लखीमपुर खीरी(वेबवार्ता)- कहने को तो कोटेदार गरीब कार्ड धारकों को राशन वितरण कर गरीबों को खाना खिलाता है, मगर दूसरों को खाना खिलाने वाला खुद इस समय भुखमरी की कगार पर पहुंच चुका है। भ्रष्ट प्रशासन के सौतेले व्यवहार से परेशान पूरे उत्तर प्रदेश के कोटेदार 7 बार का फ्री राशन वितरण करके एक भी रुपया कमीशन का नहीं मिला है। जिसमें कोटेदार भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं, इसे देखने वाला कोई नहीं। एक तरफ कोटेदारों के चल रहे राशन कार्डो को भी काट दिया गया, क्या कोटेदार राशन नहीं खाते, या सबसे ज्यादा अमीर कोटेदार ही हैं, जो उनको अपात्रता की श्रेणी में रख कार्ड को काट दिया गया ।कमीशन ना मिलने की वजह से बच्चों की फीस तक कोटेदार नहीं जमा कर पाए, ऐसे बहुत से कोटेदारों के बच्चे स्कूल से भगा दिए गए।
कमीशन का पैसा ना मिलने की वजह से कोटेदार अपने परिजनों की दवा तक नहीं ला पाए, जिससे उनके कई परिजनों को जान तक गवानी पड़ी। सब्जी तो दूर की बात है दूसरों को राशन देने वाला खुद 1 किलो राशन नहीं ले सकता, क्योंकि बाजार से खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं है, सरकार ने अपात्र दिखाकर की उनका राशन कार्ड भी कटवा दिया।
इस बार कोटेदारों ने इकत्रित होकर जब तक कमीशन नहीं तब तक राशन नहीं का फैसला कर लिया है। अब जब तक कोटेदारों का कमीशन नहीं आएगा तब तक राशन नहीं बाटेंगे। इतने बड़े पर्व दीपावली में कोटेदारों को पास एक भी रुपया नहीं है, जो अपने बच्चों को पटाखे, मिठाई तो दूर की बात है कपड़े तक नहीं दिलावा सकते।जबकि जानलेवा महामारी कोरोना में सरकार के द्वारा दिए गए हर आदेश को पालन करते रहे, कई कोटेदारों की जान तक चली गई, मगर प्रशासन के द्वारा किए गए सौतेला व्यवहार से पूरे उत्तर प्रदेश के कोटेदार बहुत ही क्षुब्ध हैं।
अगर बात की जाए लखीमपुर खीरी जिले की तो यहां के सभी कोटेदारों ने एकजुट होकर जिलाधिकारी को संबोधित उप जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया। जिसमें कोटेदारों ने पिछले सात बार के कमीशन की मांग की है, और डोर स्टेप डिलीवरी से परेशान कोटेदारों ने मांग की है कि सरकार के द्वारा 25% छोटे वाहन लगाने के लिए ठेकेदार को निर्देशित किया गया था, छोटे वाहन ना लगाकर, ठेकेदार के द्वारा कोटेदार के घर से 8/9 किलोमीटर पहले ट्रक खड़ा करके कोटेदार को फोन करते हैं कि अपना ट्रैक्टर ट्राली लेकर आओ अपना राशन लेकर जाओ, आपके घर तक ट्रक नहीं आ सकता क्योंकि रास्ता नहीं है। जिससे कोटेदार आनन-फानन में गांव में ट्रैक्टर ट्राली ढूंढने लगता है, बहुत ही मुश्किल से ट्रैक्टर ट्राली मिल जाती है, मगर ट्राली से उसके घर पर राशन उतारने वाले पल्लेदार नहीं मिलते हैं, क्योंकि गांव में या लोकल देहात क्षेत्र में बेवक्त पल्लेदार कहां मिलेंगे, मजबूरन कोटेदार को ही पल्लेदार बनना पड़ता है।
क्या यही है डोर स्टेप डिलीवरी कोटेदार के घर से 10 किलोमीटर पहले राशन को डाल दिया जाता है, फिर ट्रक ड्राइवर और ठेकेदार ट्रक की तौल को लेकर बड़ा खेल चालू हो जाता है, कि यह कांटा सही तौल नहीं करता है, वह कांटा सही है, और मनमाने कांटे पर जाकर कोटेदार को राशन तौलकर देते हैं। काला आम, गूमचीनी, लकेसर, आटकोनवा, जमैठा पुरवा, कालाडुंण्ड, मऊ दाउदपुर, टीकर, सूरज सरांय, कोढ़ैय्या, कैमाखादर लगभग एक दर्जन गांवों के बीच में कालाआम में भट्टे पर कांटा लगा हुआ है, मगर यहां कांटे की तौल सही ना मानकर 5 किलोमीटर आगे लगभग एफसीआई गोदाम के पास ही लगे गोल्हवापुर के पास धरम कांटे पर तौल करवाते हैं। इन दोनों कांटो में क्या फर्क है, जो यहां तौल ना करके वहां तौल कराई जाती है।
अभी तक प्रशासन ने कोई जांच क्यों नहीं की। कोटेदारों को 10 किलोमीटर अपने ट्रैक्टर ट्राली लेकर वहां जाना पड़ता है, कोटेदार के गांव के नजदीकी कांटे पर क्यों तौल नहीं होती है। अगर कांटा सही नहीं है तो अधिकारी को इसकी जांच करनी चाहिए, मनमाने कांटे पर ठेकेदार राशन तौलता है तो वहां उस कांटे पर इसकी क्या सेटिंग है, इसकी भी जांच होनी चाहिए।कोटेदारों ने दो मांगों को लेकर जिलाधिकारी को संबोधित एसडीएम को ज्ञापन दिया है, जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं होंगी तब तक राशन वितरण नहीं होगा।