Tuesday, October 21, 2025
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आजादी के 78 वर्ष बाद भी कछौना ब्लॉक के तीन मजरे अंधेरे में: दीपावली का उजाला फीका, ग्रामीणों का आक्रोश

हरदोई, लक्ष्मीकांत पाठक (वेब वार्ता)। आज़ादी के 78 वर्ष बाद भी जब देश डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी और हर घर रोशन जैसी योजनाओं की बातें करता है, तब उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के कछौना विकासखंड के तीन मजरे—किरतपुर (राधानगर), जालिमपुर और बालामू—अब भी अंधकार में डूबे हुए हैं। यह केवल बिजली की अनुपलब्धता की कहानी नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की लापरवाही और विकास के असमान वितरण का ज्वलंत उदाहरण है।

अंधेरे में दीपावली

विडंबना देखिए, जब पूरा देश दीपावली पर जगमगाने की तैयारी में है, इन गांवों के लोग अब भी दीपक और लालटेन से रातें काटने को मजबूर हैं। इन मजरों के करीब आधा सैकड़ा परिवारों के घरों में आज तक बिजली का तार नहीं पहुँचा। जहां एक ओर सरकार “हर घर बिजली” का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर ये ग्रामीण “हर रात अंधेरी” की सच्चाई जी रहे हैं।

बालामू का क्षेत्र दलित बाहुल्य है, लेकिन सामाजिक और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। विडंबना यह है कि यहां रेलवे लाइन, इंटर कॉलेज और ट्रस्ट संस्थान हैं, जहाँ सैकड़ों लोग प्रतिदिन आते हैं — फिर भी बिजली कनेक्शन के नाम पर सिर्फ वादे और फाइलें हैं।

विभागीय लापरवाही और प्रशासनिक सुस्ती

ग्रामीणों के अनुसार, सामाजिक कार्यकर्ता रोहित कुमार (राधानगर) और प्यारेलाल (जालिमपुर) ने वर्षों से विद्युतीकरण की मांग की, किंतु विभाग ने कभी गंभीरता नहीं दिखाई।
ग्राम प्रधान आलोक कुमार (विपिन), पूर्व प्रधान गौतम कनौजिया, और पंचायत सदस्य डॉ. मनोज सिंह ने भी कई बार पत्राचार किया, पर फाइलें केवल “विचाराधीन” रह गईं।

यह स्थिति केवल विभागीय अक्षमता नहीं बल्कि संवेदनहीनता का प्रतीक है। अधिकारियों का बयान कि “प्रस्ताव लंबित है” अब एक थका हुआ बहाना बन चुका है, जिससे ग्रामीणों के धैर्य की सीमा टूटने लगी है।

ग्रामीणों की पीड़ा, सत्ता की चुप्पी

एक ग्रामीण ने तंज़ भरे स्वर में कहा —

“हर घर रोशन का नारा है, लेकिन हमारा घर अब भी अंधेरे में है।”

यह एक वाक्य सरकार की तमाम घोषणाओं की सच्चाई को उजागर करता है। योजनाओं के नाम पर विज्ञापन चमकते हैं, लेकिन धरातल पर गांवों की बस्तियां बुझी पड़ी हैं।

योजनाओं का बेमानी असर

हर घर रोशन” जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं तभी सार्थक हैं जब उनका लाभ वास्तव में हर घर तक पहुँचे। लेकिन अगर आज भी तीन मजरे बिजली के अभाव में दीपक के सहारे जीवन बिता रहे हैं, तो यह न केवल नीतिगत असफलता है, बल्कि ग्रामीण भारत के साथ न्याय का अभाव भी है।

संपादकीय दृष्टिकोण:

अब वक्त है कि केवल रिपोर्ट और प्रस्तावों से आगे बढ़कर वास्तविक कार्रवाई की जाए।
कछौना, जालिमपुर, बालामू जैसे गांवों में बिजली न पहुँचना, केवल तकनीकी देरी नहीं — यह विकास की असमानता की करारी याद दिलाता है।
अगर शासन सचमुच “सबका साथ, सबका विकास” के सिद्धांत पर चलता है, तो उसे इन अंधेरे मजरों में भी रोशनी लानी होगी।

क्योंकि जब तक किरतपुर, जालिमपुर और बालामू के घरों में दीपक नहीं, बल्ब नहीं जलते, तब तक “हर घर रोशन” केवल एक नारा ही रहेगा — सच्चाई नहीं।

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