जयपुर, (वेब वार्ता)। राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता और उदयपुर से सात बार के विधायक गुलाब चंद कटारिया करीब पांच दशक बाद प्रदेश की राजनीति से दूर हो गए हैं। उन्हें असम का नया राज्यपाल बनाया गया है। चुनाव से कुछ ही महीने पहले दिग्गज नेता के सियासी तस्वीर से हट जाने से प्रदेश की राजनीति पर असर होगा। खासकर मेवाड़ और उदयपुर को लेकर अटकलें शुरू हो गई हैं।
दो दिन पहले विधानसभा में पुराना बजट पढ़ने की वजह से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जमकर घेरने वाले कटारिया के अचानक राज्यपाल बनाए जाने से कटारिया के समर्थकों में मिलीजुली प्रतिक्रिया है। कटारिया के कुछ समर्थक इसे उनके दलीय राजनीति से विदाई के तौर पर देख रहे हैं तो कुछ को लगता है कि लंबे समय तक पार्टी के लिए प्रतिबद्धता से काम करने वाले नेता को सम्मान दिया गया है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कटारिया के बाद उदयपुर और मेवाड़ इलाके में राजनीतिक समीकरण बदलेंगे, जिनका असर यहां की कई सीटों पर हो सकता है। बड़ा सवाल यह भी है कि कटारिया की जगह कौन लेगा और भाजपा उदयपुर सीट से अब किसे उतारेगी। अभी तक यह माना जा रहा था कि 78 वर्षीय नेता एक बार फिर उदयपुर से चुनाव लड़ेंगे। कटारिया ने भी हाल ही में कहा था कि वह कहीं नहीं जा रहे हैं और उदयपुर से लड़ेंगे।
जैन समुदाय से आने वाले कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद भाजपा के सामने एक बड़ी दुविधा होगी कि उदयपुर से किसे मैदान में उतारा जाए। जैन समुदाय से आने वाले ही किसी प्रत्याशी को उतारा जाए या ब्राह्मण को मौका दिया जाए। 2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में कटारिया ने कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री गिरिजा व्यास को हराया था। उससे पहले के चुनावों में उन्होंने कांग्रेस नेता दीनेश श्रीमाली को मात दी थी।
करीब 5 दशकों तक राजस्थान की राजनीति में सक्रिय रहे कटारिया कई बार मंत्री रह चुके हैं। 1993-1998 तक भाजपा सरकार में वह शिक्षा मंत्री रहे। 2004 में भाजपा सत्ता में आई तो उन्हें गृह मंत्रालय के साथ पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट का जिम्मा दिया गया। 2014-18 तक वसुंधरा सरकार में भी वह मंत्री रहे। 1989 से 91 तक वह उदयपुर से लोकसभा सांसद भी रहे। वह विधानसभा चुनावों में बदी सदरी सीट से जीतते रहे।