हरदोई (शाहाबाद), लक्ष्मीकान्त पाठक (वेब वार्ता)। उत्तर प्रदेश के शाहाबाद विकासखंड की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था आज गहरे संकट से जूझ रही है। सरकारी आंकड़ों में चाहे जितनी योजनाएं दर्शाई जा रही हों, लेकिन ज़मीनी हकीकत बेहद चिंताजनक और निराशाजनक है। यह क्षेत्र एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां लगभग 250 स्कूलों में से 60 से अधिक केवल एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। बुनियादी संरचना की बात करें तो अधिकांश स्कूलों में शौचालय, पीने का पानी, बिजली, फर्नीचर और सुरक्षित भवन जैसी न्यूनतम सुविधाएं तक मौजूद नहीं हैं।
बच्चों की उपस्थिति घटी, गुणवत्ता रसातल में
इन विषम परिस्थितियों का असर बच्चों की उपस्थिति पर साफ देखा जा सकता है। जहां एक ओर सरकार 100% नामांकन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का दावा करती है, वहीं यहां की स्कूलों में उपस्थिति महज़ 45-50% तक सीमित हो गई है। बच्चे फर्श पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं, और बारिश में टपकती छतें उनके भविष्य को भीगने से नहीं बचा पा रही हैं।
बालिकाओं की शिक्षा पर तिहरा संकट
शाहाबाद क्षेत्र के मुस्लिम और दलित बाहुल्य इलाकों में स्थित स्कूलों में बालिकाओं की उपस्थिति और भी चिंताजनक है। इसकी वजहें स्पष्ट हैं — महिला शिक्षकों की कमी, असुरक्षित शौचालय, और सामाजिक सोच जो अब भी कन्या शिक्षा को एक हाशिए पर रखती है। कई लड़कियां बीच में ही पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं।
मिड डे मील योजना की बदहाली
सरकार की मिड डे मील योजना भी यहाँ सिर्फ़ कागज़ों पर चलती नज़र आती है। कई विद्यालयों में या तो रसोइया नहीं है या फिर समय से राशन नहीं पहुंचता। कहीं दाल की जगह सिर्फ़ चावल परोसे जाते हैं, तो कहीं सब्ज़ी महीनों से गायब है। बच्चे भूखे पेट स्कूल छोड़ते हैं, और लौटते हैं खाली उम्मीदों के साथ।
विद्यालय प्रबंधन समिति और पंचायतें निष्क्रिय
विद्यालय प्रबंधन समितियाँ महज़ औपचारिकता निभा रही हैं। ग्राम पंचायतों के पास विकास के लिए बजट तो है, लेकिन उसके उपयोग में न पारदर्शिता है, न नियोजन। स्कूलों के मरम्मत कार्य वर्षों से लंबित हैं और डिजिटल संसाधनों की बात तो सपना मात्र बनकर रह गई है।
निरीक्षण सिर्फ़ फाइलों तक सीमित
शिक्षा विभाग के अधिकारी सिर्फ़ औपचारिक निरीक्षण करते हैं। फाइलों में सुधार दिखता है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर स्थिति जस की तस बनी हुई है। निपुण भारत मिशन, समग्र शिक्षा अभियान जैसी योजनाएं शाहाबाद क्षेत्र में विफल होती दिख रही हैं।
समाधान की राह क्या है?
स्थायी शिक्षकों की भर्ती: एकल शिक्षकों के सहारे शिक्षा नहीं चलाई जा सकती। शिक्षकों की तत्काल नियुक्ति होनी चाहिए।
बुनियादी ढांचे का नवीनीकरण: स्कूलों में शौचालय, पानी, फर्नीचर और छत जैसी प्राथमिक सुविधाओं की तत्काल जरूरत है।
डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा: हर स्कूल में स्मार्ट क्लास या डिजिटल लर्निंग की सुविधा होनी चाहिए।
सामुदायिक भागीदारी: शिक्षा को सामाजिक आंदोलन बनाना होगा, ताकि हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
शाहाबाद की नई पीढ़ी अगर सिर्फ़ सरकारी आंकड़ों में ही शिक्षित मानी जाएगी और हकीकत में शिक्षा से वंचित रहेगी, तो यह भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकता है। समय आ गया है जब केवल योजनाएं नहीं, बल्कि ज़मीनी अमल ज़रूरी है। शिक्षा का अधिकार तभी सार्थक होगा जब हर बच्चे तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा वास्तव में पहुँचे।