-आलोक तिवारी ब्यूरो
मथुरा, (वेब वार्ता)। जयगुरुदेव आश्रम में पांच दिवसीय गुरुपूर्णिमा सत्संग मेला के पहले दिन राष्ट्रीय उपदेशक बाबूराम जी ने “नर समान नहि कवनिक देही जीव चराचर याचक येही।” पंक्ति को उद्धृत करते हुये कहा कि मनुष्य शरीर के समान कोई दूसरा शरीर नहीं है। सभी जीव मनुष्य शरीर पाने की याचना करते हैं। इस शरीर से साधना किया जा सकता है। बार्क अन्य शरीर भोग योनियाँ हैं। इसमें दोनों आंखों के मध्य भाग से स्वर्ग से बैकुण्ठ में जाने का रास्ता है। गुरु की महिमा सर्भ मतों और धर्मों और सम्पूर्ण विश्व के अन्दर है। भास्त योग भूमि है। यह अनादिकाल से धार्मिक और आध्यात्मिक रही है मुनियों, ऋषियों के योगदान से इसे विश्व गुरु का दर्जा भी प्राप्त हुआ। इस भूमि पर जन्म होना बड़े भाग्य की बात है। इस देश के आदशों अहिंसा सेवा, प्रेम को कायम रखना हम लोगों की जिम्मेदारी है। जीवात्मा जो इस शरीर की चेतन सत्ता है दसवें द्वार से मां के गर्म में पाचवे महीने में डाली जाती है मौत के समय उसी दसवें द्वार से निकाली जाती है। शरीर के नौ दरवाजे बाहर की तरफ खुलते हैं और सभी को दिखाई देता है। लेकिन दसवां द्वार गुप्त है।
सतयुग में योग त्रेता में यज्ञ द्वापर में मूर्ति पूजा और महात्माओं ने कलयुग में नाम योग साधना जीव कल्याण के लिये रखा है। पिछले युगों की साधना से कलयुग में जीव का कल्याण नहीं होगा। वक्त के सत्गुरु वक्त की साधना से है कल्याण होता है। संत सत्गुरु वक्त के बादशाह होते हैं। उनकी मौज उस मालिक प्रभु की मौज बन जाती है। उनके द्वार बनाये गये नियम पिण्ड लोक से लेकर अण्ड ब्रह्माण्ड आदि लोकों के ऊपर तक कोई काटने वाला नही होता है। सतयुग हड्डियों में प्राण होता था और एक लाख वर्ष की आयु होती थी। त्रेता में प्राण खून में चला गया और उम्र दस हजार वर्ष है। गयी। द्वापर में प्राण ऊपर के चमड़े में आ गया और उम्र एक हजार वर्ष हो गई। कलयुग में प्राण अन्न में चला गया और उ सौ वर्ष हो गई। इसलिये कलयुग में महात्माओं ने सरल सुरत- शब्द योग की साधना का रास्ता जीवों के कल्याण के लिये खोला।
गुरु की दो श्रेणी होती है एक संसार का ज्ञान कराने वाले और यानि अपरा विद्या और दूसरा पराविद्या का ज्ञान कराने वाले। संसार का ज्ञान कराने वाले गुरु किताबी ज्ञान और कर्मकाण्ड की क्रियाओं मे संलग्न करते हैं। किताबी ज्ञान संसार में प्रसिद्धी कीर्ति और इज्जत देता है जो कि शरीर के साथ खत्म हो जाता है लेकिन पराविद्या का ज्ञान कराने वाले गुरु संसार की अज्ञानता यानि झूठे ज्ञान से निकाल कर प्रकाश में खड़ा कर देते हैं और खड़े होने वालों को अनुभूति होती है कि हम प्रकाश में खड़े हैं। मानव जीवन को सफल बनाना सत्गुरु की मुट्ठी में है। गुरुपूर्णिमा का पूजन 3 जुलाई को होगा तथा संस्थाध्यक्ष पूज्य पंकज महाराज का सत्संग इसी दिन प्रातः 6 बजे से होगा। श्रद्धालुओं के आने का क्रम जारी है। उनकी सुविधा के लिये भोजन भण्डारा (लंगर), आवास आदि की सभी व्यवस्थायें सुचारू रूप से चल रही हैं।