बस्ती, मुकेश शर्मा (वेब वार्ता)। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक भूले-बिसरे किंतु अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय ‘महुआ डाबर’ की स्मृतियों को जीवित रखने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक वेबिनार का आयोजन 3 अगस्त 2025 को ज़ूम प्लेटफॉर्म पर किया गया।
यह आयोजन महुआ डाबर म्यूज़ियम एवं डॉ. जनक सिंह सामाजिक-सांस्कृतिक शैक्षिक संस्था, बरेली के संयुक्त तत्वावधान में सम्पन्न हुआ।
मुख्य वक्ता: मोहम्मद अब्दुल लतीफ अंसारी
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता थे इतिहास शोधकर्ता एवं महुआ डाबर पुनरुद्धार अभियान के प्रणेता मोहम्मद अब्दुल लतीफ अंसारी।
उन्होंने 1857 के जनविद्रोह में ब्रिटिश सेना द्वारा पूरी तरह नष्ट किए गए ‘महुआ डाबर’ गांव की ऐतिहासिक यात्रा को आत्मीयता और भावनात्मक स्वर में साझा किया।
अंसारी ने कहा:
“यह सिर्फ मेरा मिशन नहीं, बल्कि उन हज़ारों मासूमों की आवाज़ है जिन्हें इतिहास ने भुला दिया।”
1994 में उन्होंने जब पहली बार उस स्थान को देखा, वहाँ केवल वीरान खेत थे। लेकिन मिट्टी में दबे खंडहर, जली मस्जिद के अवशेष, और स्थानीय लोक स्मृतियाँ उन्हें दिशा देती रहीं। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. अनिल कुमार के सहयोग से ऐतिहासिक उत्खनन कराकर महुआ डाबर को ऐतिहासिक मानचित्र पर पुनः स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई।
शोध, स्मृति और इतिहास का संगम
कार्यक्रम का संचालन डॉ. दीपक सिंह ने किया, स्वागत भाषण डॉ. सीमा गौतम ने प्रस्तुत किया, और समापन अवसर पर प्रो. आदित्य सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
प्रमुख प्रतिभागी:
प्रो. अनिल कुमार, प्रो. मनोज पांडे, डॉ. शालीन सिंह, डॉ. प्रशांत अग्निहोत्री, डॉ. अभिषेक पांडे, डॉ. शाह आलम राना, प्रसेनजीत कृतांत, डॉ. कल्पना, सागर सत्यार्थी सहित अनेक विशिष्ट शिक्षाविद एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का उद्देश्य
इस संवाद श्रृंखला का मूल उद्देश्य था: 1857 के स्वाधीनता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान देने वाले, किंतु ऐतिहासिक दृष्टि से उपेक्षित ‘महुआ डाबर’ के सत्य को उजागर करना।
यह वेबिनार न केवल इतिहास को पुनर्स्थापित करने का प्रयास था, बल्कि नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा और शोध की दिशा भी प्रस्तुत करता है।