कूटनीतिक चाल चलने के लिए ढाका के साथ रिश्ते मजबूत किए जाएं। लेकिन बातचीत का केंद्र 1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम बन गया।
बांग्लादेश के विदेश सलाहकार एम. तौहीद हुसैन ने साफ कहा:
“54 साल से अनसुलझे मुद्दे एक ही बैठक में हल नहीं हो सकते।”
उन्होंने डार के सामने 1971 की जंग के लिए पाकिस्तान से माफी मांगने, संपत्ति विवाद और फंसे पाकिस्तानी नागरिकों के मुद्दे उठाए।
डार की दलीलें खारिज
मुलाकात के बाद हुसैन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा:
“दोनों देशों ने अपनी-अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। बातचीत जारी रहेगी, लेकिन मतभेद बने हुए हैं।”
इसका मतलब साफ है कि रिश्तों में सुधार की पाकिस्तान की उम्मीदें पहले दिन ही ध्वस्त हो गईं।
एमओयू पर सहमति, लेकिन तल्खियां कायम
हालांकि, तमाम मतभेदों के बीच दोनों देशों के बीच एक समझौते और पांच एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। हुसैन ने कहा कि ऐतिहासिक विवादों को बातचीत से सुलझाना ही बेहतर होगा।
भारत विरोधी चाल नाकाम
डार का यह दौरा भारत के खिलाफ कूटनीतिक चाल माना जा रहा था। वे हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मिले थे और चाहते थे कि चीन-बांग्लादेश-पाकिस्तान गठजोड़ बन सके। लेकिन ढाका ने साफ कर दिया कि 1971 के घाव भरे बिना नई शुरुआत संभव नहीं है।
गौरतलब है कि 2012 में हिना रब्बानी खार भी ढाका गई थीं, लेकिन उस समय भी पाकिस्तान को कोई फायदा नहीं हुआ था।
1971 का दर्द अब भी बाकी
पाकिस्तान से उम्मीद थी कि वह इस बार 1971 के अत्याचारों के लिए माफी मांगेगा, जब पाकिस्तानी सेना पर हत्या, बलात्कार और आगजनी के आरोप लगे थे। भारत की मदद से बांग्लादेश उस समय आजाद हुआ था।
लेकिन अब भी ढाका का रुख सख्त है—इतिहास सुलझाए बिना रिश्ते नहीं सुधरेंगे।