नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। 97 साल पुरानी इमारत हैदराबाद हाउस इतिहास और कूटनीति का अहम केंद्र बन चुकी है, लेकिन इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है। हाल ही यूरोपियन यूनियन (ईयू) की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन दो दिवसीय भारत दौरे पर हैं। उन्होंने नई दिल्ली स्थित ऐतिहासिक हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। यह वही स्थान है जहां भारत के प्रधानमंत्री अक्सर विदेशी मेहमानों से मुलाकात करते हैं। आजादी से पहले भारत में 560 देसी रियासतें थीं, जिन्हें ब्रिटिश शासन का हिस्सा नहीं माना जाता था। इन रियासतों के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1920 में ‘चैंबर ऑफ प्रिंसेस’ की स्थापना की। बैठकें अक्सर दिल्ली में होती थीं, लेकिन रियासतों के प्रमुखों के लिए ठहरने की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं थी। इसी जरूरत को देखते हुए हैदराबाद के निजाम मीर ओस्मान अली खान ने राजधानी में एक भव्य निवास बनाने का फैसला किया। वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) के पास 8.2 एकड़ भूमि खरीदने के बाद, उन्होंने अतिरिक्त 3.73 एकड़ जमीन भी हासिल कर ली। इस आलीशान इमारत को प्रसिद्ध ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने डिजाइन किया था, जिन्होंने राष्ट्रपति भवन सहित नई दिल्ली की कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण किया। आजादी के बाद 1954 में भारत सरकार ने इसे लीज पर लेकर विदेश मंत्रालय को सौंप दिया। 70 के दशक में एक समझौते के तहत इसे पूरी तरह केंद्र सरकार की संपत्ति बना दिया गया। अब यह भारत की राजनयिक मुलाकातों का प्रमुख केंद्र बन चुका है, जहां विश्व के बड़े नेता भारतीय प्रधानमंत्री से मुलाकात करते हैं। लुटियंस ने इसे बटरफ्लाई शेप में डिजाइन किया, जो वायसराय हाउस से मिलता-जुलता था। निर्माण में 50 लाख रुपये की लागत आई, जिसमें बर्मा से लकड़ी, न्यूयॉर्क से इलेक्ट्रिकल फिटिंग, लंदन की मशहूर कंपनियों से इंटीरियर डिजाइनिंग, इराक और तुर्की से कालीन, और लाहौर के प्रसिद्ध पेंटर अब्दुल रहमान चुगताई की 30 पेंटिंग शामिल थीं। इतना ही नहीं, निजाम के रुतबे के अनुसार डाइनिंग हॉल में एक साथ 500 मेहमानों के बैठने की व्यवस्था की गई थी। हालांकि, जब 1938 में पहली बार निजाम ने इस इमारत का दौरा किया, तो वह इसे देखकर निराश हो गए। उन्होंने इसकी तुलना घोड़े के अस्तबल से की और इसे पश्चिम की सस्ती नकल बताया।
हैदराबाद हाउस बन चुका इतिहास और कूटनीति का अहम केंद्र



