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Friday, September 22, 2023

बिहार में लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस को मिली मात्र 1 सीट, इस बार 10 सीट पर दावेदारी, क्या इतनी सीटें देंगे लालू-नीतीश

पटना, (वेब वार्ता)। I.N.D.I.A का निर्माण तो हो गया है। इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि बड़े दल क्षेत्रीय क्षत्रपों की महत्वाकांक्षा का कितना ध्यान रखते हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो ये सियासी गठबंधन बीच मझधार में दम तोड़ देगा। जी हां, ये हम नहीं कह रहे हैं। बिहार और देश की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र कुमार ऐसा ही मानते हैं।

उनका कहना है कि बिहार, यूपी, पंजाब, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे स्टेट में कांग्रेस को अपना दिल बड़ा रखना होगा। विपक्षी एकता के सपने को पूरा करने के लिए इन राज्यों में कांग्रेस को अपनी सियासी इच्छाओं का दमन करना होगा। तब जाकर बात बनेगी। अन्यथा काम बिगड़ेगा। राजनीतिक जानकारों और पत्रकारों की बातें कुछ हद तक सही भी है। कांग्रेस फिलहाल मुंडे-मुंडे मति भिन्ना के दौर से गुजर रही है। वहां फैसले अभी भी केंद्रित नहीं हैं। मैडम सोनिया से होते हुए मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल के रास्ते फैसले पार्टी तक पहुंचते हैं। ऐसे में कांग्रेस को संभलकर चलना होगा।

सीटों पर चर्चा जारी

उधर, राज्यों में सीट बंटवारे को लेकर अभी से चल रही चर्चा पर राजनीतिक जानकार तंज कसते हैं। उनका मानना है कि गांव बसा नहीं कि लुटेरे आ गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस का परफॉर्मेंस शून्य रहा। कांग्रेस को महज किशनगंज सीट पर सफलता मिल पाई। नीतीश कुमार एनडीए में थे इसलिए सम्मानजनक सीटों पर जीत हासिल हो गई। 2014 को याद कीजिए एनडीए से अलग हटकर जेडीयू ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था और मात्र दो सीटों पर सिमट गई थी। 2019 में जेडीयू ने एनडीए के साथ चुनाव लड़ा और जेडीयू को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई। वैसे में सियासी पीच मात्र एक रन बनाकर आउट रही कांग्रेस अभी से 10 सीटों का राग अलाप रही है। जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव कांग्रेस को कतई 10 सीट नहीं देंगे! लालू प्रसाद यादव डबल डिजिट देखते ही सोनिया गांधी को फोन करेंगे और बिहार में भी कांग्रेस को मन मुताबिक सीट नहीं मिलेगी।

कांग्रेस शून्य पर आउट हुई थी

कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में 421 सीटों पर लड़ी थी और 373 पर बीजेपी उसकी सीधी टक्कर थी। वहीं बीजेपी ने 2019 का चुनाव 435 सीटों पर लड़ा था जबकि बाकी सीटों पर उसके गठबंधन सहयोगियों ने चुनाव लड़ा था। नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक अभियान चलाने के बावजूद सबसे पुरानी पार्टी 2019 के लोकसभा चुनावों में केवल 52 सीटें जीतने में सफल रही। चार साल बाद, 2023 में, कांग्रेस लोकसभा चुनावों में लगातार दो बड़ी हार झेलने के बाद बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए से मुकाबला करने के लिए 26 विपक्षी दलों को एक साथ लेकर आई है। इन 26 दलों में कुछ ऐसे दल शामिल हैं जो राज्यों में मजबूत स्थिति में हैं। वैसे में यदि कांग्रेस नेतृत्व करने का सोचती है तो उसे क्षेत्रीय दलों के लिए बलिदान करना होगा। वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र कहते हैं देखिए ऐसा होगा नहीं। कांग्रेस की बात शायद ही ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल सुनेंगे। वे करेंगे अपने मन की। अंत में इतना विवाद होगा कि नीतीश और लालू को भी इससे किनारा करना पड़ेगा।

खिचड़ी पकाना मुश्किल है?

बिहार और कर्नाटक में दोनों विपक्षी बैठकों का हिस्सा रहे एक पार्टी नेता ने कहा कि 26 विपक्षी दलों को एक साथ लाना लोकतंत्र और संविधान को बचाना है जिस पर हमला हो रहा है। कांग्रेस का मानना है कि यही विचार सभी दलों को साथ जोड़कर रखेगा। कांग्रेस नेता ये भूल जाते हैं कि बिहार जैसे राज्य में आरसीपी सिंह, उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश साहनी और जीतन राम मांझी जैसे सहयोगी भी हैं जो पूरी तरह एनडीए के साथ हैं। बिहार में चिराग पासवान जैसा दलित चेहरा एनडीए के पास है। कांग्रेस किस बिखराव की बात कर रही है। एनडीए के खिलाफ जिस तरह का माहौल कांग्रेस बनाना चाह रही है। क्या वो माहौल पब्लिक को कन्विंस कर पाएगी। केंद्र सरकार की कई योजनाओं के समर्थन में आम लोग हैं। मुफ्त अनाज और किसान सम्मान निधि योजना। इसे लोग पसंद कर रहे हैं। कई राज्यों में इसका नाम बदलकर मुख्यमंत्री अपने नाम से चला रहे हैं। लोगों के मन में ये बैठ चुका है कि ये मोदी की वजह से मिल रहा है। इस सोच का क्या करेगी कांग्रेस।

बिहार में 10 सीट आसान नहीं

कांग्रेस के नेता कहते हैं कि 2019 में बीजेपी के खिलाफ सीधे चुनाव लड़ने वाली सीटों को देखते हुए पार्टी में विस्तृत चर्चा चल रही है और वह अभी भी देश भर में कम से कम 400 सीटों पर लड़ने की कोशिश करेगी। इस बीच, पार्टी के एक सूत्र ने कहा कि बैठक के बाद एक सुखद तस्वीर पेश करने के बावजूद आगे की राह बहुत आसान नहीं है। इसके लिए बहुत गंभीर बातचीत की आवश्यकता है जिसमें उन राज्यों में बलिदान शामिल है जहां क्षेत्रीय दल इसके मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं। होगा। ऐसी ही स्थिति बिहार में है, जहां कांग्रेस लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल-यूनाइटेड जैसे मजबूत क्षेत्रीय दलों के साथ महागठबंधन का हिस्सा है। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। वहां एनडीए ने 2019 के आम चुनावों में 39 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को सिर्फ किशनगंज सीट पर सफलता मिली थी। हालांकि उस समय एनडीए का हिस्सा रहे जदयू ने 16 सीटें जीती थीं। हालांकि, नीतीश कुमार के एक बार फिर एनडीए छोड़कर पुराने गठबंधन में शामिल होने से गठबंधन सहयोगियों का मनोबल बढ़ा है। कांग्रेस इस बार बिहार में कम से कम 10 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए उत्सुक है। जानकार मानते हैं कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के साथ सीट बंटवारे पर चर्चा करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा।

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