Wednesday, November 19, 2025
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मदुरै में धूमधाम से निकाली गई भगवान मुरुगन की भव्य रथ यात्रा

मदुरै, (वेब वार्ता)। तमिलनाडु के प्रसिद्ध थिरुपरनकुंद्रम मुरुगन मंदिर में चल रहे पंगुनी महोत्सव के तहत आज भगवान मुरुगन की भव्य रथ यात्रा (थेरोट्टम) निकाली गई। इस पवित्र आयोजन में हजारों श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया और भक्तिभाव से भगवान मुरुगन के विशाल रथ को खींचा। पूरे शहर में भक्तिमय माहौल देखने को मिला, जहां श्रद्धालु “अरोहरा” के जयकारों के साथ भगवान के रथ को खींच रहे थे।

यह पंगुनी महोत्सव हर साल तमिल कैलेंडर के पंगुनी महीने (मार्च-अप्रैल) में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष इसकी शुभ शुरुआत 5 मार्च को ध्वजारोहण के साथ हुई थी। पूरे 15 दिनों तक चलने वाले इस भव्य महोत्सव में भगवान मुरुगन की दिव्य सवारियों की शोभायात्रा निकाली जाती है। इनमें स्वर्ण मयूर वाहन, स्वर्ण घोड़ा वाहन सहित कई अन्य भव्य रथ शामिल होते हैं, जो भक्तों को दिव्य आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

महोत्सव के दौरान बीते दिन मंदिर में भगवान मुरुगन के विवाह उत्सव ‘तिरुकल्याणम्’ का आयोजन किया गया। इस शुभ अवसर पर मदुरै के प्रसिद्ध सुंदरेश्वर मंदिर के भगवान सुंदरेश्वर और देवी मीनाक्षी भी शामिल हुए। भगवान मुरुगन और उनकी दिव्य संगिनी वल्ली के इस विवाह उत्सव को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु उमड़े। इस दौरान मंदिर परिसर में विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और वैदिक मंत्रोच्चारण का आयोजन किया गया, जिससे संपूर्ण वातावरण भक्तिमय बन गया।

आज प्रातः 5:45 बजे भगवान मुरुगन का विशेष अभिषेकम (धार्मिक स्नान) संपन्न हुआ, जिसके बाद उनकी भव्य रथ यात्रा का शुभारंभ हुआ। इस दौरान श्रद्धालुओं ने पूरे श्रद्धा भाव से भगवान मुरुगन के दिव्य रथ को खींचा। मंदिर के पुजारियों द्वारा विशेष पूजन और आरती का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों भक्तों ने भाग लिया।

इस रथ यात्रा के दौरान भक्तगण “मुरुगनुकु अरोहरा” के जयकारों के साथ आगे बढ़ते रहे। मंदिर के चारों ओर भव्य सजावट की गई थी, और पूरा वातावरण आध्यात्मिक उल्लास से सराबोर नजर आया।

थिरुपरनकुंद्रम मुरुगन मंदिर को भगवान मुरुगन के छह प्रमुख आरूपदै वेडु (छह निवासों) में से एक माना जाता है। यह मंदिर अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। पंगुनी महोत्सव न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह भक्तों को आध्यात्मिक अनुभूति के साथ-साथ सांस्कृतिक परंपराओं से भी जोड़ता है।

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