-तरही महफ़िल नें बांधा समा
बरेली, 10 सितंबर (देश दीपक गंगवार)। 105वें उर्स-ए-रज़वी का आगाज़ इस्लामिया के मैदान से हुआ बारिश की फुआरों के बीच आज़म नगर से परचम कुशाई की रस्म अदा की गई। वही दरगाह की ओर से दरगाह ए आला हजरत प्रमुख मौलाना सुब्हान रज़ा खान उर्फ सुब्हानी मियां और दरगाह के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसान रज़ा कादरी उर्फ अहसन मियां ने पूरी दुनियाभर के अकीदतमंदों के नाम संदेश जारी किया। अकीदतमंदों से कहा ये हमारे लिये ख़ुशी का वक्त है। सभी लोग अपने रूहानी पेशवा आला हज़रत फाजिल-ए-बरेलवी का उर्स मना रहे हैं। जिसने अपनी इल्मी और दीनी सलाहियतों से मुसलमानों में जो जहनी इंकलाब पैदा किया। जिसकी शहादत हमारी पूरी सदी दे रही है। जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी इस्लाम और सुन्नियत को फरोग देने में गुज़ार दी। जिन्होंने मुल्क और मिल्लत की ऐसी बेमिसाल खिदमत पेश की है, कि आज बरेली का नाम पूरी दुनिया में रोशन हो रहा है।
नमाज़, कुरान और हदीस के साथ गुज़ारे ज़िंदगी
मसलक-ए-अहले सुन्नत और मसलक आला हज़रत पर सख्ती से कायम रहते हुए हर फर्ज़ और वाजिब को अपने वक्तों पर अदा करें। नमाज़, कुरान और हदीस की पाबंदी के साथ अपनी ज़िंदगी गुजारें शरीयत-ए-इस्लामिया और अहले सुन्नत के साथ अपने मुल्क की तरक्की के साथ खुशहाली के लिए काम करें।
बेटियों कों लेकर भी दिया गया संदेश
आला हजरत इल्म की बुनियाद पर पूरी दुनिया में मशहूर हुए। इसलिए अपने बच्चों की अच्छी परवरिश करें और उन्हें आधुनिक शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा भी दिलाएं। अपने शहर और बस्ती में मदरसों के साथ स्कूल, कॉलेज और हॉस्टल बनवाएं। साथ ही अपने बच्चों पर निगरानी रखें। वहीं बच्चों के बालिग हो जाने पर बेहतर रिश्ता देखकर शादी करा दें। जिससे वह कोई भी गलत कदम उठाने से बचें। साथ ही उन्होंने कहा कि अपनी बेटियों को दहेज़ की जगह विरासत में भी हिस्सा दें। वहीं शादियों में फिजुलखर्ची से बचें और गैर शरई रस्मों से बचते हुए सादगी से निकाह करें।
नौजवानों को दी गई सख्त हिदायत
दरगाह की ओर से नौजवानों को सख्त हिदायत दी गई। सोशल मीडिया का प्रयोग सावधानी से करें। भड़काऊ पोस्ट से बचें। जिससे किसी समुदाय, पंथ या जाति की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। उन्होंने आगे कहा कि आला हज़रत नें मोहब्बत का पैग़ाम दिया है, इस पर कायम रहते हुए गुनाह, झूठ, बुरी संगत से बचें, नशाखोरी, लड़ाई-झगड़े जैसी सामाजिक बुराई से दूर रहकर मोहब्बत और भाईचारा कायम रखें। वही उर्स के आगाज़ होनें पर तरही महफ़िल आयोजित हुई जिसमें बाहर से आए शायरों नें अपने- अपने कलाम से फ़िज़ा में रूहानियत का माहौल पैदा किया।
मुफ्ती अनवर अली ने शेर पढ़ा कि….जो भी सरकारें दो आलम की सना करते है, बागे फिरदौस में आराम किया करते है। बाहर से आए हुए मुफ़्ती मोइन खान ने आला हजरत की शान में कसीदा पढ़ा…दुश्मने दीन मेरे आका के सनाखानों को, उंगलियां कानों में दे दे के सुना करते है। वही नेपाल से आए शायर -ए-इस्लाम मौलाना फूल मोहम्मद नेमत रज़वी ने ये कलाम पेश कर दाद पाई…मरकज़ियत की है यह शान रज़ा के दम से, किस लिए लोगों में वह शोर किया करते है। मुफ्ती सय्यद कफील हाशमी ने पढ़ा..गौसे आजम से है मजबूत रिश्ता अपना, हम सदा उनके ही साए में जिया करते है। बाहर से आए हुए शायरों ने अपने-अपने कलाम पेश किये।
मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि दरगाह के वरिष्ठ शिक्षक मुफ़्ती सलीम नूरी बरेलवी, मुफ्ती सय्यद कफील हाशमी, मुफ़्ती अनवर अली, मुफ़्ती मोइनुद्दीन, मुफ़्ती अय्यूब, मौलाना अख्तर आदि की निगरानी में मुशायरा का आगाज़ तिलावत-ए-कुरान से कारी रिज़वान रज़ा ने किया। हाजी गुलाम सुब्हानी व आसिम नूरी में मिलाद का नज़राना पेश किया। इसके बाद मुशायरा की निज़ामत (संचालन) संयुक्त रूप से मौलाना फूल मोहम्मद नेमत रज़वी व कारी नाज़िर रज़ा ने किया।
मुख्य रूप से नेपाल से आये शायर नेमत रज़वी, शायर ए इस्लाम कैफुलवरा रज़वी, बनारस से आये असजद रज़ा, रांची के दिलकश राचवीं, शाहजहांपुर के फहीम बिस्मिल के अलावा अमन तिलयापुरी, मुफ़्ती जमील, मुफ़्ती सगीर अख्तर मिस्वाही, मौलाना अख्तर, रईस बरेलवी, असरार नईमी, नवाब अख्तर, डॉक्टर अदनान काशिफ, इज़हार शाहजहांपुरी, महशर बरेलवी ने बारी-बारी से अपने कलाम पेश किए।