नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 7 अगस्त 2025 को जस्टिस यशवंत वर्मा की उस रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ चल रही इन-हाउस जांच और संसद में महाभियोग की सिफारिश को चुनौती दी थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के वर्तमान जज वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर मार्च 2025 में हुई एक आगजनी की घटना के दौरान कथित रूप से भारी मात्रा में जली हुई नकदी बरामद हुई थी। यह मामला उस समय से ही न्यायपालिका की पारदर्शिता और आचार संहिता को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है।
🔍 क्या है पूरा मामला?
मार्च 2025 में जब यशवंत वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत थे, तब उनके सरकारी आवास में आग लगने की खबर आई थी। आग बुझाने के दौरान उनके स्टोर रूम से जली हुई नकदी के बंडल पाए गए। इस घटना ने पूरे न्यायिक तंत्र में हड़कंप मचा दिया।
आरोपों की गंभीरता को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय इन-हाउस जांच समिति का गठन किया। समिति ने अपनी गोपनीय रिपोर्ट में कहा कि यशवंत वर्मा का कथित रूप से उस नकदी पर “गुप्त या सक्रिय नियंत्रण” था। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि प्रत्यक्ष सबूत नहीं मिले, लेकिन आचरण संदेहास्पद था।
⚖️ महाभियोग की सिफारिश और कानूनी चुनौती
इस रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने 8 मई 2025 को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखते हुए जस्टिस वर्मा के विरुद्ध संसद में महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश की। इसके खिलाफ जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
उन्होंने कहा कि इन-हाउस जांच समिति की प्रक्रिया असंवैधानिक थी और महाभियोग की सिफारिश बिना पर्याप्त प्रमाण के की गई है। उन्होंने पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्र की वैधता को भी चुनौती दी।
🧑⚖️ सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ — जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह — ने याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि:
इन-हाउस जांच पूरी पारदर्शिता के साथ की गई।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा भेजा गया पत्र असंवैधानिक नहीं था।
जस्टिस वर्मा का आचरण ऐसा नहीं था कि उस पर विश्वास किया जा सके।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि वर्मा को जांच समिति की प्रक्रिया पर आपत्ति थी, तो उन्होंने उसमें भाग क्यों लिया? इससे साफ है कि प्रक्रिया को उन्होंने स्वीकार किया था।
📜 पहले भी याचिका हुई थी खारिज
मार्च 2025 में अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्पारा ने दिल्ली पुलिस को जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। तब भी कोर्ट ने यह कहकर याचिका खारिज कर दी थी कि इन-हाउस जांच प्रक्रिया जारी है और इस समय एफआईआर की मांग अनुचित है।
🏛️ क्या होगा आगे?
अब इस मामले में आगे की प्रक्रिया संसद में तय होगी। महाभियोग की कार्यवाही शुरू की जाएगी या नहीं, यह संसद के दोनों सदनों की इच्छा पर निर्भर करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि न्यायपालिका के भीतर स्व-विनियमन की प्रक्रिया पर्याप्त रूप से मजबूत और वैध है।
📢 इस प्रकरण से उठे बड़े सवाल
यह मामला न केवल एक व्यक्तिगत न्यायाधीश के आचरण पर सवाल उठाता है, बल्कि पूरे न्याय तंत्र की पारदर्शिता, जवाबदेही और आत्मनियंत्रण के ढांचे की साख पर भी सवाल खड़े करता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि संसद इस सिफारिश पर क्या रुख अपनाती है।