नई दिल्ली: स्विट्जरलैंड के दावोस में फाइजर के सीईओ अल्बर्ट बोर्ला (Albert Bourla) को उनकी कंपनी के कोविड वैक्सीन को लेकर तीखे सवालों का सामना करना पड़ा। फाइजर और मॉडर्ना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोरोना की वैक्सीन बनाने वाली शुरुआती कंपनियों में शामिल रही। तब इन कंपनियों की तरफ से काफी बड़े-बड़े दावे किए जा रहे थे। खासकर फाइजर कोरोना वायरस के खिलाफ अपनी वैक्सीन की उच्च क्षमता का खूब प्रचार कर रही थी। फाइजर के सीईओ अल्बर्ट बोर्ला ने 1 अप्रैल, 2021 को ट्वीट किया था, ‘यह बताकर खुशी हो रही है कि बायोएनटेक के साथ तीसरे चरण के अध्ययन में भी पता चला है कि हमारी कोविड-19 वैक्सीन दक्षिण अफ्रीका में संक्रमण के मामले 100% रोकने में कामयाब रही है। सौ प्रतिशत!’
फाइजर ने खूब ढूंढा ‘आपदा में अवसर’
ध्यान रहे कि स्पूतनिक नाम की कोरोना की पहली वैक्सीन रूस में बनी। उसके बाद अमेरिकी कंपनियों फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन आई। इन दोनों कंपनियों ने दुनियाभर में प्रचार किया कि उनकी वैक्सीन को सामने कोई नहीं। फाइजर कई देशों के साथ डील करने लगा। तब हर देश की सरकार अपने नागरिकों की जान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। तब फाइजर ने मौके का फायदा उठाया। फाइजर ने वैसी-वैसी शर्तें रखीं जो बिल्कुल एक मालिक और गुलाम के बीच होती है।
भारत ने ठुकरा दी फाइजर की मनमानी शर्तें
भारत सरकार ने फाइजर की शर्तें मानने से इनकार कर दिया। तब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा था, ‘फाइजर ने भारत सरकार के सामने ऐसी शर्त रख दी जिसे माना नहीं जा सकता था। फाइजर ने कहा कि वह वैक्सीन के दुष्प्रभावों और मौतों का जिम्मेदार नहीं होगी। उस पर भारतीय कानून के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। ऐसे में भारत सरकार के लिए यह इन मांगों को मानना बुद्धिमानी नहीं है।’ भारत सरकार ने तो कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट और कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक को भी ऐसी छूट नहीं दी। इसीलिए, भारत में कोविशील्ड, कोवैक्सीन के अलावा रूसी वैक्सीन स्पूतनिक भी लगाई जा रही है, लेकिन फाइजर को आज तक मंजूरी नहीं मिली।
कई देशों से मनवाईं हैरतअंगेज शर्तें
हालांकि, फाइजर ने इसी तरह की शर्तें कई देशों से मनवा ली। कहा जाता है कि कई लैटीन अमेरिकी देशों में तो वहां की सरकारों से फंड रखवा लिए कि अगर वैक्सीन का कोई साइड इफेक्ट होगा या मौतें होंगी तो सरकार अपने खजाने से पीड़ितों को मुआवजा देगी। सरकारें मजबूर थीं, इसलिए उन्होंने गुप्त समझौते कर भी लिए।
विपक्षी नेताओं के कैसे-कैसे बयान!
तब राज्यों को अधिकार देने की मांग जोर पकड़ गई कि वो जिस किसी कंपनी से चाहें, उससे वैक्सीन खरीद सकें। उधर, विपक्षी दलों में देश में बन रही वैक्सीन को लेकर संदेह पर संदेह और विदेशी वैक्सीन को सर्वोत्तम बताने की होड़ मच गई। कांग्रेस नेता गौरव पांधी ने यहां तक कह दिया कि कोवैक्सीन में नवजात बछड़े का सीरम मिलाया जा रहा है। उन्होंने उस वक्त ट्वीट पर ट्वीट किए और कोवैक्सीन पर सवाल उठाते रहे।
गौरव पांधी का पुराना ट्वीट।
पांधी के दावों का सरकार ने खंडन किया। पीआईबी ने ट्वीट कर कहा कि कोवैक्सीन में बछड़े के सीरम की बात बिल्कुल निराधार है।
अपने देश में बन रही वैक्सीन पर सवाल, फाइजर की वकालत!
