Thursday, August 7, 2025
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एनसीईआरटी की किताब में नक्शे को लेकर विवाद, जैसलमेर के राजा ने कहा- यह शौर्य को धूमिल करने का प्रयास

नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। एनसीईआरटी की कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में प्रकाशित एक विवादास्पद नक्शे को लेकर देश में नई बहस छिड़ गई है। इस बार मामला राजस्थान की प्रतिष्ठित जैसलमेर रियासत से जुड़ा है, जिसे किताब में मराठा साम्राज्य का हिस्सा बताया गया है। इस पर जैसलमेर के राजा चैतन्य राज सिंह ने कड़ी आपत्ति जताई है और इसे ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ करार दिया है।


🗺️ किताब में क्या है विवादित तथ्य?

राजा चैतन्य राज सिंह के अनुसार, कक्षा 8 की एनसीईआरटी सामाजिक विज्ञान की पुस्तक, यूनिट 3, पृष्ठ संख्या 71 पर दिए गए मानचित्र में जैसलमेर को तत्कालीन मराठा साम्राज्य का हिस्सा दिखाया गया है। उन्होंने इसे “ऐतिहासिक रूप से भ्रामक, तथ्यहीन और गंभीर रूप से आपत्तिजनक” बताया।

राजा ने अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) पोस्ट में लिखा:

“इस प्रकार की अपुष्ट और ऐतिहासिक साक्ष्यविहीन जानकारी न केवल एनसीईआरटी जैसी संस्थाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाती है, बल्कि हमारे गौरवशाली इतिहास और जनभावनाओं को भी आघात पहुंचाती है। यह विषय केवल एक त्रुटि नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों के बलिदान और शौर्य गाथा को धूमिल करने का प्रयास है।”


🛡️ राजा ने दिए ऐतिहासिक साक्ष्य

राजा चैतन्य राज सिंह ने स्पष्ट किया कि जैसलमेर रियासत के संबंध में प्रामाणिक ऐतिहासिक स्रोतों में मराठा आधिपत्य, कराधान या प्रभुत्व का कोई उल्लेख नहीं है। इसके विपरीत, कई ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि जैसलमेर हमेशा एक स्वतंत्र और संप्रभु रियासत रही।


📢 शिक्षा मंत्रालय और एनसीईआरटी से की कार्रवाई की मांग

राजा चैतन्य राज सिंह ने इस मुद्दे पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से त्वरित और ठोस कार्रवाई की अपील की है। उन्होंने लिखा:

“संपूर्ण जैसलमेर परिवार की ओर से मैं आपका ध्यान इस ज्वलंत विषय की ओर आकृष्ट करना चाहता हूं कि एनसीईआरटी द्वारा की गई इस प्रकार की त्रुटिपूर्ण, दुर्भावनापूर्ण और एजेंडा-प्रेरित प्रस्तुति को गंभीरता से लेते हुए तत्काल संशोधन करवाया जाए। यह केवल एक तथ्य संशोधन नहीं, बल्कि हमारी ऐतिहासिक गरिमा, आत्मसम्मान और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की सत्यनिष्ठा से जुड़ा विषय है।”


📚 एनसीईआरटी पर पहले भी उठते रहे हैं सवाल

एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों को लेकर पहले भी कई बार विवाद उठ चुके हैं, जिनमें ऐतिहासिक घटनाओं को गलत तरीके से प्रस्तुत करना, तथ्यों की उपेक्षा करना और वैचारिक झुकाव के आरोप प्रमुख रहे हैं।

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