हरदोई, लक्ष्मी कान्त पाठक (वेब वार्ता)। हरदोई जिले के ग्रामीण अंचलों में सरकार द्वारा संचालित विकास योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, मनरेगा, शौचालय निर्माण, जल जीवन मिशन, सामुदायिक भवन और सड़क निर्माण—कागज़ों पर तो चमकती हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है।
भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत
ग्राम पंचायतों में होने वाले कार्यों में खुला खेल फर्रुखाबादी चल रहा है। कार्यों में ठेकेदारी प्रणाली, फर्जी मस्टर रोल, अपूर्ण निर्माण और घटिया सामग्री का प्रयोग आम हो चुका है। कई जगहों पर ऐसे भवन खड़े हैं जो बिना उपयोग के ही जर्जर हो चुके हैं, तो कई योजनाएं आधे में ही छोड़ दी गईं। गांव में बने सामुदायिक भवन, पंचायत भवन, खड़ंजा, नाली, जलनिकासी, सोलर लाइट जैसे कामों में प्रधान, सचिव, जेई और कभी-कभी बीडीओ की मिलीभगत से धन का बंदरबांट होता है। मनरेगा जैसी रोजगार गारंटी योजना भी अब “मित्रों को मजदूरी दिलाने” की स्कीम बन चुकी है।
अधिकारियों की चुप्पी: मौन सहमति या मजबूरी?
इस व्यापक भ्रष्टाचार के बीच सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि प्रशासनिक अधिकारी आंख मूंदे बैठे हैं। चाहे वह खंड विकास अधिकारी हो, जिला पंचायत राज अधिकारी या सीडीओ—ज्यादातर मामलों में शिकायतों पर कोई सुनवाई नहीं होती।
कई बार तो ग्रामीण जब शिकायत लेकर जाते हैं, तो उल्टा उन्हें ही “शिकायतबाज” कह कर अपमानित किया जाता है।
जनता की पीड़ा
शाहाबाद, टोडरपुर, भरावन, सुरसा, संडीला, मल्लावां जैसे ब्लॉकों से बार-बार यही खबरें आती हैं कि ग्राम विकास अधिकारी मौके पर आते ही नहीं, प्रधान के अनुसार ही मस्टर रोल भरते हैं और कार्यों का सत्यापन तक बिना जांच के कर देते हैं।गांव चठिया धनवार, बूढ़नपुर, मझियामऊ, गोधौलिया, सहादतनगर ,जैसे उदाहरण यह साफ करते हैं कि पंचायतों में लाखों खर्च होने के बावजूद गांव विकास की बजाय बर्बादी की तस्वीरें पेश कर रहे हैं।
लोकल मीडिया और जनजागरूकता की जिम्मेदारी
यह समय है जब पत्रकारिता केवल बयान छापने तक सीमित न रहकर जनमुद्दों की पड़ताल करे। जन सलाहकारी पत्रकारिता का उद्देश्य यही होना चाहिए कि वह ऐसे भ्रष्टाचार पर रोशनी डाले, ग्रामीणों की आवाज़ प्रशासन तक पहुंचाए और अधिकारियों को उनकी जिम्मेदारी का अहसास कराए।
समाधान क्या हो?
प्रत्येक योजना की ऑनलाइन ट्रैकिंग और पंचायतों की सार्वजनिक ऑडिटिंग अनिवार्य हो।
प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर जनसुनवाई शिविर नियमित हो।मीडिया को ग्रामीण रिपोर्टरों का प्रशिक्षण देकर पंचायत स्तर की निगरानी मजबूत की जाए।हर पंचायत पर व्हाट्सएप नंबर और पोर्टल के जरिए सीधे शिकायत दर्ज हो सके।भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई हो और उसकी सूचना सार्वजनिक हो।
समय रहते यदि ग्रामीण विकास में पारदर्शिता नहीं आई, तो ये योजनाएं सिर्फ अधिकारियों और पंचायत प्रतिनिधियों के लिए कमाई का जरिया बनती रहेंगी। जनता का पैसा जनता के हित में तभी लगेगा, जब जवाबदेही तय होगी।