बरेली, 29 अगस्त (देश दीपक गंगवार)। दरगाह आला हज़रत पर 60 वा एक रोज़ा उर्स-ए-जिलानी दरगाह प्रमुख हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खां (सुब्हानी मियां) की सरपरस्ती व सज्जादानशीन साहिबे मुफ्ती अहसन मियां की सदारत में मनाया गया। मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द अल्लामा मुफ़्ती मोहम्मद इब्राहीम रज़ा खाँ उर्फ़ जीलानी मियां के उर्स का आगाज़ दरगाह स्थित रज़ा मस्जिद में तिलावत-ए-क़ुरान से किया गया। नात मुफ्ती जमील ने पढ़ी। सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर कुल शरीफ़ की रस्म अदा की गई। कुल शरीफ़ के बाद उल्मा-ए-किराम की तक़रीरें हुईं।
इस मौक़े पर हज़रत सुब्हानी मियां का पैग़ाम सुनाते हुए मुफ़्ती सलीम नूरी ने कहा कि हज़रत जिलानी मियां ख़ानदाने आला हज़रत के एक ऐसे अज़ीम बुजुर्ग थे जिन्होंने पूरी ज़िन्दगी इल्मे दीन फैलाने का काम किया उन्होंने मंज़रे इस्लाम को तरक़्क़ी देने का काम अंजाम दिया। मंज़रे इस्लाम के जब वह प्रबन्धक थे तो उन्होंने मंज़रे इस्लाम में बेशुमार तामीरी काम कराये। यहाँ के शिक्षकों को वेतन देने के लिए उन्होंने अपने घर के सोने-चाँदी के ज़ेबरात तक कुर्बान कर दिये मगर तालीम के चिराग को बुझने न दिया।
उन्होंने सूफ़ी विचारधारा के प्रचार व प्रसार के लिए मंज़रे इस्लाम के शिक्षकों और छात्रों को विशेष प्रशिक्षण दिया और लोगों को बताया कि हिंसा फैलाने वाली और हिंसा के रास्ते पर ले जाने वाली मानसिकता और विचारधारा से हमेशा बचना चाहिए क्योंकि हिंसात्मक तथा खून-खराबे वाली कार्यवाही और विचारधारा इंसानियत के लिए ख़तरनाक है और दुनियाँ को तबाही और बर्बादी की ओर ले जाने वाली है। इसलिए हमें हर हाल में ख़ानकाहों, बुज़ुर्गों, वलियों और मज़ारों से आस्था और अक़ीदत रखना चाहिए इसलिए कि इन्हीं ख़ानकाहों, बुजुर्गों, वलियों के आस्तानों और मज़ारों से हमें अमन व शान्ति और प्यार मोहब्बत का माहोल मिलता है।
मुफ्ती सलीम नूरी ने कहा कि आज आला हज़रत के पैग़ाम का प्रचार व प्रसार पूरी दुनिया में हो रहा है और पूरी दुनिया में जो रज़वी सिलसिला फैला हुआ है वह जिलानी मियां की नस्ल ही की देन है। मुफ़्ती मो. आक़िल रजवी, क़ारी अब्दुर्रहमान कादरी, मौलाना डाक्टर एजाज अंजुम आदि ने भी खिताब किया। आखिर में सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मिया ने मुल्क व मिल्लत के साथ पूरी दुनिया में अमन और शांति के लिए खुसूसी दुआ की। मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि इस मौके पर मुफ्ती सय्यद कफील हाशमी, मुफ़्ती अफ़रोज़ आलम, मुफ़्ती अय्यूब, मुफ़्ती अख्तर, मुफ्ती सय्यद शाकिर अली, कारी अब्दुल हकीम, मास्टर जुबेर रज़ा खाँ, सय्यद ज़ुल्फ़ी, मोईन खान, शाहिद नूरी, परवेज़ नूरी, औररंगजेब नूरी, अजमल नूरी, ताहिर अल्वी, शान रज़ा, मंजूर रज़ा, साजिद नूरी आदि मौजूद रहे।