पटना, (वेब वार्ता)। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर सवाल उठाना जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के वरिष्ठ सांसद गिरधारी यादव को महंगा पड़ गया है। पार्टी ने उनके बयानों को अनुशासनहीनता करार देते हुए उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है। जदयू ने 15 दिनों के भीतर जवाब मांगा है, अन्यथा अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी है।
क्या है मामला?
बिहार में इन दिनों भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान चलाया जा रहा है। इसी बीच, बांका से सांसद गिरधारी यादव ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा था कि आयोग को व्यावहारिक ज्ञान नहीं है, और यह काम बिहार की सामाजिक व भौगोलिक जटिलताओं को समझे बिना जल्दबाज़ी में थोपा गया है। उन्होंने कहा कि इतने कम समय में आवश्यक दस्तावेज़ जुटाना असंभव है, विशेष रूप से उन परिवारों के लिए जिनके सदस्य विदेश में रहते हैं।
गिरधारी यादव ने कहा, “मेरा बेटा अमेरिका में है, वो एक महीने के भीतर कैसे हस्ताक्षर करेगा? इस पुनरीक्षण के लिए छह महीने का समय मिलना चाहिए था।”
जदयू ने जताई नाराजगी
जदयू के प्रदेश नेतृत्व ने गिरधारी यादव के बयान को पार्टी लाइन से भटकाव बताया है। पार्टी ने नोटिस में लिखा है कि संविधान के अनुच्छेद 324 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1950 के तहत निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची पुनरीक्षण का पूरा अधिकार है।
नोटिस में कहा गया है कि पार्टी ने हमेशा निर्वाचन आयोग और ईवीएम जैसे चुनावी उपकरणों का समर्थन किया है, चाहे वह भाजपा के साथ रही हो या अब एनडीए का हिस्सा हो। ऐसे में सार्वजनिक मंच से आयोग की आलोचना करना विपक्षी दलों के निराधार आरोपों को बल देने जैसा है।
राजनीतिक गलियारों में हलचल
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जदयू का यह कदम उस समय आया है जब बिहार में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। ऐसे में पार्टी किसी भी तरह के असहमति वाले स्वर को सार्वजनिक रूप से सामने आने से रोकना चाहती है। एसआईआर को लेकर विपक्षी दल भी हमलावर हैं और ऐसे में गिरधारी यादव की टिप्पणी को विपक्ष के लिए मुद्दा बनने से रोकना जदयू की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
क्या कहता है पार्टी संविधान?
जदयू के संविधान में स्पष्ट है कि पार्टी के नीतिगत मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से विपरीत राय रखना अनुशासनहीनता के अंतर्गत आता है। ऐसे मामलों में पहले चेतावनी और फिर कार्रवाई का प्रावधान है। गिरधारी यादव को जारी नोटिस इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।
क्या गिरधारी यादव देंगे जवाब?
अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि गिरधारी यादव पार्टी नेतृत्व को क्या जवाब देते हैं। क्या वे अपने बयान पर कायम रहते हैं या स्पष्टीकरण देकर मामले को शांत करने की कोशिश करते हैं। वहीं, अगर जवाब संतोषजनक नहीं रहा, तो उनके खिलाफ पार्टी कड़ी कार्रवाई कर सकती है, जिसमें अनुशासनात्मक समिति के समक्ष पेशी या निलंबन जैसे कदम शामिल हो सकते हैं।
निष्कर्ष:
बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में जब विधानसभा चुनाव की आहट सुनाई देने लगी हो, ऐसे में किसी वरिष्ठ सांसद का निर्वाचन आयोग पर सवाल उठाना सिर्फ पार्टी के लिए असहज स्थिति नहीं बनाता, बल्कि पूरी सत्ताधारी गठबंधन की छवि पर असर डाल सकता है। गिरधारी यादव का अगला कदम तय करेगा कि यह मुद्दा सुलझता है या और बड़ा राजनीतिक विवाद बनता है।