कुशीनगर, 05 सितंबर (ममता तिवारी)। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में प्राचीनता और ऐतिहासिकता समेटे होने के बावजूद कुशीनगर में करीब 2800 साल पुराने बौद्धकालीन अनिरुद्धवा टीले को पहचान की दरकार है। इस स्थल को विकसित कर विश्वस्तरीय बनाने की जरूरत है। इतिहास के जानकारों के मुताबिकए बौद्धकाल में अनिरुद्धवा मल्ल राजाओं का आंगन रहा है। यहां से प्राप्त ईंटें व स्तूप मल्लों की राजधानी होने के संकेत देते हैं। इसके बावजूद अनिरुद्धवा टीला स्थल को संवारने के लिए कोई मुकम्मल कोशिश नहीं की गई है। लेकिन हांए यह टीला पुरातत्व विभाग के कुशीनगर संरक्षित स्थलों में शामिल है।
फिलहाल, अभी जल्द ही टीले के महत्व को समझते हुए चारों तरफ पुरातत्व विभाग ने करीब 10 लाख रुपये की लागत से चहारदीवारी निर्माण कराकर संरक्षण करने का काम किया है। लेकिन यह इसकी पहचान व ख्याति के लिए पर्याप्त नहीं है। इसे वैश्विक स्वरूप देने के लिए बहुत कुछ करने की दरकार है। कुशीनगर में भगवान बुद्ध संबंधी तीन प्रमुख दर्शनीय स्थलों में एक चौथा अनिरुद्धवा टीला जुड़ जाए तो देश-विदेश के आने वाले पर्यटक व सैलानी मुख्य महापरिनिर्वाण, मांथा कुंवर मंदिर, रामाभार स्तूप के साथ अनिरुद्धवा टीले का भी भ्रमण करेंगे। इसके लिए इस स्थल को पुरातत्व विभाग की तरफ से प्रचारित-प्रसारित करने की जरूरत है।
थाई मंदिर के बगल से जाने वाले नवनिर्मित आरसीसी सड़क के किनारे पुरातत्व का संरक्षित स्थल है। यह विभाग के अभिलेखों में अनिरुद्धवा टीला नाम से दर्ज है। इसे लाखों रुपये खर्च कर चारों तरफ से चहारदीवारी निर्माण कराकर संरक्षित कर लिया गया है। इसकी विस्तृत जानकारी के लिए विभाग को पत्र भेजा गया है।
इस संबंध में भंते महेंद्र प्रबंधक भंते ज्ञानेश्वर बुद्ध विहार कुशीनगर ने बताया कि पुरातत्व विभाग के अभिलेख में दर्ज अनिरुद्धवा टीला ही वास्तव में भगवान बुद्ध का धातु वितरण स्थल है। यहीं पर उनके दाह संस्कार के बाद उनके धातु अवशेषों को आठ भागों में बांटा गया था। आठवां हिस्सा कुशीनगर के मल्लों ने स्तूप में सुरक्षित रखा। इस समय महापरिनिर्वाण मंदिर में पीछे भव्य स्तूप में है।
यह बौद्ध अनुयायियों व उपासक-उपासिकाओं के लिए पूजनीय व अति पवित्र स्थल है। लंबे समय से पुरातत्व विभाग की तरफ से उपेक्षित पड़ा है। पुरातत्व विभाग की तरफ से इस स्थल का उत्खनन कराया जाना चाहिए। यहां से शिलालेख मिलने की उम्मीद है। इससे इस पुरातात्विक व ऐतिहासिक स्थल की विशिष्टता की पुष्टि हो जाएगी। इसका विकास होना चाहिए। महापरिनिर्वाण, मांथा कुंवर व रामाभार के बाद चौथा स्थल धातु वितरण (अनिरुद्धवा टीला) से प्रमुख दर्शनीय स्थलों में जुड़ जाएगा।