वेबवार्ता: मुकेश शर्मा, ग्वालियर/मुरैना। महान फिल्म निर्देशक चंबल के लाल के. आसिफ की स्मृति में आयोजित होने वाले छठवें चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का पोस्टर जनपद मुख्यालय स्थित अमर शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल संग्रहालय में रिलीज कर दिया गया। फिल्म फेस्टिवल के छठे वर्ष की थीम चंबल में सिनेमा और पर्यटन को रखा गया है। इसमें जनपद के सामाजिक-संस्कृतिक सरोकारों से जुड़े लोगों से फेस्टिवल से जुड़ने की अपील की गई।
चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के संस्थापक डॉ. शाह आलम राना ने बताया कि अगले माह 3 और 4 सितंबर को इटावा में राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय सभागार में इस फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है। इसमें देश और दुनिया की मशहूर फिल्मों को दिखाया जाएगा। इस दौरान देश भर से आए तमाम दिग्गज फिल्मकार और सिनेप्रेमी मौजूद रहेंगे। चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल की थीम इस बार सिनेमा और टूरिज्म को रखा गया है। चंबल क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से इस बार भी के. आसिफ चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल विश्व के फिल्मकारों और सिने-प्रेमियों के बीच एक सेतु बनेगा। चंबल की स्थानीय जगहों को लोकप्रिय बनाना है तो फिल्मों की शूटिंग को आसान बनाना होगा, तभी विलेज टूरिज्म को बढ़ावा मिल सकेगा।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि सिनेमा और पर्यटन में तालमेल बनाने के लिए सभी को गंभीरता से सोचने की जरूरत है। हमें इन पर्यटन स्थलों का प्रचार-प्रसार करने के लिए सिनेमा जैसे सशक्त माध्यम की लोकप्रियता का फायदा उठाना चाहिए। यहाँ के प्राकृतिक आकर्षण वाले स्थलों, संस्कृति और विरासत को प्रदर्शित करने का मौका मिल सकेगा। जिससे स्थानीय, अंतरराज्यीय, अंतरराष्ट्रीय पर्यटक चंबल की सैर को आकर्षित होंगे। यहां के सुंदर स्थलों, संस्कृतियों, परंपराओं, जन जीवन को सिनेमा जैसे रचनात्मक और शक्तिशाली माध्यम के रूप में वैश्विक दर्शकों तक पहुंचें, यही चाहत है।
के. आसिफ चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए आयोजन समिति से जुड़े चन्द्रोदय सिंह चौहान ने कहा कि 3 सितंबर को उद्घाटन सत्र के बाद दो दिवसीय आयोजन में फोटो प्रदर्शनी, सांस्कृतिक कार्यक्रम, पोस्टर मेकिंग, रंगोली कंपटीशन, फिल्म मेकिंग वर्कशाप, फिल्म प्रदर्शन और विमर्श सत्र होंगे।
चंबल संभाग के पुरातत्व अधिकारी डॉ. अशोक शर्मा ने कहा कि सदियों से उपेक्षित बागियों की शरणस्थली चंबल घाटी के खूबसूरत बीहड़ फिल्मकारों की पहली पंसद रहे है। इन बीहड़ों में चंबल, बीहड़, बागी पृष्ठभूमि पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं। एक दौर ऐसा भी आया जब देश में बनने वाली हर चौथी फिल्म की कहानी या लोकेशन चंबल घाटी रही है। इसी वजह से चंबल घाटी को ‘फिल्मलैंड’ भी कहा जाता है।
