नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। क्रिकेट की दुनिया में कई खिलाड़ी हैं जो अपनी तकनीक, धैर्य और संतुलन से पहचाने जाते हैं। लेकिन ऋषभ पंत एक ऐसे नाम हैं जो जोश, जोखिम और जुनून से खेलने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने करियर में कई बार खुद को साबित किया है, लेकिन मैनचेस्टर टेस्ट में घायल पैर के साथ बल्लेबाज़ी करने का उनका निर्णय एक अलग ही स्तर की कहानी है – साहस, जिद और बेमिसाल प्रतिभा की।
जब पैर टूटा, लेकिन इरादा नहीं
मैच के दौरान एक तेज़ गेंद पर रिवर्स स्वीप मारने की कोशिश में ऋषभ पंत को गंभीर चोट लगी। बताया गया कि चोट फ्रैक्चर जैसी गंभीर थी और वह अपने पैर पर वजन तक नहीं डाल पा रहे थे। डॉक्टरों की सलाह थी कि वह मैदान से दूर रहें, लेकिन ऋषभ पंत ने मेडिकल सलाह को दरकिनार करते हुए बैटिंग करने का फैसला लिया।
यह कोई आख़िरी बल्लेबाज़ की मजबूरी नहीं थी। उस समय भारत का स्कोर 314/6 था और पिच पर वॉशिंगटन सुंदर जैसे सेट बल्लेबाज़ मौजूद थे। फिर भी पंत मैदान पर उतरे – मूनबूट पहने, बैसाखी के सहारे।
“पंत को कोई रोक नहीं सकता”
पंत का अतीत भी उनकी ज़िद और बहादुरी का गवाह रहा है। सिडनी टेस्ट (2021) में कोहनी में गहरी चोट के बावजूद 97 रनों की शानदार पारी खेलने वाले पंत वही खिलाड़ी हैं। और अब जब वह कार दुर्घटना से चमत्कारिक वापसी कर मैदान पर लौटे हैं, तो उन्हें बताना मुश्किल है कि “क्या किया जाए और क्या नहीं।”
दर्द से लड़ाई, मैदान पर लड़ाई
जब पंत दोबारा बल्लेबाज़ी करने आए, तो इंग्लैंड ने रणनीति बदल दी। उनके कमजोर पैर को निशाना बनाया गया। लेकिन उन्होंने न फ्रंट फुट हटाया, न पीछे हटे। दर्द और दवाओं के बीच उन्होंने रन भी दौड़े – कुल 14 रन दौड़कर लिए। और जोफ्रा आर्चर की धीमी गेंद पर एक शानदार छक्का जड़ा।
जब उनका अर्धशतक पूरा हुआ, तो यह महज़ 50 रन नहीं थे – यह उन सभी बाधाओं पर जीत का प्रतीक था जो पंत के सामने थीं: टूटी हड्डी, डॉक्टर की चेतावनी, टीम की चिंताएं, और इंग्लैंड की गेंदबाज़ी।
सवाल भी, जवाब भी
कुछ विशेषज्ञों ने पूछा – क्या यह ज़रूरी था? क्या इससे दूसरे बल्लेबाज़ की लय प्रभावित नहीं हुई? क्या यह खुद पंत के स्वास्थ्य के लिए ख़तरा नहीं था?
इन सभी सवालों के जवाब शायद पंत के पास खुद भी न हों। लेकिन क्रिकेट की दुनिया जानती है कि कुछ फैसले तर्क से नहीं, आत्मा की पुकार से लिए जाते हैं – और पंत का फैसला वैसा ही था।
निष्कर्ष: एक कहानी जो सिर्फ आंकड़ों में नहीं बंधती
ऋषभ पंत की यह पारी कोई साधारण स्कोरकार्ड का हिस्सा नहीं, बल्कि इंसानी जज़्बे और खेल भावना की अद्वितीय कहानी है। उन्होंने फिर से दिखा दिया कि क्रिकेट सिर्फ गेंद और बल्ले का खेल नहीं, बल्कि हिम्मत, दिलेरी और आत्मबल का मैदान भी है।
एक उतावले लेकिन बहादुर खिलाड़ी ने न सिर्फ जोखिम उठाया, बल्कि उसे निभाया भी — और एक बार फिर भारत को ऐसा खिलाड़ी दिया, जिसकी कहानियां पीढ़ियों तक सुनाई जाएंगी।