लखीमपुर खीरी (वेब वार्ता)- बिजुआ ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय भानपुर द्वितीय के शिक्षकों ने अथक प्रयास कर इस स्कूल को जिले में विशिष्ट बना दिया। यहां पर पढ़ने वाले नौनिहालों की चमक अब जिलेभर में बिखरने लगी है। इस स्कूल में बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाया जाता है ताकि उन्हें किताबे बोझिल ना लगे बल्कि किताबे उनकी मित्र बन जाए। शिक्षकों की लगन से इस विद्यालय में सुविधाएं किसी निजी विद्यालय से कम नहीं हैं। डीएम की अभिनव पहल “best school of the week” के तहत इस सप्ताह का सर्वश्रेष्ठ विद्यालय बनने का खिताब अपने नाम दर्ज किया।
सुविधा नहीं मिलने का रोना रोने वाले सरकारी स्कूलों के लिए यह स्कूल मिसाल है। यह न तो सुविधाओं में और न पढ़ाई में प्राइवेट स्कूलों से पीछे है। स्कूल में बच्चों के दिन की शुरुआत ही यहां कुछ खास तरीके से होती है।
इं. प्रधानाध्यापक कुलदीप बताते है कि बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ सबसे पहले हमने बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने की कोशिश की ताकि बच्चे बड़े-बड़े स्कूलों के साथ बराबरी कर सके क्योंकि इस विद्यालय के अंदर अधिकांश गरीब तबके के बच्चे पढ़ने आते हैं। कुलदीप ने अपने कलर और ब्रश उठाया। अपने विद्यालय के कोने-कोने को सजा डाला। विद्यालय में अपने आप कक्षा कक्षा से लेकर बच्चों को सीखना, सिखाने से संबंधित चित्रकारी कर डाली।
व्यवस्थित रीडिंग कॉर्नर देख बीएसए ने नौनिहालों को पढ़ाई कहानियों की किताबें
एक दिन बीएसए निरीक्षण के लिए विद्यालय पहुंचे, रीडिंग कॉर्नर देख प्रसन्न हुए। बीएसए ने वहां बच्चों के बीच बैठकर बच्चों से कहानियां पढ़वायी, स्वयं भी बच्चों को कहानियां सुनाई। बच्चों को पढ़ने का महत्व बताया। यह पहली बार था जब कोई अधिकारी बच्चों के बीच बैठकर कहानियां पढ़ रहा था। यहां का रीडिंग अन्य विद्यालयों के रीडिंग कॉर्नर से अलग है। यहां पर चार कोने हैं जहां पर एक कॉर्नर हिंदी , दूसरा अंग्रेजी, तीसरा संस्कृत का है वहीं चौथी ओर शिक्षक ने अपने लिए कक्षा शिक्षण योजना की तैयारी हेतु एक कॉर्नर बनाया।
बच्चों की उपस्थिति में हुआ इजाफा विद्यालय में कायाकल्प होने के बाद जैसे ही बाला पेंटिंग का कार्य पूर्ण हुआ, विद्यालय आकर्षक लगने लगा और जो बच्चे नहीं आते थे वह भी विद्यालय आने लगे जो बच्चे कभी कबार आते थे वह विद्यालय में अब रोज रुकने लगे और सीखने लगे। अभिभावकों का कहना है की विद्यालय पहले से बहुत बेहतर हो गया है और कई बच्चे निजी विद्यालय को छोड़कर इस विद्यालय में आ गए। उनका कहना है जब हमको निजी विद्यालय जैसी सुविधाएं यही मिल रही हैं तब हमको फीस देकर किसी विद्यालय में बच्चों को क्यों भेजना।