फिर कांग्रेस सांसदों शशि थरूर और मनीष तिवारी ने मोर्चा खोल दिया। थरूर ने कहा, ‘ठीक से परखे बिना कोवैक्सीन के उपयोग की अनुमति खतरनाक हो सकती है।’ मनीष तिवारी ने भी कहा, ‘उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोवैक्सिन ने इमर्जेंसी यूज की अनुमति पा ली।’ वहीं, छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने कहा, ‘कोवैक्सिन सुरक्षित नहीं है। टीकाकरण के लिए इसके उपयोग का समर्थन नहीं करें।’ देव भी कांग्रेस नेता हैं। समाजवादी पार्टी (SP) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तो यहां तक कह दिया कि वो बीजेपी की वैक्सीन नहीं लगवाएंगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम तो कोविशील्ड और कोवैक्सीन के साथ-साथ स्पूतनिक की उपलब्धता के बावजूद फाइजर-मॉडर्ना की वकालत करते रहे। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार इसलिए ज्यादा कंपनियों की वैक्सीन नहीं ला रही है ताकि उनमें कंपिटिशन नहीं हो और कोविशील्ड और कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को मनमानी कीमत वसूलने का मौका मिल जाए।
फाइजर खरीदने की हुई थी मांग
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 20 मई 2021 को मीडिया के सामने कहा कि 12 साल से ऊपर के बच्चों के लिए फाइजर वैक्सीन तुरंत खरीदनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘देखिए अभी इंटरनैशनली मॉडर्ना और फाइजर, दोनों ने बोला है कि उनकी वैक्सीन्स के ट्रायल हो चुके हैं और उनकी वैक्सीन्स बच्चों के लिए सूटेबल है। मैं समझता हूं कि अब केंद्र सरकार को इसमें देरी नहीं करनी चाहिए और जितनी भी इंटरनैशनली वैक्सीन्स ऐवलेबल हैं, सबको हमारे देश के अंदर इस्तेमाल करने की इजाजत हो।’
राज्यों ने कहा था- हम खुद खरीदेंगे विदेशी वैक्सीन, लेकिन…
विपक्षी दलों के तरह-तरह के आरोपों और कोरोना से बढ़ते कोहराम के चलते केंद्र सरकार राज्यों की मांग के दबाव में आ गई। लेकिन राज्यों को कुछ ही दिनों में पता चल गया कि विदेशी कंपनियों से डील करके वैक्सीन मंगवाना उनके बूते की बात नहीं। उसकी कई वजहें थीं। एक वजह तो यह भी थी कि उन कंपनियों के पास दुनियाभर से डिमांड मिल रही थी, इसलिए वो छह-छह महीने की मियाद मांगने लगे। इधर, भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सीन पर तेजी से काम चल रहा था। इस कारण राज्य सरकारें तुरंत ठंडी पड़ गईं और फिर से केंद्र सरकार को ही वैक्सीन मंगवाने की मांग होने लगी। आखिरकार, कोविशील्ड और कोवैक्सीन को भारत में इमर्जेंसी यूज की मंजूरी मिली और पहले स्वास्थ्यकर्मियों और बुजुर्गों का धड़ाधड़ टीकाकरण होने लगा। फिर जैसे-जैसे वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ी, टीकाकरण अभियान जोर चरण दर चरण बढ़ने लगा। टीकाकरण के बाद भारत में कोरोना की कोई लहर नहीं आ सकी है।
खुल गई फाइजर के दावों की पोल
उधर, फाइजर के दावों की पोल खुल गई। फाइजर के जैनिन स्मॉल (Janine Small) ने अक्टूबर 2022 में यूरोपियन यूनियन की संसद में माना कि उनकी वैक्सीन वायरस को एक से दूसरे व्यक्ति में फैलने से रोक पाता है या नहीं, उन्हें नहीं पता। उन्होंने कहा, ‘फाइजर की बिक्री से पहले हमें पता नहीं था कि यह वैक्सीन संक्रमण रोकने में कितना कारगर होगी। वैक्सीन रिलीज करने से पहले हमने संक्रमण रोकने में इसकी क्षमता का परीक्षण नहीं किया था।’ अभी दावोस में दो पत्रकार सवाल पर सवाल दागने लगे तो फाइजर के सीईओ अल्बर्ट बोर्ला की बोलती बंद हो गई। पत्रकारों ने सड़क पर साथ चलकर लंबी दूरी तय करते हुए कई सवाल किए, लेकिन बोर्ला ने चुप्पी साध ली और एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया। आखिरकार पत्रकारों ने पूछा, ‘क्या आपको शर्म नहीं आती? आपने महामारी में पैसे बनाए जब पूरी मानवता कराह रही थी, आपको नींद कैसे होती है?’
आज भारत दुनिया में सबसे सुरक्षित
फाइजर ही क्यों, महाशक्ति होने का दंभ भरने वाला हमारा पड़ोसी देश चीन अभी-अभी किस दौर से गुजरा है, यह तो पूरी दुनिया ने देखा। चीन ने खुद की कोविड वैक्सीन इजाद की। लेकिन वह कितना कारगर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि टीकाकरण के बाद भी चीन में कोरोना की लहरें आती रहीं। हाल ही में कोरोना वायरस के बीएफ.7 वेरियेंट ने चीन में तहलका मचा दिया। वहां फिर से लोगों को घरों में बंद किया गया। बाजार बंद हो गए। पूरी तरह लॉकडाउन लगा। कोरिया, जापान समेत कई अन्य देशों में बीएफ.7 का खौफ फैल गया। भारत में नई लहर आने की आशंका टालने को लेकर सारी तैयारियां होने लगीं। लेकिन सारी आशंकाएं कुछ ही दिनों में काफूर हो गईं। क्यों? क्योंकि करीब-करीब सभी भारतीयों को कोविशील्ड और कोवैक्सीन की डोज ही दी गई है।
क्या इन नेताओं से सवाल नहीं होने चाहिए?
मतलब साफ है कि भारत में बनीं ये दोनों वैक्सीन दुनिया की अन्य किसी भी कोरोना टीके के मुकाबले ज्यादा क्षमतावान है। इतना ही नहीं, भारत में ज्यादातर लोगों को मुफ्त टीके लगे और प्राइवेट में पैसे भी देने पड़े तो दुनिया में संभवतः सबसे कम। ऐसे में जिस तरह फाइजर के सीईओ एल्बर्ट बोर्लो मीडिया के सवालों का सामना कर रहे हैं, उसी तरह उन नेताओं, विशेषज्ञों, पत्रकारों से भी यह पूछने का आधार तो बनता ही है कि आखिर उन्होंने किस आधार पर तब विदेशी कंपनियों के समर्थन में अपने देश में बन रही वैक्सीन पर न केवल बार-बार संदेह जताया था बल्कि उनका खुला विरोध किया था?