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Thursday, October 5, 2023

‘कोचिंग सिटी को तबाह करने वाला आदेश वापस ले सरकार’, पूर्व विधायक राजावत की दो टूक

कोटा, (वेब वार्ता)। ‘देश और दुनिया में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए चर्चित कोटा में कोचिंग हब किसी भी सरकार की मेहरबानी से नहीं बना। कोचिंग संचालकों ने कड़ी मेहनत कर कोटा का नाम रोशन किया है।’ ये बात पूर्व संसदीय सचिव भवानी सिंह राजावत ने कही है। उन्होंने कहा कि अब स्वायत्त शासन मंत्री इस कोचिंग हब को रानपुर में स्थापित करना चाह रहे हैं, जो बड़ी विडम्बना होगी। हम बीजेपी शासन आते ही इस आदेश को रद्द करवायेंगे। कोचिंग संस्थान, हॉस्टल, मेस सब पहले की तरह कोटा में ही चलते रहेंगे।

पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत ने उठाया मुद्दा

पूर्व विधायक राजावत की अगुवाई में कोटा शहर के कई नागरिकों ने जिला कलक्टर ओपी बुनकर से मुलाकात की। उन्हें मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि आज देश के कोने-कोने में कोटा को शिक्षा नगरी के नाम से जाना जाता है। वो यहां के कोचिंग संचालकों की कठोर तपस्या से ही सम्भव हो सका है। कोटा शहर में लैंडमार्क सिटी कुन्हाड़ी, कोरल पार्क नया नोहरा, डकनिया स्टेशन रोड विज्ञान नगर, तलवंडी, महावीर नगर, राजीव गांधी नगर, जवाहर नगर, बसंत विहार, दादाबाड़ी क्षेत्र कोचिंग संस्थान और हॉस्टलों से भरे पड़े हैं।

क्या है पूरा मामला

पूर्व विधायक राजावत ने कहा कि पूरे शहर के लाखों लोग रोजी रोटी के लिए कोचिंग इंडस्ट्री पर ही आश्रित हैं। हजारों लोगों ने लोन लेकर छात्रावास बनाए हुए हैं। हजारों लोग मेस चलाकर विद्यार्थियों को भोजन उपलब्ध करवा रहे हैं। हजारों लोग स्टेशनरी, टेबल कुर्सी, रजाई गद्दों जैसे सामानों का व्यापार कर अपना परिवार चला रहे हैं। ऐसे में अगर कोचिंग को रानपुर में स्थानान्तरित कर दिया जाता है तो इन हजारों परिवारों के लाखों लोग बेरोजगार होकर भूखों मरने को विवश हो जायेंगे। वहीं ऋण नहीं चुका पाने की स्थिति में हॉस्टल नीलाम हो जाएंगे। इनके मालिक सड़क पर आ जाएंगे। कोटा शहर वीरान हो जायेगा।

राजावत ने कहा कि वैसे भी आवास और शिक्षा की दृष्टि से रानपुर का पठारी इलाका मुनासिब नहीं है। यह पूरा इलाका डार्क जोन है, जहां सैंकड़ों फीट तक पानी नहीं है। स्वायत्त शासन मंत्री यहां पर चम्बल का पानी लाना चाहते हैं। लेकिन उन्हें कोटा शहर के 2.5 लाख लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए जो उनकी सरकार के 4 साल निकल जाने के बाद भी चम्बल के पानी से वंचित हैं।

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