–“मैं जान दे दूंगी, लेकिन किसी को अपनी भाषा छीनने नहीं दूंगी” – ममता बनर्जी
कोलकाता, (वेब वार्ता)। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को बीरभूम जिले के बोलपुर से एक नए आंदोलन की शुरुआत की है जिसे उन्होंने “भाषा आंदोलन” का नाम दिया। इस आंदोलन का उद्देश्य देशभर में बांग्ला भाषी प्रवासियों पर हो रहे कथित हमलों के खिलाफ आवाज़ उठाना और अपनी मातृभाषा की अस्मिता की रक्षा करना है।
“भाषा आंदोलन” की शुरुआत: अस्मिता की हुंकार
ममता बनर्जी ने अपने भाषण में स्पष्ट शब्दों में कहा:
“मैं जान दे दूंगी, लेकिन किसी को अपनी भाषा छीनने की इजाजत नहीं दूंगी।”
उन्होंने कहा कि वह किसी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन भाषा के नाम पर हो रहे भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ मजबूती से खड़ी हैं।
बांग्ला भाषा का वैश्विक महत्व
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाषण में बांग्ला भाषा की वैश्विक उपस्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा:
बांग्ला दुनिया में पांचवीं सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है
एशिया में यह दूसरे नंबर पर है
इसके बावजूद, बंगालियों को भारत में ही अपमान और भेदभाव झेलना पड़ रहा है
“आप सब कुछ भूल सकते हैं, लेकिन आपको अपनी अस्मिता, मातृभाषा और मातृभूमि को नहीं भूलना चाहिए।” — ममता बनर्जी
NRC और निरुद्ध केंद्रों का विरोध
ममता बनर्जी ने पड़ोसी राज्य बिहार में चल रही विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया (SIR) का हवाला देते हुए केंद्र सरकार पर NRC लागू करने की साजिश का आरोप लगाया। उन्होंने कहा:
“NRC को हम बंगाल में लागू नहीं होने देंगे। न कोई डिटेंशन सेंटर बनेगा, न ही लोगों को निकाला जाएगा।”
उन्होंने केंद्र सरकार के इरादों पर सवाल उठाते हुए निर्वाचन आयोग की भूमिका को भी संदेह के घेरे में बताया।
प्रधानमंत्री पर तीखा हमला
ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे निशाने साधे। उन्होंने तंज करते हुए पूछा:
“जब प्रधानमंत्री शेखों से गले मिलते हैं, तो क्या पहले उनसे धर्म पूछते हैं?”
“क्या आपने मालदीव के राष्ट्रपति से गले मिलते समय उनसे उनका धर्म पूछा था?”
उन्होंने केंद्र सरकार पर भेदभावपूर्ण नीतियों और धार्मिक आधार पर राजनीति करने का भी आरोप लगाया।
“बंगाल को बकाया नहीं, लेकिन पड़ोसी देश को 5000 करोड़!”
मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने:
बंगाल को उसका वैधानिक बकाया नहीं दिया
लेकिन एक पड़ोसी देश को 5,000 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता दी
इससे उन्होंने केंद्र सरकार की ‘राजनीतिक प्राथमिकताओं’ पर सवाल उठाया और कहा कि अपने ही राज्यों की उपेक्षा कर विदेशों में छवि निर्माण पर जोर दिया जा रहा है।
प्रवासी बंगालियों की चिंता
ममता ने यह भी सवाल उठाया कि:
“अगर हम बंगाल में 1.5 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को सम्मान से रखते हैं, तो आप अन्य राज्यों में काम करने वाले 22 लाख बंगालियों को क्यों नहीं स्वीकार कर सकते?”
इस कथन के माध्यम से उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर बंगालियों की स्थिति और सम्मान को लेकर चिंता जताई।
एकता में विविधता का संदेश
- उन्होंने कहा कि वह किसी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि भारत की विविधता में एकता की परंपरा को मजबूत बनाना चाहती हैं।
मातृभाषा का सम्मान जरूरी
उन्होंने भावुक होते हुए कहा:
“आप सब कुछ भूल सकते हैं, लेकिन अपनी अस्मिता, मातृभाषा और मातृभूमि को कभी नहीं भूलना चाहिए।”
राजनीतिक और सामाजिक संकेत
ममता बनर्जी का यह “भाषा आंदोलन” और NRC विरोध:
2026 बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले का रणनीतिक मोर्चा हो सकता है
बांग्ला अस्मिता और क्षेत्रीय गौरव के मुद्दे को फिर से केंद्र में ला रहा है
ममता अब केवल राजनीतिक विरोध नहीं, बल्कि संस्कृतिक और भाषाई अस्तित्व की लड़ाई को बढ़ावा दे रही हैं