भोपाल। भगवान श्रीराम के बारे में हर कोई जानता है। उनके बारे में दास्तान और शायरियां पुराने जमाने में उर्दू में भी लिखी गई हैं। इन्हीं को पढ़कर, सुनकर मैं अपनी शैली और विशेष अंदाज में दास्तानगोई के रूप में पेश करती हूं। शैली को छोड़ दिया जाए तो इसमें नया कुछ नहीं है। शायरियों को छोटी-छोटी कहानियों के अंदाज में व्यक्त करना ही दास्तनगोई है। यह कहना है देश की पहली महिला दास्तानगो फौजिया का। गत दिनों वे रवींद्र भवन में आयोजित एक संगोष्ठी में दास्तां-ए-राम की प्रस्तुति देने आईं थीं। इस मौके पर नवदुनिया से चर्चा में उन्होंने बताया कि दास्तानगोई भारत की पुरानी कला परंपरा है, जिसे दुनियाभर में पसंद किया जाता है। भारत में वर्तमान समय में महाभारत और श्रीराम की दास्तानगोई सबसे ज्यादा पसंद की जा रही है।
इस विधा से जुड़ने के बारे मे उन्होंने बताया कि मैं पुरानी दिल्ली से हूं और पुरानी दिल्ली में दास्तानगोई की परंपरा रही है। मैं आखिरी दास्तानगो मीर बाकर अली से प्रभावित थी, जिनकी मृत्यु 1928 में हुई थी। उनके वीडियो देखे, उनके बारे में पढ़ा और दस्तानगोई करने लगी। मेरा न कोई घराना है और न मेरे घर से कोई दास्तानगो है। यह विधा मुझे शुरू से आकर्षित करती थी और दानिश हुसैन के साथ काम करना आरंभ कर दिया। वर्ष 2006 से दास्तानगोई कर रही हूं।
कला के लिए नौकरी छोड़ दी
फौजिया ने बताया कि जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन से एमए करने के बाद मैं एनसीईआरटी में लेक्चरर थी, लेकिन 2014 में नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से आर्ट फार्म में आ गई हूं। अभी तक देश- विदेश में तीन सौ शो हो चुके हैं। भोपाल में मेरे छह शो हो चुके हैं। पहली बार 2015 में गौहर महल में प्रस्तुति दी थी। फौजिया ने बताया कि ऐसा नहीं है कि मैं सिर्फ श्रीराम की कहानी ही सुनाती हूं। दास्तां-ए-गांधी, महाभारत, राधा-कृष्ण भी उर्दू में सुनाई है। सभी कहानियां दानिश इकबाल द्वारा लिखी गई हैं। मैं कम्युनल हारमनी में काम कर रही हूं। पुराने जमाने में सब उर्दू में लिखा जाता था। हमने बहुत पुरानी शायरी निकाली, उन्हें मिलाया और डिजाइन की है, जिन्हें उसी भाषा में नए ढंग से सुनाती हूं। हमारे ग्रुप में छह कलाकार हैं, जो कहानी सुनाते हैं। दास्तानगोई में संगीत जरूरी नहीं है। बस इसमें कहानियां कविता के रूप में होनी चाहिए। सीधी-सपाट कहानी पर दास्तानगोई नहीं की जा सकती है।