लखीमपुर खीरी (वेबवार्ता)- गोला सीट पर होने वाला उपचुनाव अखिलेश यादव के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा था। वजह- मुलायम के निधन के बाद यह पहला चुनाव था।
जानकारों का मानना है कि पिता की मौत की वजह से अखिलेश यादव गोला सीट पर प्रचार में समय नहीं दे पाए। लेकिन यह उनकी रणनीति और उनके रणनीतिकारों की परीक्षा जरूर थी।
प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद भूपेंद्र चौधरी पहला चुनाव जीते भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद भूपेंद्र चौधरी का यह पहला चुनाव था। इस चुनाव के लिए उन्होंने पूरी मेहनत भी की। 27 अक्टूबर से ही भूपेंद्र चौधरी ने गोला गोकर्णनाथ में डेरा डाल दिया था। वह चुनाव से एक दिन पहले तक वहां रहे। इस दौरान उन्होंने वहां रैलियां की और कार्यकर्ताओं से मिलकर उनमें जोश भरा।
अब भाजपा के सामने निकाय चुनाव है साथ ही 2024 का लोकसभा चुनाव है। इन चुनावों के लिए राजनीतिक दल इस चुनाव को सेमीफाइनल मान कर चल रही थी। इस चुनाव को बड़े अंतर से जीतने के बाद परसेप्शन की लड़ाई में आगे हो गई है।
जानकार मानते हैं कि इस चुनाव में अगर भाजपा की हार होती तो मनोवैज्ञानिक लाभ सपा को मिल जाता। यही वजह रही कि भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों की पूरी फौज गोला उपचुनाव में उतार दी। जिसका फायदा मिला और अमन गिरी रिकार्ड मार्जिन से जीते। विनय तिवारी लगातार तीसरा चुनाव हार गए हैं। परिसीमन के बाद गोला सीट 2012 में अस्तित्व में आई थी। जिसके बाद से इस सीट पर सपा के विनय तिवारी ने कब्जा जमाया था। तब कुल 64.7% वोटिंग हुई थी। तब विनय तिवारी को 37% वोट शेयर के साथ 82439 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर बसपा कैंडीडेट था।
मुस्लिम वोटों का भी नहीं मिला फायदा
गोला विधानसभा सीट पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में माना जाता है। यहां 3 लाख 95 हजार 433 की आबादी में मुस्लिम 80 हजार के आसपास हैं तो पिछड़ी जातियां भी 1.25 लाख से ज्यादा हैं। जबकि दलितों की संख्या भी यहां अच्छी खासी है। दलितों की आबादी 1.20 लाख के आसपास है। बाकी यहां ब्राहमण मतदाताओं का प्रभाव भी माना जाता है।
इस चुनाव में बसपा और कांग्रेस नहीं लड़ रही थी। ऐसे में सपा निश्चिंत थी कि उन पार्टियों का वोट उनकी तरफ शिफ्ट हो सकता है। हालांकि, रिजल्ट के बाद यह अंदाजा भी गलत साबित हुआ। बीते तीन बार की तरह इस बार भी विनय तिवारी को हार का सामना करना पड़ा।