Uniform Civil Code kya hai | News in Hindi : वेब वार्ता, ग्वालियर. देश में होने वाले अगले लोकसभा चुनावों के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड लाया जा सकता है। प्रधामनंत्री नरेंद्र मोदी इसको लेकर प्रयासरत हैं। देश में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण व्यवस्था भी होने की संभावना है।
ये बातें पंजाब-हरियाणा के पूर्व राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी कही हैं। सोलंकी ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने संविधान बनाते समय इस बात को ध्यान में रखा था कि भारत वर्ष के अंदर एक राष्ट्र एक व्यवस्था होनी चाहिए। और इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने जो कुछ प्रोविजन किए थे वो सारे के सारे अस्थाई थे और अनिश्चितकालीन थे।
सोलंकी ने कहा कि उदाहरण के लिए इन्होंने आरक्षण की इन्होंने व्यवस्था की, क्योंकि उस समय देश के अंदर समाज की जो व्यवस्था थी, आर्थिक दृष्टि से, पढ़ाई की दृष्टि से जो भेदभाव था, काफी अंतर था उसको दूर करने के लिए संविधान निर्माताओं ने सबके कल्याण के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। लेकिन हमको ध्यान में रखना चाहिए कि आरक्षण की व्यवस्था करते समय संविधान निर्माताओं ने संकेत दिया था कि ये आरक्षण की व्यवस्था अनिश्चितकालीन नहीं है।
दस वर्ष की समय सीमा उन्होंने तैयार की थी। और जिस प्रकार की व्यवस्था उन्होंने आरक्षण के लिए की उसी प्रकार से उन्होंने ये भी कहा था आगे चलकर एक देश एक नागरिक और एक कानून बनना चाहिए। अन्य सब बातों की जो सुविधा दी जा रही है, स्थायी नहीं है। इसे लेकर हम विचार करेंगे तो पता चलेगा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड की उन्होंने संकेत दिया था।
समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) क्या है?- What is Uniform Civil Code?
समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड का सीधा सा अर्थ है देश के सभी लोगों के लिए धर्म, जाति, पंथ, जातीयता और लिंग के बावजूद समान कानून। इसका मतलब है कि जब शादी, तलाक, विरासत आदि की बात आती है तो सभी लोग समान कानूनों का पालन करेंगे। उदाहरण के लिए भारत में एक मुस्लिम पर्सनल लॉ है जिसके तहत एक मुस्लिम व्यक्ति को चार बार शादी करने की अनुमति है। दूसरे समुदाय के लोग एक महिला से शादी कर सकते हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत पर आधारित है जबकि अन्य धर्मों के कानून संसद द्वारा. इसके अलावा अलग विवाह अधिनियम भी हैं।
यूनिफॉर्म सिविल कोड सभी के लिए – Uniform civil code for all
यूनिफॉर्म सिविल कोड एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर है। लेकिन भारत में अभी तक ऐसी कोई कानून व्यवस्था नहीं है। इस समय देश में हर धर्म के लोग शादी, तलाक और संपत्ति के मामलों को अपने पर्सनल लॉ के हिसाब से सुलझाते हैं। मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदायों के अपने निजी कानून हैं, जबकि हिंदू पर्सनल लॉ हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्मों के नागरिक मामलों से संबंधित है। ऐसे में भारतीय अदालतों ने कई मौकों पर समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर बल दिया है।
साल 1985 का शाह बानो केस
साल 1985 में शाह बानो केस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड देश को एक रखने में मदद करेगा। तब कोर्ट ने यह भी कहा था कि देश में अलग-अलग कानूनों से उपजा विचारधाराओं का टकराव खत्म हो जाएगा। इसके अलावा साल 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि संविधान के अनुच्छेद 44 को देश में लागू किया जाए।
किन देशों में क्या व्यवस्था..?
कई देशों के अपने-अपने समान नागरिक संहिताएं हैं. उदाहरण के लिए, फ्रांस में कानून सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं। युनाइटेड स्टेट्स और यूनाइटेड किंगडम के भी अपने यूसीसी हैं. ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और उज्बेकिस्तान में भी ऐसे कानून हैं। हालांकि, केन्या, पाकिस्तान, इटली, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया और ग्रीस में समान नागरिक संहिता नहीं है।