50 सालों से ज्यादा वक्त तक जनमोर्चा के रहे संपादक
यश भारती सम्मान से सम्मानित
भारतीय प्रेस परिषद के कई वर्षों तक रहे सदस्य
‘अयोध्या: रामजन्म भूमि-बाबरी-मस्जिद का सच’ किताब के लेखक
अयोध्या (वेबवार्ता)- दैनिक जनमोर्चा अखबार के प्रधान संपादक और वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह नहीं रहे। कई वर्षों से बीमार चल रहे बाबू शीतला सिंह ने 94 वर्ष की उम्र में आज जिला अस्पताल में अंतिम सांस लिया। ये खबर फैलते ही पत्रकारों के बीच शोक की लहर दौड़ गई।क्या पत्रकार, क्या समाजसेवी, क्या नेता सभी के लिए ये खबर दुखदाई रही।
“वेब वार्ता” न्यूज एजेंसी के स्टेट हेड ‘कुमार मुकेश ‘ ने वेबवार्ता परिवार के साथ जिला कार्यालय पर विनम्र श्रद्धांजलि दी। कुमार मुकेश ने बाबू जी को याद करते हुए कहा की जनमोर्चा अखबार को देखते हुए हम लोग बड़े हुए हैं। पूर्वांचल की पत्रकारिता जगत में शायद ही कोई पत्रकार ऐसा रहा होगा जिसका जुड़ाव किसी न किसी रूप में जनमोर्चा से न रहा हो। जनमोर्चा अखबार ने पत्रकारों की कई पीढ़ियों को जन्म दिया। जनमोर्चा से पत्रकारिता की एबीसीडी सीख कर निकले कई पत्रकार आज अलग अलग प्लेटफार्म पर अहम भूमिका निभा रहे हैं।
आगे कुमार मुकेश ने चर्चा करते हुए कहा कि बाबू शीतला सिंह की पहचान एक जुझारू और निडर पत्रकार व संपादक के तौर पर रही है।
उन्होंने भारतीय राजनीति की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना बाबरी मस्जिद विध्वंस और राम जन्म भूमि पर एक किताब लिखी है। शीतला की इस चर्चित किताब का नाम ‘अयोध्या: रामजन्म भूमि-बाबरी-मस्जिद का सच’ है। इस किताब को आधार बनाकर कई सारे पत्रकारों ने स्टोरी की है। यह किताब कई मायनों में महत्त्वपूर्ण थी।
जब एक पत्रकार ने शीतला से पूछा था कि आपने अपनी किताब में कौन से सच का खुलासा किया? तो शीतला ने कहा था, “मैंने उस तथ्य का विवरण दिया है, जिसमें मुस्लिम समाज के नेता राम मंदिर के निर्माण के लिए पहल कर रहे थे, लेकिन संघ अपने राजनीतिक लाभ के चलते ऐसा नहीं होने दे रहा था।”
जनमोर्चा का उदय
जनमोर्चा की शुरुआत 1958 में फैजाबाद से हुई थी। शुरुआत में यह समाचार-पत्र साप्ताहिक बुलेटिन के रूप में निकाला गया था। बाद में इसे दैनिक समाचार-पत्र के रूप में निकाला जाने लगा. इसके संस्थापक महात्मा हरगोविंद एक स्वतंत्रता सेनानी थे। उनके बाद समाचार पत्र के संपादन का काम शीतला सिंह ने किया। उन्होंने लगभग 53 सालों तक इसका सम्पादन किया. संभवतः किसी अखबार में इतने लंबे वक्त तक संपादक रहे शीतला सिंह एक मात्र शख्स हैं।
गौरतलब है कि 1958 में 75 रुपए के निवेश के साथ जन इंडिया के स्वामित्व वाले एक सहकारी उद्यम के रूप में जन मोर्चा की शुरुआत हुई थी। शीतला सिंह भारतीय प्रेस परिषद के भी सदस्य रह चुके हैं।
उनके निधन पर यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन (यूपीडब्लूजेयू) ने गहरा शोक जताया है. यूपीडब्लूजेयू अध्यक्ष टीबी सिंह ने कहा कि शीतला सिंह प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के पत्रकारों के लिए एक मिसाल थे। शीतला सिंह ने पूरा जीवन लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए संघर्ष किया और पत्रकारों के हित में हमेशा आगे बढ़ाकर काम करते रहे।
वो यूपीडब्लूजेयू के शीर्ष नेतृत्व का हिस्सा भी रहे हैं और उनके संरक्षण में कुशल पत्रकारों की एक बड़ी पौध विकसित हुई। उन्होंने सहकारिता के मॉडल पर समाचार पत्र चलाने का एक अनूठा उदाहरण पेश किया और सफलतापूर्वक इसे जनमोर्चा में लागू कर दिखाया था।