Thursday, August 7, 2025
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पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन: जानें उनके राजनीतिक सफर और विवादों की पूरी कहानी

नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। देश की राजनीति में एक बेबाक और निष्पक्ष आवाज अब खामोश हो गई है। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का 78 वर्ष की उम्र में दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन से भारतीय राजनीति में एक ऐसा अध्याय समाप्त हो गया है जो सत्ता के केंद्र में रहकर भी सत्ता की आलोचना करने से नहीं हिचकता था। सत्यपाल मलिक न केवल एक अनुभवी राजनीतिज्ञ थे, बल्कि उन्होंने विभिन्न संवेदनशील पदों पर रहते हुए भी जनता के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया।


🕊️ राजनीतिक जीवन की शुरुआत और यात्रा

सत्यपाल मलिक का जन्म 24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में हुआ था। वह जाट समुदाय से आते थे और प्रारंभिक शिक्षा के बाद मेरठ कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक और फिर लॉ की डिग्री प्राप्त की। 1968 में छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले मलिक ने लोक दल, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अंततः भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जैसे विभिन्न दलों के साथ राजनीतिक पथ तय किया।

1980 में वह पहली बार राज्यसभा के सदस्य बने और 1989 में अलीगढ़ से लोकसभा सांसद चुने गए। उनके राजनीतिक जीवन की सबसे खास बात यह रही कि वह कभी पार्टी लाइन की परवाह किए बिना जनता से जुड़े मुद्दों पर मुखर होकर बोले।


🛕 राज्यपाल के रूप में कार्यकाल

सत्यपाल मलिक ने अपने राज्यपाल कार्यकाल के दौरान विभिन्न राज्यों में सेवाएं दीं:

  • जम्मू-कश्मीर (2018-2019): इस कार्यकाल में अनुच्छेद 370 को हटाने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया। मलिक उस समय राज्यपाल थे और उन्होंने इस निर्णय को लेकर कई बार सरकार की आलोचना भी की। वह घाटी में शांति बनाए रखने के लिए लगातार केंद्र सरकार से संवाद बनाए रखने की वकालत करते रहे।

  • गोवा (2019-2020): यहाँ रहते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे उठाए और राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े किए।

  • मेघालय (2020-2022): अपने अंतिम राज्यपाल कार्यकाल में उन्होंने किसानों के मुद्दों और भ्रष्टाचार पर खुलकर बोलना जारी रखा।


🔥 विवाद और बेबाक बयानों का सफर

सत्यपाल मलिक अपनी बेबाकी और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध रहे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की नीतियों पर भी खुलकर बयान दिए। खासकर किसान आंदोलन के दौरान उन्होंने सरकार की आलोचना की और किसानों के समर्थन में खड़े रहे।

उन्होंने पुलवामा हमले को लेकर भी सनसनीखेज बयान दिया था कि अगर चopper मांगे जाने की बात मान ली जाती, तो इतने जवानों की जान नहीं जाती। इस बयान से पूरे देश में हलचल मच गई थी।


🌾 किसानों के सच्चे हितैषी

पिछले कुछ वर्षों में मलिक ने किसानों के मुद्दों को लेकर कई बार सरकार से भिड़ंत ली। उन्होंने बार-बार कहा कि “यह सरकार केवल उद्योगपतियों की है, किसानों की नहीं।” उनकी इस बेबाक शैली के कारण उन्हें एक जननेता के रूप में भी देखा जाने लगा।


📜 मलिक की विरासत: सत्ता के खिलाफ सच बोलने वाला नेता

आज जब देश में सत्ता की आलोचना करना एक जोखिमपूर्ण कार्य बन चुका है, सत्यपाल मलिक जैसे नेता एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं कि सत्ता के करीब होते हुए भी सच बोलना संभव है। उनका जाना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ी क्षति है। वे उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते थे जो विचारधारा से समझौता नहीं करती थी।


🌹 शोक संदेश और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

सत्यपाल मलिक के निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, और शरद पवार सहित कई नेताओं ने शोक व्यक्त किया। किसान संगठनों ने उन्हें “किसान मसीहा” बताया और उनके योगदान को कभी न भुला पाने वाला बताया।


📸 उनकी यादें जीवित रहेंगी

राजनीति में शुचिता, बेबाकी, और जन सरोकारों को लेकर सत्यपाल मलिक ने जो मिसाल कायम की है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगी। उनकी तस्वीरें, उनके भाषण और उनका लेखन — सब कुछ इस बात का गवाह रहेगा कि वे एक सच्चे जनसेवक थे।


🔚 निष्कर्ष

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन केवल एक राजनेता की मौत नहीं है, बल्कि एक विचार, एक वैकल्पिक राजनीतिक चेतना का अवसान है। जब इतिहास लिखा जाएगा, तो उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में याद किया जाएगा जो सत्ता के गलियारों में होते हुए भी जनहित के मुद्दों को कभी नहीं भूला।

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