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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: मानसिक स्वास्थ्य को जीवन का अधिकार, छात्र आत्महत्या रोकने के लिए 15 दिशा-निर्देश जारी

नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। देश में बढ़ते छात्र आत्महत्या के मामलों ने न केवल शिक्षा जगत बल्कि पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। इसी गंभीर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने मानसिक स्वास्थ्य को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा मानते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने छात्रों की सुरक्षा और मानसिक भलाई सुनिश्चित करने के लिए 15 अहम दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिन्हें सभी शैक्षणिक संस्थानों में लागू करना अनिवार्य होगा।


कोर्ट के 15 प्रमुख दिशा-निर्देश:

  1. मानसिक स्वास्थ्य नीति अनिवार्य – सभी शिक्षा संस्थानों को अपनी मानसिक स्वास्थ्य नीति बनानी होगी।

  2. प्रशिक्षित काउंसलर और मनोवैज्ञानिक की नियुक्ति – 100 या उससे अधिक छात्रों वाले संस्थानों में पूर्णकालिक नियुक्ति।

  3. छोटे संस्थानों को भी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से नियमित सहयोग लेना होगा।

  4. मानसिक स्वास्थ्य में लापरवाही को अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा।

  5. रैगिंग, यौन शोषण और भेदभाव पर गोपनीय व सशक्त शिकायत तंत्र

  6. पेरेंट-टीचर मीटिंग में मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों पर चर्चा अनिवार्य

  7. हॉस्टलों में छत, बालकनी और पंखों पर सुरक्षा उपकरण लगाना जरूरी।

  8. मेरिट आधारित बैच सिस्टम खत्म करना।

  9. 24×7 मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन की व्यवस्था।

  10. मानसिक स्वास्थ्य आपात स्थिति के लिए अस्पताल सुविधा।

  11. शिक्षण स्टाफ की साल में दो बार मानसिक स्वास्थ्य ट्रेनिंग

  12. अभिभावकों के लिए जागरूकता अभियान।
    13–15. अन्य तकनीकी और सुरक्षा उपाय, जो सरकार के स्थायी नियमों में जोड़े जाएंगे।


गंभीर आंकड़े और पृष्ठभूमि

एनसीआरबी के अनुसार, 2022 में 13,044 छात्रों ने आत्महत्या की, जिनमें 2,248 छात्र परीक्षा में असफल होने के कारण यह कदम उठाने को मजबूर हुए। कोर्ट ने इसे शिक्षा व्यवस्था की गंभीर खामी और मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता की कमी का परिणाम बताया।


विशेषज्ञों की राय

  • अधिवक्ता अनुराग जैन: “मानसिक स्वास्थ्य को गरिमा और सुरक्षा से जोड़ना प्रगतिशील कदम है।”

  • अधिवक्ता अपूर्वा सिंघल: “यह निर्णय छात्रों में आत्महत्या के मामलों में कमी लाने में सहायक होगा।”

  • वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सुमित गुप्ता: “कई बार परिवार के दबाव में इलाज बंद करना घातक होता है, इसलिए समाज में जागरूकता जरूरी है।”


सरकार के लिए स्पष्ट निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि दो महीने के भीतर स्थायी नियम बनाए जाएं और इन्हें सभी शिक्षा संस्थानों में लागू किया जाए।

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वेब वार्ता समाचार एजेंसी

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