Tuesday, July 22, 2025
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अब मप्र बनेगा ऑयल सीड हब

-किसान खुद उगाएंगे बीज, बाजार से दोगुनी मिलेगी कीमत

भोपाल, (वेब वार्ता)। मप्र में खेती और यहां का शरबती गहूं देश दुनिया में पहचान रखता है। प्रदेश में खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार नए प्रयोग भी होते रहे हैं। यही वजह है कि लगातार कृषि क्षेत्र में अग्रसर मप्र अब ऑयलसीड हब बनने जा रहा है। जिसके तहत प्रदेश के तीन जिलों में स्पेशल प्रोग्राम चलाया जाएगा। यहां के किसान अब तीन फसलों के बीज खरीदेंगे नहीं बल्कि उगायेंगे और ये बीज सरकार के जरिए अन्य किसानों की आपूर्ति करेंगे।

ये सभी जानते हैं कि, किसी भी फसल से उसके बीज का दाम काफी ज़्यादा होता है। लेकिन आम तौर पर किसान बीज सहकारी समितियों की मदद से खरीदते हैं, गेहूं धान से हटकर मप्र में तिलहन फसलें यानी सोयाबीन, सरसों और मूंगफली की खेती भी प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों में लगायी जाती है। लेकिन इन फसलों के लिए बढ़ते रकबे के हिसाब से कृषि संस्थान भी पर्याप्त बीज नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं। यही वजह है कि अब मप्र में एक विशेष प्रोजेक्ट लाया गया है, जो किसानों को उन्नत खेती के साथ भी कमाई का नया जरिया बनेगा।

मप्र में तिलहन फसलों के लिए सीड हब प्रोजेक्ट

भारत सरकार ने ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय को ऑयल सीड हब प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाया है। जिसके तहत मप्र के तीन जिलों में प्रदेश भर के किसानों को तिलहन फसलों के बीज उपलब्ध कराने के लिए बीज तैयार कराये जाएंगे जिसे सीड हब नाम दिया गया है। इन सीड हब में तीन प्रमुख फसलों के बीज तैयार कराये जाएंगे। पहले ऑयल सीड हब सीहोर में स्थापित किया जाएगा। जहां सोयाबीन के बीज तैयार होंगे। दूसरा मूंगफली के लिए शिवपुरी में और तीसरा हब मुरैना में सरसों के बीज के लिए है।

चंबल में किसानों के सिर चढ़ी मूंगफली

राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो। अरविंद कुमार शुक्ला ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि, पिछले कुछ वर्षों में मालवा के अलावा चंबल के शिवपुरी क्षेत्र में किसान मूंगफली की फसल लगाने लगे हैं। ऐसे में उन्हें मूंगफली की नई नई प्रजातियों की जरूरत है। कृषि विश्वविद्यालय ने मूंगफली की दो किस्में तैयार भी की हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में मूंगफली का रकबा भी लगातार बढ़ रहा है। पिछले साल के मुकाबले इस साल भी लगभग 1 लाख हेक्टेयर रकबा मूंगफली का बढ़ा है। ऐसे में मूंगफली के बीज किसानों को उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। सीड हब प्रोजेक्ट इसे नई दिशा देगा।

कैसे काम करता है सीड हब प्रोग्राम?

सीड हब प्रोग्राम के तहत विश्वविद्यालय द्वारा किसी क्षेत्र में चयनित किसानों को फसल के बीज उपलब्ध कराये जाते हैं। इसके बाद किसान इनकी बुवाई कर फसल तैयार करता है। फसल में समय पर और जरूरी पोषण के लिए अच्छी गुणवत्ता का खाद दिया जाता है, और फसल पकने पर उसे हार्वेस्ट कर लिया जाता है। यह कार्य कृषि वैज्ञानिकों की देखरेख में पूरा किया जाता है। यही फसल उन्नत किस्म के बीज के तौर पर तैयार होगी और फिर कृषि विश्वविद्यालय उनसे यह फसल बीज के लिए लेगा। उसे प्रोसेस करेगा और फिर अन्य किसानों को उपलब्ध कराएगा।

प्रदेश में कहां-कहां बनाये जाएंगे सीड हब

जैसा की हमने पहले बताया कि, चंबल अंचल के शिवपुरी क्षेत्र में मूंगफली अब व्यापक स्तर पर किसान लगा रहे हैं। ऐसे में मूंगफली सीड हब शिवपुरी में लगाया जाएगा, इसके अलावा दूसरा प्रोजेक्ट सोयाबीन सीड हब का है। चूंकि मप्र में सोयाबीन का उत्पादन सबसे ज्यादा मालवा क्षेत्र में होता है, इसलिए सोयाबीन सीड हब प्रोजेक्ट सीहोर में लगाया जाएगा। इसके लिए जवाहर लाल नहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी सोयाबीन के अच्छी किस्मों के बीज तैयार कर रहे हैं। किसान दोनों विश्वविद्यालय में से जिसके भी बीज चाहेगा वे बीज उस सीड हब प्रोग्राम में किसानों के खेतों में लगवाए जाएंगे। तीसरा सीड हब प्रोग्राम चंबल के मुरैना में शुरू कर दिया गया। यहां सरसों के बीज तैयार कराए जा रहे हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में किसान सरसों की खेती अधिक करते हैं और यहाँ सरसों के बीज की डिमांड काफी रहती है।

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वेब वार्ता समाचार एजेंसी

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