राजनांदगांव, 05 अक्टूबर (वेब वार्ता)। खैरागढ़ विधानसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। यहां के राज परिवार ने लंबे समय तक इस सीट पर राज किया। यहां कोमल जंघेल विधायक ने 47 साल बाद वर्ष-2007 के उपचुनाव में कमल खिलाया था।
2008 के आम चुनाव में भी उन्हें जीत मिली, लेकिन उसके बाद 1960 से 1993 तक कांग्रेस से रानी रश्मि देवी सिंह ही जीतती रहीं। उनके निधन के बाद 1995 में यह सीट खाली हुई तो उपचुनाव में उनके ही बेटे देवव्रत सिंह ने जीत दर्ज की।
1998 और 2003 के चुनाव में भी देवव्रत सिंह ने ही बाजी मारी। एक समय ऐसा आया जब देवव्रत सिंह ने संसदीय चुनाव जीता। इसके बाद खैरागढ़ सीट एक बार फिर खाली हो गई। वर्ष-2007 में यहां फिर उपचुनाव हुआ, जिसमें देवव्रत ने पत्नी पद्मा सिंह को चुनाव मैदान में उतारा। वहीं भाजपा ने पहली बार कोमल जंघेल पर विश्वास जताया। कोमल ने पद्मा सिंह को हराकर खैरागढ़ विधानसभा सीट पहली बार भाजपा की झोली में डाला।
इसके बाद कोमल पर पार्टी का विश्वास बढ़ गया। वर्ष 2008 में भाजपा ने कोमल पर दूसरी बार दांव खेला, जिसमें उन्होंने करीब 19 हजार मतों से जीत दर्ज की। इसके बाद कोमल को लगातार दो हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2013 में कांग्रेस के गिरवर जंघेल ने 2190 वोट से और 2018 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) के प्रत्याशी देवव्रत सिंह ने उन्हें 870 मतों से पराजित किया। गत वर्ष हुए उपचुनाव में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
870 वोट से मिली हार
खैरागढ़ सीट पर 2018 में विधानसभा चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने जीत हासिल की थी। यहां जकांछ के प्रत्याशी देवव्रत सिंह को 61,516, भाजपा के कोमल जंघेल को 60,646 और कांग्रेस के गिरवर जंघेल को 31,811 वोट मिले थे। इस सीट में जीत का अंतर सिर्फ 870 वोट का था। विधायक देवव्रत सिंह के निधन के बाद सीट रिक्त हुई थी, जिस पर उपचुनाव हुआ। इसमें कांग्रेस की प्रत्याशी यशोदा वर्मा ने 20,157 वोटों से जीत दर्ज की थी।
अब तक के विधायक
ऋतुपर्ण किशोरदास, लाल उमेंद्र सिंह, वीरेंद्र बहादुर सिंह, विजयलाल ओसवाल, माणिकलाल गुप्ता, रश्मिदेवी सिंह, देवव्रत सिंह, कोमल जंघेल, गिरवर जंघेल व 2018 में फिर देवव्रत सिंह विधायक। वर्ष 2022 में उपचुनाव में यशोदा वर्मा जीत दर्ज कर खैरागढ़ की 17वें नंबर की विधायक बनीं।