पटना, (वेब वार्ता)। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को वैशाली में निर्मित बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय-सह-स्मृति स्तूप का विधिवत उद्घाटन किया। इस ऐतिहासिक आयोजन के दौरान मुख्यमंत्री ने स्तूप के प्रथम तल पर स्थित मुख्य हॉल में भगवान बुद्ध के पवित्र अस्थि अवशेष के अधिष्ठापन कार्य में भाग लिया और पूजा-अर्चना की।
वैशाली को बौद्ध विश्व मानचित्र पर स्थान
उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, “यह अवसर बिहार और विशेष रूप से वैशालीवासियों के लिए गर्व का क्षण है।”
उन्होंने बताया कि वर्ष 2010 में वैशाली दौरे के दौरान उन्होंने मड स्तूप का निरीक्षण किया और तब यह विचार आया कि जहां से बुद्ध के पवित्र अवशेष प्राप्त हुए हैं, वहीं एक विशिष्ट स्तूप बनाया जाए। आज उसी संकल्प का साकार रूप यह संग्रहालय-सह-स्मृति स्तूप है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि यह परिसर पर्यावरणीय संतुलन, आधुनिक सुविधाओं, और बौद्ध पर्यटन को बढ़ावा देने वाले तत्वों से युक्त है, जिससे आने वाले देशी और विदेशी पर्यटकों को एक अद्वितीय अनुभव मिलेगा।
पवित्र अस्थि अवशेष का अधिष्ठापन
मुख्य हॉल में भगवान बुद्ध का पावन अस्थि कलश स्थापित किया गया है। यह अस्थि अवशेष वैशाली के मड स्तूप से प्राप्त हुआ था और इसे चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में प्रमाणिक बताया है।
नीतीश कुमार ने कहा कि बुद्ध के अस्थि अवशेष 6 जगहों से प्राप्त हुए, लेकिन वैशाली से प्राप्त अवशेष सर्वाधिक प्रामाणिक माने जाते हैं। यह स्तूप बिहार को विश्व बौद्ध मानचित्र पर एक नई ऊंचाई देगा।
भव्य संरचना और सुविधाएं
राजस्थान के गुलाबी पत्थरों से निर्मित यह स्मृति स्तूप 72 एकड़ भूमि पर फैला है। इसमें निम्न सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं:
बौद्ध साहित्य से युक्त पुस्तकालय
संग्रहालय जिसमें बुद्ध के जीवन से जुड़ी प्रदर्शनी
तालाब, गेस्ट हाउस, एमपी थिएटर, कैफेटेरिया
सौर ऊर्जा संयंत्र और व्यवस्थित पार्किंग जोन
इस स्तूप का शिलान्यास 2019 में हुआ था, और अब यह परिसर बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए एक तीर्थ स्थल के रूप में प्रतिष्ठित होगा।
वैशाली: इतिहास की भूमि
मुख्यमंत्री ने बताया कि वैशाली दुनिया का पहला गणराज्य रहा है और यह नारी सशक्तीकरण की भी प्रतीक भूमि रही है। यहीं पहली बार बौद्ध संघ में महिलाओं को प्रवेश मिला था।
15 देशों से आए बौद्ध भिक्षु
इस उद्घाटन कार्यक्रम में 15 देशों से प्रमुख बौद्ध भिक्षुओं और श्रद्धालुओं ने भाग लिया। पवित्र अवशेष के अधिष्ठापन के समय मंत्रोच्चारण के साथ भव्य पूजा-अनुष्ठान संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में परम पावन दलाई लामा का विशेष लिखित संदेश भी पढ़ा गया, जो इस आयोजन की आध्यात्मिक गरिमा को और ऊंचा ले गया।
भगवान बुद्ध का बिहार से संबंध
बुद्ध के जीवन का अधिकांश हिस्सा बिहार की धरती से जुड़ा रहा। वे राजगीर के वेणुवन, बोधगया, सारनाथ, गृद्धकूट पर्वत, वैशाली, केसरिया, लौरिया नन्दनगढ़, और अंततः कुशीनगर तक की यात्रा में रहे। उनकी शिक्षाओं और उपदेशों की गूंज आज भी इन स्थानों पर सुनाई देती है।