जगदलपुर, रिपोर्ट: संवाददाता (वेब वार्ता)| विश्लेषण: अफज़ान अराफात
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में नक्सल विरोधी अभियान को गुरुवार को बड़ी सफलता मिली, जब एक ही दिन में चार जिलों में कुल 67 नक्सलियों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इन नक्सलियों में 55 ऐसे हैं जिन पर कुल मिलाकर 2 करोड़ 27 लाख रुपये का इनाम घोषित था। यह अब तक का सबसे बड़ा सामूहिक आत्मसमर्पण माना जा रहा है, जो राज्य सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।
चार जिलों में फैला आत्मसमर्पण का असर
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों में कई उच्च श्रेणी के एसजेडसीएम, डीवीसीएम, पीपीसीएम और एसीएम कैडर के सदस्य शामिल हैं। बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने इसे नक्सल नेटवर्क के लिए करारा झटका बताया और कहा कि यह घटना नक्सल आंदोलन की जड़ें हिलाने वाली साबित होगी।
जिलेवार आंकड़े इस प्रकार हैं:
बीजापुर: 25 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें 23 पर कुल 1.15 करोड़ रुपये का इनाम था।
कांकेर: 13 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें से 13 पर कुल 62 लाख रुपये का इनाम था।
नारायणपुर: 8 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिन पर 33 लाख रुपये का इनाम था।
दंतेवाड़ा: 16 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें 5 पर 17 लाख रुपये का इनाम था।
प्रमुख आत्मसमर्पण और इनाम
बीजापुर से रमन्ना इरपा, एक 25 लाख रुपये के इनामी स्पेशल जोनल कमेटी मेंबर (SZCM) ने सरेंडर कर बस्तर में पहली बार इस रैंक के नक्सली के हथियार डालने का इतिहास रच दिया।
कांकेर से मंगलू उर्फ रूपेश, मिलिट्री कंपनी नंबर 01 का कमांडर और 10 लाख का इनामी हार्डकोर नक्सली भी शामिल रहा।
नारायणपुर से वट्टी गंगा उर्फ मुकेश, TDU टीम इंचार्ज ने भी चार महिला नक्सलियों के साथ आत्मसमर्पण किया।
दंतेवाड़ा में बुधराम ने हथियार छोड़ा, जिस पर 8 लाख रुपये का इनाम था।
सरकार की पुनर्वास नीति का असर
छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सल पुनर्वास नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को:
आवास, सुरक्षा, और रोजगार की सुविधा दी जाती है।
कौशल विकास प्रशिक्षण, स्वरोजगार सहायता, और मानसिक परामर्श की व्यवस्था की जाती है।
अब तक इस नीति के अंतर्गत 1,020 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, जिनमें 254 इनामी नक्सली भी शामिल हैं।
‘लोन वर्राटू’ और ‘पुना मार्गेम’ अभियान की सफलता
‘लोन वर्राटू’ (गोंडी भाषा में “घर लौट आओ”) और ‘पुना मार्गेम’ जैसे अभियानों ने नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये कार्यक्रम नक्सल प्रभावित युवाओं को समाज से जोड़ने और हिंसा से दूर करने के लिए चलाए जा रहे हैं।
बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वाले अधिकांश नक्सलियों ने संगठन के भीतर शोषण, हिंसा, और कठोर जंगल जीवन से तंग आकर मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया। कईयों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि नक्सल संगठन अब आदर्शों से भटक चुका है।
निष्कर्ष: बस्तर बदल रहा है
बस्तर के इतिहास में गुरुवार का दिन लाल आतंक के खिलाफ निर्णायक क्षण के रूप में दर्ज होगा। इतने बड़े स्तर पर आत्मसमर्पण ने यह संकेत दिया है कि अब बंदूक नहीं, विकास और शांति की राह ही आगे का रास्ता है।
सरकार और सुरक्षा बलों की यह अपील एक बार फिर दोहराई गई है:
“हिंसा छोड़ें, हथियार डालें और विकास के रास्ते पर लौटें। बस्तर आपका इंतजार कर रहा है।”