नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायिक क्षमता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए तीन नए न्यायाधीशों – विनोद कुमार, शैल जैन और मधु जैन – ने 24 जुलाई को पद की शपथ ली। यह शपथ समारोह हाईकोर्ट परिसर में आयोजित हुआ, जहां दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने तीनों को पद की शपथ दिलाई। विशेष बात यह रही कि तीनों न्यायाधीशों ने अपनी शपथ हिंदी भाषा में ली, जो भारतीय न्याय प्रणाली में भाषाई समावेशिता की दिशा में एक सराहनीय संकेत है।
इन नियुक्तियों के साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या बढ़कर 43 हो गई है, जबकि कोर्ट की स्वीकृत संख्या 60 है। इससे स्पष्ट है कि न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया अभी भी अधूरी है और अदालतों में लंबित मामलों के बोझ को कम करने के लिए और नियुक्तियाँ अपेक्षित हैं।
न्यायिक अनुभव और नियुक्ति प्रक्रिया
तीनों न्यायाधीश 1992 बैच के अनुभवी न्यायिक अधिकारी हैं, जिन्होंने दिल्ली की जिला न्यायपालिका में तीन दशक तक सेवा दी है।
विनोद कुमार – कड़कड़डूमा कोर्ट
मधु जैन – तीस हजारी कोर्ट
शैल जैन – साकेत कोर्ट
इन्हें हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा की गई थी, जिसकी अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई कर रहे हैं।
1 जुलाई को कॉलेजियम ने शैल जैन और मधु जैन के नामों की सिफारिश की थी, जबकि विनोद कुमार का नाम 2 जुलाई को आगे बढ़ाया गया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने 22 जुलाई को अधिसूचना जारी कर तीनों की नियुक्ति को अंतिम रूप दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट की बढ़ती जिम्मेदारी
दिल्ली हाईकोर्ट देश की सबसे व्यस्ततम उच्च न्यायालयों में से एक है, जहां प्रतिदिन सैकड़ों मामले सूचीबद्ध होते हैं। न्यायाधीशों की संख्या में यह वृद्धि न्याय प्रक्रिया को तेज, सुलभ और निष्पक्ष बनाने की दिशा में एक सार्थक कदम है। 21 जुलाई को ही छह अन्य न्यायाधीशों ने भी हाईकोर्ट में शपथ ली थी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका के उच्च स्तर पर नियुक्तियों में तीव्रता लाई जा रही है।
भाषाई विविधता की ओर एक कदम
तीनों नए न्यायाधीशों द्वारा हिंदी में शपथ लेना एक और सकारात्मक पहलू है, जो न्यायिक प्रणाली में क्षेत्रीय भाषाओं की भूमिका को मान्यता देने का प्रतीक है। इससे आम जनता में न्याय प्रणाली के प्रति भरोसा और जुड़ाव भी बढ़ेगा।
न्यायिक नियुक्तियाँ केवल प्रशासनिक प्रक्रियाएं नहीं होतीं, बल्कि यह लोकतंत्र की आधारशिला को मजबूत करने वाले निर्णय होते हैं। तीन नए न्यायाधीशों की नियुक्ति दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायिक ढांचे को मजबूती प्रदान करेगी और लाखों लंबित मामलों के शीघ्र निस्तारण में योगदान देगी।
अब आवश्यकता है कि शेष रिक्त पदों को भी शीघ्र भरने की दिशा में समान तत्परता दिखाई जाए, ताकि “न्याय में देरी, न्याय से वंचना” की स्थिति से देश को बाहर निकाला जा सके।
दिल्ली हाईकोर्ट की यह नई शुरुआत न्याय व्यवस्था में भरोसा, पारदर्शिता और दक्षता को बढ़ावा देने वाली है – और यही किसी भी लोकतंत्र की पहचान है।