राजनांदगांव, (वेब वार्ता)। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र राजनीतिक दलों के लिए प्रयोगशाला रहा है। यहां लोकसभा ही नहीं बल्कि विधानसभा चुनाव में भी बाहरी प्रत्याशी उतारे जाते रहे हैं और उन्हें सफलता भी मिलती रही है। राजनांदगांव के संसदीय इतिहास में हुए 17 चुनावों में सात बार प्रमुख दलों ने जिले के बाहर से प्रत्याशी उतारा। इनमें तीन बार सफलता मिली।
वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पहली बार बाहरी प्रत्याशी के रूप में मुंबई में कारोबार करने वाले रामसहाय पांडे को चुनाव लड़ाया था। इंदिरा विरोधी लहर में उन्होंने पद्मावती देवी को मात दी थी। पांडे को 1977 में कांग्रेस से दोबारा लोकसभा चुनाव में उतारा, लेकिन इस बार वे भारतीय लोकदल के मदन तिवारी से हार गए। वर्ष 1984 में स्वामी अग्निवेश जनता पार्टी से लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन जीत कांग्रेस के शिवेंद्र बहादुर सिंह को मिली।
उन्होंने कांग्रेस के बागी स्वतंत्र प्रत्याशी पं. किशोरीलाल शुक्ल को मात दी थी। अग्निवेश तीसरे स्थान पर थे। भाजपा के पं. शिवकुमार शास्त्री चौथे क्रम पर रहे। 1989 में भाजपा ने दुर्ग के मूल निवासी धर्मपाल गुप्ता को दो बार के सांसद शिवेंद्र बहादुर के खिलाफ मैदान में उतारा था।
प्रयोग सफल रहा और गुप्ता जीत गए। 1991 में धर्मपाल गुप्ता को भाजपा ने फिर अवसर दिया, लेकिन वे शिवेंद्र बहादुर सिंह से हार गए। दुर्ग के निवासी मोतीलाल वोरा ने यहां से दो बार लोकसभा चुनाव लड़ा। उन्हें 1998 में तो सफलता मिली, लेकिन डेढ़ वर्ष बाद 1999 में डा. रमन सिंह से हार गए।
करुणा ने दी थी कड़ी चुनौती
विधानसभा चुनाव में भी बाहरी लोग भाग्य अजमाने में पीछे नहीं रहे। 2018 में कांग्रेस से करुणा शुक्ला मैदान में उतरा। वह तीन बार के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के सामने मैदान में थीं। चुनाव तो नहीं जीत पाईं, लेकिन डा. रमन को कड़ी चुनौती दी। उनके 2013 के चुनाव में जीत के अंतर 35 हजार को 16 हजार तक ले आईं। इसी तरह 1967 में सपा से दुर्ग निवासी कस्तूरचंद पुरोहित ने चुनाव लड़ा था। उन्हें सफलता नहीं मिली।