चंबल पर बनी प्रसिद्ध फिल्में: जमींदारों के अत्याचार, आपसी लड़ाई और जर-जोरू और जमीन के झगड़ों को लेकर 1963 में आई फिल्म ‘मुझे जीने दो’ के बाद इस विषय पर सत्तर के दशक में बहुत सारी फिल्में, चंबल के बीहड़ और बागियों को लेकर बनीं। इनमें डाकू मंगल सिंह-1966, मेरा गांव मेरा देश-1971, चंबल की कसम-1972, पुतलीबाई-1972, सुल्ताना डाकू-1972, कच्चे धागे-1973, प्राण जाएं पर वचन न जाए-1974, शोले-1975, डकैत-1987, बैंडिट क्वीन-1994, वुंडेड -2007, पान सिंह तोमर-2010, दद्दा मलखान सिंह और सोन चिरैया-2019 आदि हैं।
खूबसूरत लोकेशनः चंबल घाटी में कई प्राकृतिक लोकेशन बहुत ही दिलचस्प और आकर्षक हैं जो फिल्मी पर्दे पर जान डाल देने के लिए काफी है। पांच नदियों के संगम स्थल पंचनदा की नैसर्गिक सुंदरता विदेश के खूबसूरत पर्यटन स्थलों को भी मात देती है। भारतीय संसद का मुखौटा चौसठ योगिनी, चांदी की तरफ चमकते रेतीले मैदान, अंगड़ाई लेते घड़ियाल, करतब दिखाती डाल्फिने, कल-कल बहने की मधुर तरंग, प्राचीर किले और मंदिर, सिहरन पैदा करते भरखे, कलरव करते नभचर सिनेमाई पर्दे पर जान फूंकने के लिए काफी हैं। प्रकृति से वरदान मिली इन धरोहरों को आज ना केवल सुरक्षित रखने की जरूरत है बल्कि उसको लोकप्रिय भी बनाना हमार फर्ज है। अगर चंबल घाटी में वैश्विक पर्यटन को आकाश मिलता है तो विकास के नये आयामों का सृजन होगा। साथ ही रोजगार की नई-नई संभावनाओं के द्वार खुल सकेंगे।
घाटी में बने फिल्म सिटीः इन सबके बावजूद चंबल घाटी में फिल्मसिटी आज तक नहीं बन सकी। पीले सोने यानी सरसों की नैसर्गिक सुंदरता कश्मीर की वादियों को कई मायनों पर टक्कर देती है। इस लिहाज से चंबल का कोई सानी नहीं है। प्राकृतिक तौर पर बेहद आंनदमयी चंबल घाटी को फिल्मलैंड के रूप मे स्थापित कर नये फिल्मकारों के लिए एक नया रास्ता खोला जा सकता है। अगर फिल्मसिटी चंबल घाटी में बन जाती है तो फिल्मकारों को शूटिंग के लिहाज से बहुत ही उपयोगी होगी क्योंकि यहाँ की वादियाँ बहुत ही सुकूनदेह हैं। चंबल फाउंडेशन लंबे अरसे से यहाँ फिल्म सिटी बनाने की मुहिम चला रहा है।
चंबल घाटी में बने फिल्म स्कूलः मुगले आजम जैसी यादगार फिल्म बनाकर विश्व सिनेमा में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने वाले महान फिल्म निर्देशक के. आसिफ के नाम से फिल्म स्कूल की स्थापना हमारी वर्षों पहले से मांग रही। क्योंकि पुणे और कोलकाता के बाद पूरे उत्तर भारत में सरकारी सिनेमा स्कूल नहीं है। लिहाजा बगैर देर किये पश्चिम और पूरब को जोड़ने के लिए चंबल में सिनेमा स्कूल बनाया जाना निहायत जरूरी है ताकि यहां से हर वर्ष के. आसिफ की विरासत को आगे बढ़ाने वाले फिल्मकार पढ़कर निकलें।
इस अवसर पर चंबल इंटर नेशनल फिल्म फेस्टिवल आयोजन समिति से जुड़े प्रगतिशील किसान अतर सिंह तोमर, दस्तावेजी फिल्म निर्माता उमेश गोन्हजे, फिल्मकार शशांक डण्डोंतिया ने भी अपनी बात रखी।