मुंबई/नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। मालेगांव बम विस्फोट मामले में विशेष एनआईए अदालत ने ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया है। यह फैसला 17 वर्षों तक चली लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद आया है।
2008 में हुए मालेगांव विस्फोट में 6 लोगों की मौत और 100 से अधिक लोगों के घायल होने के बाद देशभर में सनसनी फैल गई थी। 29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भिक्कू चौक के पास एक मोटरसाइकिल में बम रखा गया था, जिसके विस्फोट से पूरे क्षेत्र में दहशत फैल गई थी।
इन आरोपियों को किया गया बरी
विशेष एनआईए अदालत के न्यायाधीश ए. के. लाहोटी ने जिन 7 आरोपियों को बरी किया, उनमें शामिल हैं:
प्रज्ञा सिंह ठाकुर (भाजपा सांसद, भोपाल)
लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित
मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त)
अजय राहिरकर
समीर कुलकर्णी
सुधाकर चतुर्वेदी
सुधाकर द्विवेदी
अदालत की टिप्पणी: “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं”
फैसले में अदालत ने गंभीर मानवीय और संवैधानिक टिप्पणी करते हुए कहा कि:
“आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा को उचित नहीं ठहरा सकता।”
यह टिप्पणी न केवल कानूनी दृष्टि से बल्कि सामाजिक और धार्मिक समरसता के सन्दर्भ में भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
क्या बोले वकील और पीड़ित पक्ष
अधिवक्ता रंजीत नायर, जो सुधाकर चतुर्वेदी के पक्षकार थे, ने बताया कि अभियोजन पक्ष सुधाकर के खिलाफ कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं कर सका, जिसके आधार पर अदालत ने उन्हें बरी कर दिया।
प्रकाश सालसिंगिकर, एक अन्य वकील ने कहा:
“अदालत ने स्पष्ट किया कि यह घटना बेहद दुखद थी और इसमें जान गंवाने वालों की क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती। फिर भी परिजनों को वित्तीय मदद देने के निर्देश अदालत ने दिए हैं।”
सुरक्षा के सख्त इंतज़ाम
फैसले से पहले दक्षिण मुंबई के सत्र न्यायालय परिसर को पूरी तरह से सुरक्षा घेरे में ले लिया गया था। पुलिस ने संभावित विरोध-प्रदर्शन को देखते हुए अतिरिक्त बल की तैनाती की थी।
मालेगांव बम विस्फोट: केस का संक्षिप्त इतिहास
घटना: 29 सितंबर, 2008 की रात
स्थान: मालेगांव, भिक्कू चौक
हताहत: 6 मौतें, 100 से अधिक घायल
माध्यम: मोटरसाइकिल में लगाया गया बम
पहली जांच: महाराष्ट्र एटीएस द्वारा
2011: मामला एनआईए को स्थानांतरित
2018: मुकदमे की शुरुआत
2024: सभी आरोपी बरी
एनआईए की जांच और पूरक चार्जशीट
एनआईए ने इस केस को नए सिरे से दर्ज कर जांच की थी और कई पूरक आरोपपत्र दाखिल किए थे। बावजूद इसके, अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत प्रस्तुत नहीं कर सका, जिससे अदालत ने उन्हें दोषमुक्त करार दिया।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
इस फैसले के बाद देश में राजनीतिक बहस तेज होने की संभावना है। प्रज्ञा सिंह ठाकुर पहले ही कई बार इस केस को राजनीतिक साजिश बता चुकी हैं। दूसरी ओर, मानवाधिकार संगठनों और मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्गों ने इस निर्णय पर नाराज़गी जताई है।
निष्कर्ष:
मालेगांव बम विस्फोट केस में सभी आरोपियों का बरी होना भारतीय न्याय व्यवस्था की गंभीरता, जटिलता और समयबद्धता को दर्शाता है। साथ ही, यह सामाजिक सोच को प्रभावित करने वाला निर्णय भी है, जिसमें अदालत ने स्पष्ट संदेश दिया कि हिंसा किसी भी धर्म से जुड़ी नहीं हो सकती।