मुरैना, मुकेश शर्मा (वेब वार्ता)। – भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और काकोरी कांड के नायक पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के परिवार के साथ अमानवीय व्यवहार और प्रशासनिक अत्याचार की एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है। आरोप है कि मुरैना जिले के एक SDM अरविंद माहौर ने अम्बाह में पदस्थ रहते हुए शहीद बिस्मिल के परिजनों की कृषि भूमि पर बलपूर्वक कब्जा करवा दिया।
यह भूमि पंडित बिस्मिल के पैतृक गांव बरबाई, तहसील अम्बाह में स्थित है, जिसका पट्टा 1947 के आसपास उनके परिजनों को भारत सरकार द्वारा सम्मानस्वरूप दिया गया था। स्थानीय लोगों और पीड़ित परिवार का कहना है कि यह वही भूमि है, जिस पर उनका वर्षों से अधिकार रहा है।
परिवार की हालत दयनीय
आज जब देश आज़ादी का अमृतकाल मना रहा है, उस समय बिस्मिल जी का परिवार टूटी झोपड़ी, गरीबी रेखा का राशन कार्ड और एक भैंस के सहारे ज़िंदगी काटने को मजबूर है। परिवार के पास मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। यह विडंबना ही है कि जिनके पूर्वजों ने देश को आज़ाद करने में जान गंवाई, उनके वंशज आज मुफलिसी में जी रहे हैं।
SDM के दुर्व्यवहार के आरोप
बरबाई गांव का दौरा कर लौटे एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि उन्होंने स्वयं इस मामले को लेकर SDM अरविंद माहौर से बात की, लेकिन अधिकारी ने “बदतमीज़ी भरा और अहंकारी” व्यवहार किया। उनकी प्रतिक्रिया से यह साफ जाहिर हुआ कि उन्हें न तो शहीदों के परिवार की गरिमा की परवाह है, न ही जनसंवेदनशीलता की कोई समझ।
सत्ता में बैठे लोग मौन क्यों?
मुरैना के सत्ताधारी नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की इस मामले पर चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। क्या शहीदों के परिवारों के प्रति कर्तव्य केवल भाषणों तक सीमित रह गए हैं? यदि एक स्वतंत्रता सेनानी के परिवार को न्याय के लिए भटकना पड़े, तो यह प्रशासन और सरकार दोनों के लिए शर्मनाक है।
जनता पूछ रही है:
“क्या शहीदों का सम्मान सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी तक सीमित है?”
मांगें:
SDM अरविंद माहौर के खिलाफ उच्चस्तरीय जांच हो।
शहीद बिस्मिल के परिजनों को भूमि का वास्तविक अधिकार वापस दिलाया जाए।
परिवार को राजकीय सम्मान, स्थायी आवास और पेंशन/सहायता योजना का लाभ दिया जाए।