भोपाल, (वेब वार्ता)। MP News: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दो वरिष्ठ पत्रकारों की गिरफ्तारी ने सियासी और पत्रकारीय हलकों में हड़कंप मचा दिया है। राजस्थान पुलिस ने शुक्रवार को भोपाल के पत्रकार आनंद पांडे और हरिश दिवेकर को हिरासत में लिया। उन पर राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी के खिलाफ डिजिटल प्लेटफॉर्म पर झूठी और अपमानजनक खबरें प्रकाशित करने तथा ब्लैकमेलिंग का आरोप है। इस कार्रवाई की कांग्रेस और कई पत्रकार संगठनों ने कड़ी निंदा की है, इसे प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर हमला करार दिया है।
पत्रकारों पर क्या हैं आरोप?
आनंद पांडे और हरिश दिवेकर ‘द सूत्र’ नामक डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म और यूट्यूब चैनल संचालित करते हैं। राजस्थान पुलिस के अनुसार, 28 सितंबर 2024 को जयपुर के सिविल लाइंस निवासी नरेंद्र सिंह राठौड़ ने साइबर क्राइम थाने में शिकायत दर्ज की थी। शिकायत में आरोप था कि दोनों पत्रकारों ने दीया कुमारी के खिलाफ अपमानजनक खबरें प्रकाशित कीं और उन्हें हटाने के बदले 5 करोड़ रुपये की रंगदारी मांगी।
पुलिस ने तकनीकी साक्ष्य और गवाहों के बयान जुटाए, जिसके बाद 17 अक्टूबर 2025 को भोपाल पहुंचकर दोनों पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया और जयपुर ले जाया गया। जयपुर पुलिस आयुक्त बीजू जॉर्ज जोसेफ ने गिरफ्तारी की पुष्टि की। दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी), 506 (धमकी) और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) एक्ट के तहत मामला दर्ज है। मध्य प्रदेश पुलिस ने इस मामले पर चुप्पी साध रखी है।
कांग्रेस का तीखा विरोध: ‘लोकतंत्र खतरे में’
कांग्रेस नेता अरुण यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा, “जब सच बोलने वाले पत्रकार जेलों में हों और झूठ फैलाने वाले आज़ाद घूमें, तब समझिए लोकतंत्र खतरे में है। आनंद पांडे और हरिश दिवेकर की गिरफ्तारी सीधे लोकतंत्र पर हमला है। उनके संस्थान की टैगलाइन ‘हम सिर्फ भगवान से डरते हैं’ भाजपा सरकार को डराती है, क्योंकि सच्चा पत्रकार सत्ता से समझौता नहीं करता।”
कांग्रेस नेता केके मिश्रा ने कहा, “आनंद पांडे और हरिश दिवेकर मध्य प्रदेश में पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर हैं। राजस्थान सरकार के इशारे पर उनकी गिरफ्तारी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर अशोभनीय प्रहार है। सत्ता का अहंकार ज्यादा दिन नहीं टिकता। यह भाजपाई तालिबानी संस्कारों का हिस्सा है।” उन्होंने इसे पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर सवाल उठाने वाली घटना बताया और सुझाव दिया कि यह सत्ता के आलोचकों को चुप कराने का प्रयास हो सकता है।
पत्रकारों की निंदा: ‘अघोषित इमरजेंसी’
वरिष्ठ पत्रकार शैलेंद्र तिवारी ने इस कार्रवाई को “अघोषित इमरजेंसी” करार देते हुए कहा, “राजस्थान सरकार का तरीका पूरी तरह दमनकारी है। दोनों पत्रकारों को इस तरह हिरासत में लेना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।”
इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष दीपक कर्दम ने कहा, “यह कार्रवाई लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की आवाज़ को दबाने का प्रयास है। इंदौर की पत्रकार बिरादरी और इंदौर प्रेस क्लब इसकी कड़ी निंदा करता है। अगर राजस्थान सरकार इस तरह पत्रकारों की आवाज़ दबाएगी, तो पत्रकारों को मैदान में उतरना पड़ेगा।”
वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव ने सोशल मीडिया पर लिखा, “राजस्थान पुलिस ने मध्य प्रदेश के सम्मानित पत्रकार आनंद पांडे को भोपाल से गिरफ्तार किया। यह हथकंडा कई राज्य सरकारें अपना रही हैं। मैं स्वयं कर्नाटक पुलिस का भुक्तभोगी हूं। चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस, यह बंद होना चाहिए। हर पत्रकार को इस मुद्दे पर एकजुट होना चाहिए, वरना अगला नंबर आपका हो सकता है!”
सियासी बहस: दमन या कानूनी कार्रवाई?
इस गिरफ्तारी ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने इसे पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेलिंग का मामला बताकर कार्रवाई को उचित ठहराया। दूसरी ओर, विपक्ष और पत्रकार संगठनों का कहना है कि यह सत्ता की आलोचना को दबाने का प्रयास है। मामला अभी जांच के दायरे में है, और विरोध की आवाज़ें तेज हो रही हैं। यह घटना प्रेस की स्वतंत्रता और सत्ता की जवाबदेही पर सवाल उठा रही है।