Monday, October 20, 2025
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श्री रावण संहिता ग्रंथ में सभी सवालों के उत्तर मौजूद — पं. शिव शंकर पाठक

कुशीनगर, ममता तिवारी (वेब वार्ता)। ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, औषध विज्ञान और वास्तु के अद्भुत समागम वाले प्राचीन ग्रंथ श्री रावण संहिता में जीवन के हर पहलू का विशद वर्णन मौजूद है। इसमें विश्व के सभी योग, लग्न, ग्रह, नक्षत्र, देश-काल, और मानव जाति की कुंडलियों के फलादेश का संग्रह है, जिसके माध्यम से भूत, वर्तमान और भविष्य का सटीक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

यह प्राचीन पांडुलिपि चिरकाल से विद्वान मनीषियों के सानिध्य में संरक्षित रही और अंततः ज्योतिषाचार्य पं. शिव शंकर पाठक के पूर्वज स्व. श्री परमानंद पाठक (शास्त्री जी) को आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त हुई। वर्तमान में यह अमूल्य ग्रंथ श्री रावण संहिता ज्योतिष केंद्र, पीताम्बरा शक्ति पीठ एवं तंत्र-मंत्र शोध संस्थान, गुरुवलिया (कुशीनगर) में सुरक्षित है।

📚 नौ खंडों में समाहित ज्ञान

पं. शिव शंकर पाठक ने विस्तार से बताया कि यह ग्रंथ नौ खंडों में विभाजित है और ज्ञान-विज्ञान का अद्वितीय स्रोत है।

  • प्रथम खंड – श्री रावण की जीवनी का विस्तृत विवरण।

  • द्वितीय खंड – उड्डीस तंत्र, औषध विज्ञान एवं परा-अपरा विद्या।

  • तृतीय खंड – पंच मकार साधना, तंत्र साधना, मारण-मोहन, स्तंभन, उच्चाटन और वशीकरण प्रयोग।

  • चतुर्थ खंड – योगी, यति, संन्यासियों और महात्माओं की कुंडलियों का संग्रह।

  • पंचम खंड – राजा, मंत्री और अधिकारी वर्ग की कुंडलियों का विश्लेषण।

  • षष्ठम खंड – सामान्य जन की कुंडलियों का संग्रह।

  • सप्तम खंड – भवन निर्माण के प्रकार, उपयुक्त वृक्षों का चयन, देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापना और उसके फल।

  • अष्टम खंड – नामाक्षर से प्रश्न तंत्र, मानव कल्याण हेतु प्रश्नों के उत्तर और समाधान।

  • नवम खंड – ग्रहों के अशुभ योग, जन्मान्तरार्जित कर्म और सुखमय भविष्य हेतु उपाय।

🕉️ जीवन मार्गदर्शन का अद्वितीय स्रोत

पं. पाठक ने बताया कि श्री रावण संहिता केवल ज्योतिषीय गणनाओं का संकलन नहीं है, बल्कि यह जीवन को दिशा देने वाला आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दस्तावेज भी है। इसमें वास्तु विज्ञान, ग्रह दोष निवारण, योग साधना और जीवन प्रबंधन के प्राचीन सूत्र समाहित हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास सुरक्षित यह ग्रंथ आज भी अनेक जिज्ञासुओं, शोधकर्ताओं और श्रद्धालुओं के लिए मार्गदर्शक का कार्य कर रहा है। उनके अनुसार, यह ज्ञान केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण के लिए संरक्षित और साझा किया जाना चाहिए।

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