हरदोई, लक्ष्मीकांत पाठक (वेब वार्ता)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि राज्यभर में सार्वजनिक भूमि या सार्वजनिक उपयोगिता के लिए आरक्षित भूमि पर हुए सभी अतिक्रमण 90 दिनों के भीतर हटाए जाएं। कोर्ट ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि ग्राम प्रधान, लेखपाल, और राजस्व अधिकारी किसी भी प्रकार की लापरवाही न बरतें, अन्यथा उनके खिलाफ विभागीय और आपराधिक कार्रवाई की जाएगी। यह आदेश जनहित याचिका पर पारित किया गया है। हरदोई जैसे जिलों में यह आदेश सरकारी जमीनों और तालाबों पर कब्जे की पुरानी समस्या को हल करने का मौका दे सकता है।
कोर्ट का तर्क: ग्रामसभा भूमि पर कब्जा ‘आपराधिक विश्वासघात’
न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की एकलपीठ ने यह आदेश मनोज कुमार सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। याचिका में आरोप था कि मिर्जापुर के चुनार क्षेत्र के चौका गांव में ग्रामीणों ने तालाब पर अवैध कब्जा कर लिया है, और शिकायतों के बावजूद प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया।
कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “ग्रामसभा की भूमि से अतिक्रमण हटाने या सूचना देने में ग्राम प्रधान, लेखपाल, और राजस्व अधिकारियों की निष्क्रियता आपराधिक विश्वासघात के समान है।” कोर्ट ने राज्य सरकार को 90 दिनों में सभी अतिक्रमण हटाने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया।
हरदोई में स्थिति: तालाबों और सरकारी जमीनों पर कब्जे
हरदोई में शाहाबाद तहसील सहित कई स्थानों पर दर्जनों तालाब और सरकारी जमीनें वर्षों से ग्राम प्रधानों, उनके सगे-संबंधियों, और प्रभावशाली लोगों के कब्जे में हैं। कई तालाबों को पाटकर पक्के मकान, गोदाम, और खेत बना दिए गए हैं। इससे सार्वजनिक संसाधनों का नुकसान हुआ है और ग्रामसभा की संपत्ति पर निजी कब्जे बढ़े हैं।
अब सवाल उठ रहा है:
क्या हरदोई के जिलाधिकारी अपने एसडीएम और तहसीलदारों से हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन कराकर लेखपालों से वास्तविक रिपोर्ट मंगवाएंगे?
क्या प्रधानों और उनके परिजनों द्वारा कब्जाई गई भूमि पर प्रशासन बिना भेदभाव कार्रवाई करेगा?
या यह मामला स्थानीय दबाव और राजनीतिक प्रभाव से “ठंडे बस्ते” में चला जाएगा?
पहले भी आए आदेश, लेकिन कार्रवाई नगण्य
इससे पहले उच्चतम न्यायालय और उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी जमीनों से अतिक्रमण हटाने के कई निर्देश जारी किए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कार्रवाई नगण्य रही है। कई गांवों में तालाबों पर पक्के मकान, चरागाहों में खेती, और बंजर भूमि पर कब्जे प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर करते हैं।
90 दिनों की समयसीमा: प्रशासन की परीक्षा
हाईकोर्ट ने 90 दिनों की सख्त समयसीमा तय की है। यदि इस अवधि में कार्रवाई नहीं हुई, तो एसडीएम, तहसीलदार, और लेखपालों की जवाबदेही तय होगी। अब देखना है कि हरदोई प्रशासन इस आदेश को न्याय की भावना से लागू करेगा या औपचारिकता तक सीमित रखेगा।
जनता की निगाहें प्रशासन के अगले कदमों पर टिकी हैं। क्या सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जों की रिपोर्ट दबाने वाले लेखपालों और प्रधानों के खिलाफ कार्रवाई होगी? इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश कानूनी निर्णय से अधिक जनहित और जवाबदेही की कसौटी है।