Saturday, October 4, 2025
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जींद: किशोरावस्था शिक्षा संगोष्ठी में प्राचार्यों को जीवन कौशल, HIV जागरूकता पर प्रशिक्षण, अनिल मलिक बोले—रचनात्मक शिक्षा से विकसित करें बच्चों को

जींद, रजनीकांत चौधरी (वेब वार्ता)। हरियाणा के जींद जिले के गांव इक्कस स्थित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण केंद्र (DIET) में किशोरावस्था शिक्षा कार्यक्रम के तहत एक दिवसीय लघु प्रशिक्षण संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी का विषय “विद्यालय प्रशासन व प्राचार्य की भूमिका: बाल केंद्रित सहायक वातावरण को बढ़ावा देकर जीवन कौशल और भावनात्मक कल्याण को बढ़ाना” था। मुख्य वक्ता हरियाणा राज्य बाल कल्याण परिषद के मंडलीय बाल कल्याण अधिकारी रोहतक एवं राज्य नोडल अधिकारी अनिल मलिक ने कहा कि शिक्षाविदों और प्राचार्यों की भूमिका समाज में नई सोच पैदा करती है। उन्होंने प्राचार्यों को रचनात्मक शिक्षा पद्धति अपनाने और बच्चों में आउट ऑफ द बॉक्स थिंकिंग विकसित करने का आह्वान किया।

संगोष्ठी में जिला जींद के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाचार्यों ने भाग लिया। परामर्शदाता नीरज कुमार ने मनोवैज्ञानिक परामर्श केंद्रों की कार्यप्रणाली पर जानकारी दी। यह आयोजन किशोरों के भावनात्मक और यौन स्वास्थ्य पर केंद्रित था।

संगोष्ठी का मुख्य संदेश: किशोरावस्था में हार्मोनल बदलाव और जागरूकता

अनिल मलिक ने कहा, “किशोरावस्था में हार्मोनल बदलाव तेज होते हैं, जिससे भावनात्मक विकास में सही-गलत का निर्णय लेना कठिन होता है। विपरीत लिंग आकर्षण और साथियों के दबाव से भटकाव हो सकता है। इसलिए स्वस्थ यौन शिक्षा जरूरी है।” उन्होंने HIV (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) पर विस्तार से बताया कि यह CD4 कोशिकाओं को नष्ट करता है और शरीर के तरल पदार्थों से फैलता है। यदि समय पर उपचार न हो, तो AIDS (एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम) में बदल जाता है।

मलिक ने जोर दिया, “HIV संक्रमण है, AIDS बीमारी का चरण। प्रभावी उपचार से लंबा स्वस्थ जीवन संभव है। HIV न होने पर AIDS नहीं होता। प्राचार्य और शिक्षक जागरूक रहें, समाज में कलंक हटाएं।” उन्होंने प्राचार्यों को सशक्त लीडर बनने और समुदाय को जोड़ने का आह्वान किया।

जीवन कौशल पर फोकस: भावनात्मक कल्याण और समस्या समाधान

संगोष्ठी में किशोरों में विकसित करने वाले जीवन कौशल पर चर्चा हुई:

  • समय-प्रबंधन: दैनिक कार्यों में अनुशासन।
  • समस्या-समाधान: चुनौतियों का सामना।
  • भावनात्मक बुद्धिमत्ता: भावनाओं का प्रबंधन।
  • वित्तीय साक्षरता: आर्थिक निर्णय।
  • निर्णय क्षमता: सही-गलत का चयन।
  • आलोचनात्मक तर्कशीलता: विश्लेषणात्मक सोच।

मलिक ने कहा, “बच्चों को केंद्र में रखें। कार्ययोजना रचनात्मक हो। शुरुआत खुद से करें, जिम्मेदारी दिल से निभाएं।” परामर्शदाता नीरज कुमार ने राज्य बाल कल्याण परिषद के मनोवैज्ञानिक परामर्श केंद्रों की कार्यप्रणाली बताई, जो किशोरों के भावनात्मक कल्याण के लिए हैं।

संगोष्ठी की अध्यक्षता और उपस्थिति: सामूहिक प्रयास

संगोष्ठी की अध्यक्षता DIET प्राचार्या विजय लक्ष्मी के मार्गदर्शन में डॉ. जुगमहिंदर और सतीश शर्मा ने की। विशेष अतिथि राज्य बाल कल्याण परिषद के आजीवन सदस्य लाजपतराय सिंगल, नीरज कुमार और डॉ. अनूप शर्मा रहे।

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