कुशीनगर, ममता तिवारी (वेब वार्ता)। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले स्थित किसान इंटर कॉलेज पिपरा बाजार में राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) के नियमित कार्यक्रम के अंतर्गत गोस्वामी तुलसीदास जयंती के पावन अवसर पर एक विचारगोष्ठी व परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ विद्यालय के प्रधानाचार्य अश्विनी कुमार पांडेय द्वारा संत तुलसीदास जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पण के साथ हुआ। इस अवसर पर उन्होंने कहा:
“गोस्वामी तुलसीदास भारत के जन-जन के हृदय में बसने वाले लोकदृष्टा कवि थे, जिन्होंने लोकमंगल की भावना से अनेक महान ग्रंथों की रचना कर सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना को नई दिशा दी।”
तुलसीदास: केवल कवि नहीं, सांस्कृतिक नवजागरण के अग्रदूत
परिचर्चा की शुरुआत करते हुए हिंदी विभाग के वरिष्ठ अध्यापक डॉ. विष्णु प्रताप चौबे ने तुलसीदास जी के जीवन-दर्शन पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा:
“तुलसीदास केवल एक कवि नहीं थे, बल्कि वे नवजागरण के अग्रदूत, नैतिक शिक्षक और सांस्कृतिक दूत थे। उनकी रचनाएं सिर्फ धार्मिक साहित्य नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने वाले सिद्धांतों का भंडार हैं।”
उन्होंने विशेष रूप से रामचरितमानस का उल्लेख करते हुए कहा कि यह ग्रंथ काव्य नहीं, जीवन-दर्शन है, जो पीढ़ियों से भारतीय समाज का मार्गदर्शन करता आ रहा है।
डॉ. चौबे ने यह भी कहा कि:
“आज जब समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, तब तुलसीदास जी की शिक्षाओं को स्मरण करना और उन्हें जीवन में उतारना अत्यंत आवश्यक है।”
शिक्षा जगत का उत्साहपूर्ण सहभाग
कार्यक्रम में विद्यालय के अन्य शिक्षकगण – कृष्ण कुमार मिश्र, सतीश कुशवाहा, अरुंधति दुबे, शिवेंद्र चौबे, चंद्र भूषण पांडेय, योगेंद्र यादव, प्रेम चंद्र चौरसिया समेत बड़ी संख्या में एनएसएस स्वयंसेवक व छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
छात्रों ने भी तुलसीदास जी के जीवन से प्रेरित कविताएं, भाषण और नारे प्रस्तुत कर आयोजन को रोचक व प्रेरणादायक बनाया।
संत तुलसीदास: सामाजिक समरसता के प्रतीक
सभी वक्ताओं ने यह बात साझा की कि गोस्वामी तुलसीदास का लेखन समाज में धार्मिक सहिष्णुता, नैतिकता, और समरसता के मूल्यों को मजबूत करता है। उनके ग्रंथ आज भी राष्ट्रीय एकता, पारिवारिक मूल्यों और आत्मिक शांति के मार्गदर्शक बने हुए हैं।
इस आयोजन के माध्यम से विद्यार्थियों को न केवल गोस्वामी तुलसीदास जी के साहित्यिक योगदान से परिचित कराया गया, बल्कि उनके नैतिक आदर्शों और सांस्कृतिक महत्व को भी उजागर किया गया। इस तरह के आयोजनों से युवाओं में भारतीय संस्कृति के प्रति गर्व और नैतिक जागरूकता का संचार होता है।