ई पेपर
Sunday, September 14, 2025
WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक
सब्सक्राइब करें
हमारी सेवाएं

19 साल बाद निर्दोष साबित होकर रिहा हुए एहतेशाम, कहा — “न्यायपालिका और ईश्वर पर था अटूट भरोसा”

जौनपुर, 25 जुलाई (वेब वार्ता)। मुम्बई में वर्ष 2006 के सीरियल ट्रेन ब्लास्ट मामले में जेल में 19 साल बिताने के बाद एहतेशाम सिद्दीकी को सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया। जौनपुर ज़िले के खेतासराय थाना क्षेत्र के मनेच्छा गांव निवासी एहतेशाम को जैसे ही न्याय मिला, पूरे गांव और परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई।

अदालत ने माना — “अपराध करना असंभव प्रतीत होता है”

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मामले में शामिल सभी 12 आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि उपलब्ध सबूतों के आधार पर यह मानना कठिन है कि इन आरोपियों ने अपराध किया है। इससे पहले निचली अदालत ने इनमें से 5 को फांसी, जबकि 7 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। एहतेशाम भी उन्हीं में शामिल थे।

“जब मुझे गिरफ्तार किया गया, मेरी उम्र 24 साल थी”

एहतेशाम ने जेल से रिहा होकर हिंदुस्थान समाचार से बातचीत में कहा,

“जब मुझे ट्रेन ब्लास्ट का आरोपी बनाकर जेल भेजा गया, तब मेरी उम्र महज 24 साल थी। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा।”

पहले भी की गई थी गिरफ्तारी, बाद में कोर्ट ने किया बरी

एहतेशाम ने बताया कि 2001 में मुम्बई के कुर्ला इलाके में वह पढ़ाई के लिए एक लाइब्रेरी जाया करते थे, जो बाद में पता चला कि प्रतिबंधित संगठन सिमी से जुड़ी थी। “मुझे उस समय गिरफ्तार किया गया था, पर जल्दी ही बेल भी मिल गई थी। 2014 में कोर्ट ने उस केस में मुझे बरी कर दिया। लेकिन इसी आधार पर 2006 ब्लास्ट केस में फिर से फंसाया गया।”

“फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन मुझे न्यायपालिका पर भरोसा था”

एहतेशाम ने बताया कि इस केस में निचली अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी।

“मुझे पूरा भरोसा था कि एक दिन सच सामने आएगा। मैंने जेल में ही पढ़ाई जारी रखी और खुद अपने केस की कानूनी तैयारी भी की।”

जेल में की 22 डिग्रियां पूरी, धार्मिक ग्रंथों का किया अध्ययन

उन्होंने बताया कि जेल में रहते हुए उन्होंने बीटेक की अधूरी पढ़ाई पूरी की, और 22 अन्य डिग्रियां भी प्राप्त कीं।

“मैंने जेल में ही रामायण, गीता, कुरान और महाभारत जैसे ग्रंथों को पढ़ा। मेरे अध्ययन से मुझे आत्मबल मिला।”

उन्होंने यह भी बताया कि केस की सुनवाई शुरू होने और रिहाई की कामना के लिए उन्होंने लगभग 70 दिन का उपवास भी रखा था।

“धार्मिक ग्रन्थ पढ़ने के दौरान मुझे उपवास का महत्व समझ में आया और मैंने भगवान से प्रार्थना की कि न्याय मिले।”

“जेल में भी मिला सहयोग, खुद किया केस का अध्ययन”

एहतेशाम ने कहा कि जेल में पहले तो उन्हें आतंकवादी और देशद्रोही समझकर बुरा व्यवहार किया गया, लेकिन धीरे-धीरे उनके व्यवहार और पढ़ाई के प्रति लगन को देखकर जेल प्रशासन और साथी कैदी उनका सम्मान करने लगे।
उन्होंने RTI (सूचना का अधिकार) के ज़रिए खुद अपने केस से जुड़े साक्ष्य जुटाए और वकीलों के साथ केस की तैयारी की।

“मेरी पत्नी ने 19 साल इंतजार किया, मैं उसे सलाम करता हूं”

एहतेशाम ने कहा कि गिरफ्तारी के समय उनकी शादी को मात्र छह महीने ही हुए थे।

“मेरी पत्नी ने 19 साल तक मेरा इंतजार किया। यह साहस की मिसाल है। वह न्यायपालिका पर पूरा विश्वास रखती थी कि एक दिन मैं निर्दोष साबित होकर लौटूंगा।”

“घर लौटते ही बदला हुआ मिला शहर और गांव”

19 साल बाद घर लौटने पर एहतेशाम ने कहा,

“जौनपुर अब पहले जैसा नहीं रहा। बहुत विकास हो चुका है। कई साथी अब बूढ़े हो गए हैं, और नई पीढ़ी से भी मिलना हुआ। परिवार और रिश्तेदार लगातार मिलने आ रहे हैं।”

पिता ने कहा — “ईश्वर और न्यायपालिका पर था पूरा भरोसा”

एहतेशाम के पिता कुतुबुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि बेटे की रिहाई से पूरा परिवार बेहद खुश है।

“हमेशा उम्मीद थी कि एक दिन न्याय मिलेगा और आज वह दिन आ गया। ईश्वर और देश की न्यायपालिका को हम धन्यवाद देते हैं।”

Author

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

वेब वार्ता समाचार एजेंसी

संपादक: सईद अहमद

पता: 111, First Floor, Pratap Bhawan, BSZ Marg, ITO, New Delhi-110096

फोन नंबर: 8587018587

ईमेल: webvarta@gmail.com

सबसे लोकप्रिय

खबरें और भी